लालगंज विधानसभा चुनाव 2025 (Lalganj Assembly Election 2025)
बिहार की सियासत में लालगंज विधानसभा सीट (संख्या 124) को एक निर्णायक सीट के तौर पर देखा जाता है. वैशाली जिले के इस क्षेत्र ने पिछले तीन विधानसभा चुनावों में लगातार अलग-अलग जनादेश दिया है. हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली लालगंज सीट पर सत्ता और विरोध दोनों का स्वाद चखने वाले नेताओं की लिस्ट लंबी है. कभी बाहुबली नेताओं का गढ़ रही यह सीट अब धीरे-धीरे मुख्यधारा की राजनीति की ओर लौटती दिख रही है.
2020 लालगंज विधानसभा चुनाव में भाजपा की धमाकेदार वापसी(Lalganj Assembly Election)
2020 के चुनाव में लालगंज ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को खुलकर समर्थन दिया. पार्टी के उम्मीदवार संजय कुमार सिंह ने कांग्रेस के राकेश कुमार को भारी अंतर से हराया. संजय कुमार सिंह को कुल 70,750 वोट मिले जो कुल मतों का 36.88% था. उन्होंने राकेश कुमार को 26,299 वोटों से हराकर सीट पर भाजपा की वापसी करवाई.
इस चुनाव में एक बड़ा नाम निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में था – विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, जो कभी इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली नेता माने जाते थे. हालांकि, जनता ने इस बार उन्हें नकार दिया और मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सिमट गया.
2015 लालगंज विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का असर(Lalganj Assembly)
2015 में बिहार की राजनीति ने करवट ली और JDU, RJD और कांग्रेस का महागठबंधन सत्ता में आया. इस गठबंधन का असर लालगंज पर भी साफ नजर आया. राजद उम्मीदवार राजकुमार शाह ने भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार सिंह को हरा दिया. इस बार का चुनाव न केवल जातीय समीकरणों का था, बल्कि नीतीश कुमार और लालू यादव की संयुक्त ताकत ने विपक्ष को बैकफुट पर ला दिया. राजकुमार शाह की जीत यह भी दर्शाती है कि लालगंज जैसे क्षेत्र में विकास की बातों से ज्यादा गठबंधन की रणनीति और जातीय समीकरण चुनाव जीतने में अहम भूमिका निभाते हैं.
2010 लालगंज विधानसभा चुनाव में बाहुबली राजनीति का दौर(Lalganj Vidhan Sabha)
2010 का चुनाव लालगंज के लिए एक अलग ही किस्सा रहा. उस समय जनता दल यूनाइटेड (JDU) के प्रत्याशी विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला ने सीट पर जीत दर्ज की. मुन्ना शुक्ला का नाम बाहुबली नेताओं में गिना जाता है. यह उनकी तीसरी जीत थी. हालांकि उन पर आपराधिक आरोपों की लंबी फेहरिस्त रही है, लेकिन इसके बावजूद जनता ने उन्हें अपना नेता चुना. उस समय उनके प्रभाव और पकड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था.
राजनीतिक महत्व और जातीय समीकरण
लालगंज सीट की खासियत है यहां का जटिल जातीय समीकरण. यादव, भूमिहार, कुर्मी और मुस्लिम मतदाता इस सीट का चुनावी गणित तय करते हैं. हर चुनाव में उम्मीदवारों को जातीय संतुलन साधने के साथ-साथ विकास और स्थानीय मुद्दों पर भी ध्यान देना होता है.
2025 की ओर
अब जब बिहार फिर से चुनावी मोड में प्रवेश कर रहा है, लालगंज सीट पर सबकी नजरें टिकी हैं. क्या भाजपा यहां अपनी पकड़ बनाए रखेगी? क्या विपक्ष नया चेहरा लाकर बाज़ी पलटेगा? और क्या मुन्ना शुक्ला दोबारा वापसी की कोशिश करेंगे? इन सभी सवालों का जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि लालगंज इस बार भी बिहार की राजनीति का सेमीफाइनल साबित होगा.