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हिसुआ विधानसभा चुनाव 2025
(Hisua Vidhan Sabha Chunav 2025)
हिसुआ विधानसभा सीट: बदले समीकरणों के बीच 2025 का रण
हिसुआ विधानसभा चुनाव परिणाम
2020
2015
2010
CANDIDATE NAME | PARTY | VOTES |
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हिसुआ विधान सभा चुनाव से जुडी जानकारी
बिहार की राजनीति में नवादा जिले की हिसुआ विधानसभा सीट एक अहम भूमिका निभाती रही है. समय-समय पर यहां के परिणामों ने न केवल जिला बल्कि राज्य की राजनीति की दिशा भी तय की है. 2020 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बड़ा उलटफेर देखने को मिला, जब कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती नीतू कुमारी ने भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता अनिल सिंह को शिकस्त दी थी.
2020 का चुनाव परिणाम इस ओर इशारा करता है कि जनता बदलाव चाहती थी. नीतू कुमारी ने 94,930 वोट हासिल कर 17,091 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. कांग्रेस को 49.81% वोट शेयर मिला, जबकि भाजपा के अनिल सिंह को 77,839 वोट (40.84% वोट शेयर) से संतोष करना पड़ा.
पिछले चुनावों का रुझान
यदि पिछले तीन चुनावों पर नजर डालें तो हिसुआ सीट पर लगातार सत्ता परिवर्तन और मतदाताओं की प्राथमिकताओं में बदलाव देखने को मिला है:
2010 में भाजपा के अनिल सिंह ने लोजपा के अनिल मेहता को हराया था.
अनिल सिंह को 43,110 वोट (35% वोट शेयर) मिले थे, जबकि अनिल मेहता को 39,132 वोट (31% वोट शेयर) हासिल हुए थे. जीत का अंतर महज 3,978 वोटों का रहा था.
2015 चुनाव में भाजपा के अनिल सिंह ने दूसरी बार जीत दर्ज की
2015 में अनिल सिंह ने भाजपा के टिकट पर लगातार दूसरी जीत दर्ज की. उन्हें 82,493 वोट (45% वोट शेयर) मिले, जबकि जेडीयू के कौशल यादव को 70,254 वोट (38% वोट शेयर) मिले. जीत का अंतर इस बार बढ़कर 12,239 वोट रहा.
2020 में कांग्रेस की जीत
2020 में कांग्रेस ने यहां से बड़ी वापसी की और भाजपा को करारी शिकस्त दी. लगातार दो बार से विधायक रहे अनिल सिंह को कांग्रेस की नीतू कुमारी ने करारी शिकस्त दी. नीतू कुमारी को 94,930 वोट मिले थे. वहीं भाजपा के अनिल सिंह को 77,839 वोट मिले. हार-जीत का अंतर 17,091 वोटों का रहा था.
बदलता राजनीतिक समीकरण
2010 और 2015 में लगातार दो बार भाजपा के अनिल सिंह ने जीत दर्ज कर अपनी मजबूत पकड़ दिखाई थी, लेकिन 2020 में कांग्रेस की नीतू कुमारी की जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि मतदाता अब नए नेतृत्व और नए विकल्पों की तलाश में हैं.
हिसुआ में जातीय समीकरण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यादव, कुर्मी, सवर्ण और दलित मतदाताओं का मिश्रण इस सीट को रोचक बना देता है. 2020 में कांग्रेस ने इस सामाजिक संतुलन को साधने में सफलता हासिल की थी, जिसका परिणाम जीत के रूप में सामने आया.
2025 में क्या होगा?
अब सवाल यह है कि 2025 में हिसुआ का ताज किसके सिर सजेगा?
क्या कांग्रेस अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखेगी?
या भाजपा एक बार फिर से वापसी कर अपनी खोई हुई जमीन हासिल करेगी?
क्या कोई नया चेहरा या गठबंधन समीकरण को बदल सकता है?
यह तय करना अब हिसुआ की जनता के हाथ में है. आने वाले चुनावी प्रचार, उम्मीदवारों का चयन और जमीनी मुद्दे तय करेंगे कि इस बार कौन बाजी मारेगा. इतिहास यह बताता है कि हिसुआ में जनता का मिजाज तेजी से बदलता है. इसलिए यहां चुनावी रणनीति जितनी मजबूत होगी, जीत की राह उतनी ही आसान बनेगी.