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इमामगंज विधानसभा चुनाव 2025
(Imamganj Vidhan Sabha Chunav 2025)
इमामगंज: बिहार के गया जिले में स्थित इमामगंज विधानसभा सीट झारखंड की सीमा से सटी हुई है. इमामगंज सीट पर लंबे समय तक उदय नारायण चौधरी के कब्जे में था. 2015 में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने उदय नारायण चौधरी को पराजित कर चौधरी क लिए अजेय समाझा जाने वाले इस सीट को अपने नाम कर लिया था.
इमामगंज विधानसभा चुनाव परिणाम
2020
2015
2010
CANDIDATE NAME | PARTY | VOTES |
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इमामगंज विधान सभा चुनाव से जुडी जानकारी
इमामगंज विधानसभा सीट, बिहार के गया जिले में स्थित है और झारखंड की सीमा से सटी हुई है. यह इलाका भौगोलिक रूप से पहाड़ी, पिछड़ा और कभी नक्सल प्रभावित रहा है, लेकिन अब बदलाव की ओर बढ़ रहा है. यहां की राजनीति जातीय समीकरणों पर तो टिकी है ही, लेकिन अब विकास, शिक्षा और रोज़गार जैसे मुद्दे भी निर्णायक भूमिका में हैं. इमामगंज में दलित और महादलित मतदाता लगभग 40% हैं, जो किसी भी चुनावी नतीजे को पलटने की ताकत रखते हैं. इनके अलावा पिछड़ा वर्ग, सवर्ण, मुसलमान और आदिवासी समुदाय भी चुनावी गणित का अहम हिस्सा हैं.
चौधरी को हराकर मांझी ने किया था इस सीट को अपने नाम
राजनीतिक इतिहास की बात करें तो इमामगंज सीट पर लंबे समय तक उदय नारायण चौधरी के कब्जे में था. 2015 में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने उदय नारायण चौधरी को पराजित कर चौधरी क लिए अजेय समाझा जाने वाले इस सीट को अपने नाम कर लिया था. जीतन राम मांझी ने उदय नरायण चौधरी को करीब 30 हजार वोटों से हराया था. इसके बाद से इस सीट पर उनका ही दबदबा बना हुआ है. जब वे सांसद बने तो इमामगंज सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें उनकी बहू दीपा मांझी ने जीत दर्ज की और 'हम' पार्टी का परचम बुलंद रखा। अब एक बार फिर से 2025 के चुनाव में दीपा मांझी बतौर सशक्त उम्मीदवार मैदान में उतर सकती हैं, और सवाल ये भी उठता है कि क्या वे मांझी जी की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा पाएंगी या विपक्ष उन्हें घेरने में कामयाब होगा? दूसरी ओर RJD, कांग्रेस और AIMIM जैसे दल भी इस बार पूरी तैयारी में हैं और सोशल इंजीनियरिंग के जरिए इमामगंज को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं.
शिक्षा बन सकता है बड़ा मुद्दा
क्षेत्र में विकास के मुद्दों की बात करें तो सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं में कुछ सुधार जरूर हुआ है, लेकिन स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, अस्पतालों तक एंबुलेंस नहीं पहुंचती, और युवाओं का पलायन अब भी जारी है। जनता अब वादों से थक चुकी है और उसे जमीन पर काम चाहिए। लोग पूछ रहे हैं, काम करने वाला नेता चाहिए, सिर्फ नाम वाला नहीं।
2025 का चुनाव इमामगंज के लिए सिर्फ विधायक चुनने की प्रक्रिया नहीं है, ये तय करेगा कि क्या यहां वाकई विकास के वादे निभे या फिर फिर से वही जातिगत गोलबंदी और पुरानी राजनीति चलती रही। इस सीट पर लड़ाई विकास, जाति और चेहरे के त्रिकोण में फंसी है, अब देखना ये है कि इस बिसात पर कौन सी चाल सबसे भारी पड़ती है।
कौन कितनी बार जीता
उदय नारायण चौधरी यहां से पांच बार चुनाव जीतकर विधायक बन चुके हैं. 1990 में जनता दल, 2000 में समता पार्टी और फरवरी-अक्टूबर 2005 और 2010 में JDU के टिकट पर चुनाव जीतकर वो विधानसभा पहुंचे थे. अभी तक यहां कुल 4 बार कांग्रेस, 3 बार JDU, 2 बार समता पार्टी, 1-1 बार हम (सेक्युलर), जनता दल, जनता पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और निर्दलीय जीत चुके हैं.
जातीय समीकरण
यहां की स्थानीय राजनीति में सबसे अहम भूमिका कोइरी जाति के वोटरों की होती है. 1990 में यहां 63% के साथ सबसे अधिक मतदान दर्ज किया गया था.