कदवा विधानसभा चुनाव 2025 (Kadwa Assembly Election 2025)
कटिहार जिले के कदवा विधानसभा में हुए इस चुनाव ने साफ कर दिया कि बिहार में अब राजनीति का परिदृश्य बदल रहा है और मतदाता अब ऐसे नेताओं को चुन रहे हैं जो उनके मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, न कि केवल चुनावी वादों पर.
कदवा विधानसभा सीट(Kadwa Vidhan Sabha) पर 2020 के चुनाव में
2020 के चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. शकील अहमद खान ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए एलजेपी के चंद्र भूषण ठाकुर को हराया. इस जीत ने न केवल कांग्रेस के लिए एक बड़ी राहत का काम किया, बल्कि बिहार की राजनीति में भी एक नया मोड़ लिया है. कदवा की जनता ने अपने मतों से यह संदेश दिया है कि वे बदलाव की ओर अग्रसर हैं और पुराने नेताओं के मुकाबले नए चेहरे को समर्थन देने के लिए तैयार हैं.
शकील अहमद की शानदार जीत(Kadwa Assembly Election)
डॉ. शकील अहमद खान ने कदवा विधानसभा क्षेत्र में 71,267 वोट प्राप्त किए, जो कुल वोटों का 42 प्रतिशत था. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी चंद्र भूषण ठाकुर को 32,402 वोटों के भारी अंतर से हराया. यह जीत उनके राजनीतिक अनुभव और क्षेत्र में उनके लगातार किए गए सामाजिक कार्यों का परिणाम है.
एलजेपी का संघर्ष (Kadwa Assembly)
एलजेपी के उम्मीदवार चंद्र भूषण ठाकुर ने इस चुनाव में अच्छी कोशिश की, लेकिन उनका प्रदर्शन कांग्रेस के मुकाबले काफी कमजोर रहा. हालांकि, उनका वोट प्रतिशत 31,779 था, जो कि 18.73 प्रतिशत था, लेकिन यह कांग्रेस के दबदबे को चुनौती देने के लिए पर्याप्त नहीं था. एलजेपी की हार इस बात को साबित करती है कि बिहार के मतदाता अब राजनीति में सिर्फ बड़े नामों की बजाय कामकाजी नेताओं को तरजीह देने लगे हैं.
जदयू का खाता नहीं खुला
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के उम्मीदवार सूरज प्रकाश राय भी इस बार कदवा सीट से मैदान में थे, लेकिन उन्हें 2020 के चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली. सूरज को केवल 19,633 वोट ही मिल सके, जो कि उनके दल के लिए एक निराशाजनक परिणाम था. जदयू का यह प्रदर्शन चुनावी रणनीति और नेतृत्व के बारे में कई सवाल उठाता है.
मतदान प्रतिशत और क्षेत्रीय प्रभाव
कदवा विधानसभा क्षेत्र में 59.85 प्रतिशत मतदान हुआ, जो कि यह दर्शाता है कि मतदाताओं में चुनाव को लेकर खासा उत्साह था. कदवा में यादव और मुस्लिम समुदाय का विशेष प्रभाव है, जिनका वोट चुनाव परिणामों को निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाता है. इन समुदायों का समर्थन हासिल करने में शकील अहमद खान सफल रहे, जबकि अन्य दलों के उम्मीदवार इस वोट बैंक को साधने में नाकाम रहे.
भविष्य की राह
शकील अहमद की जीत ने कदवा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की पकड़ को मजबूत किया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावों में उनकी पार्टी अपने इस लाभ का कैसे इस्तेमाल करती है. वहीं, विपक्षी दलों के लिए यह एक चेतावनी है कि यदि उन्होंने अपनी रणनीतियों में बदलाव नहीं किया, तो उन्हें आगामी चुनावों में और भी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा.