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मांझी विधानसभा चुनाव 2025

(Manjhi Vidhan Sabha Chunav 2025)

मांझी विधानसभा: कभी कांग्रेस का गढ़, अब राजद और भाजपा में हो रही सीधी टक्कर

मांझी विधानसभा चुनाव परिणाम

2020 2015 2010
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मांझी विधान सभा चुनाव से जुडी जानकारी

छपरा (सारण) लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली मांझी विधानसभा सीट बिहार की उन ऐतिहासिक सीटों में शामिल है, जहां राजनीतिक समीकरण समय के साथ कई बार बदले हैं. एक दौर में यह सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ मानी जाती थी, लेकिन अब यहां राजद और भाजपा के बीच सीधी टक्कर बनती जा रही है. जातीय समीकरण, क्षेत्रीय असंतोष और स्थानीय मुद्दे इस सीट को लगातार चुनावी दृष्टिकोण से रोचक बनाते रहे हैं.

मतदाता संख्या और वोटिंग ट्रेंड
मांझी विधानसभा में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 3,10,000 के आसपास है. इसमें पुरुष मतदाता लगभग 1.62 लाख और महिला मतदाता 1.48 लाख के करीब हैं. औसतन यहां 55-60% तक मतदान होता रहा है. यह इलाका गंगा किनारे बसा हुआ है. बाढ़, कटाव, सड़क और पुल जैसी समस्याएं लंबे समय से चुनावी मुद्दों का हिस्सा रही हैं.

राजनीतिक इतिहास: कांग्रेस से राजद तक, अब भाजपा की बढ़ती मौजूदगी
2010: जदयू-भाजपा गठबंधन के दौर में राजद को झटका
2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा गठबंधन की लहर थी. इस समय जदयू के गौतम सिंह ने राजद के उम्मीदवार हेमनारायण सिंह को मात दी थी. यह जीत जदयू के लिए निर्णायक थी.

2015: महागठबंधन के दम पर राजद की वापसी
2015 में जब राज्य में महागठबंधन बना तो कॉंग्रेस के विजय शंकर दुबे ने लोजपा के केशव सिंह को शिकस्त दी थी. उन्हें करीब 30 हजार वोट मिले. जबकि लोजपा के केशव सिंह को लगभग 20 हजार 700 वोटों से संतोष करना पड़ा. यह चुनाव यादव-मुस्लिम वोट बैंक के एकजुट होने का उदाहरण बना.

2020: फिर भाजपा का पलटवार
2020 के विधानसभा चुनाव में CPI(M) के सत्येन्द्र यादव ने निर्दलीय उम्मीदवार राणा प्रताप सिंह को करारी शिकस्त दी थी.

सत्येन्द्र यादव (CPI(M))- 59,324
राणा प्रताप सिंह (निर्दलीय) - 33938
माधवी कुमारी (जदयू) - 29155

जातीय समीकरण: यादव, सवर्ण और अति पिछड़ा वर्ग की निर्णायक भूमिका
मांझी सीट का जातीय समीकरण बेहद जटिल है. यहां यादव वोटर बड़ी संख्या में हैं और पारंपरिक रूप से राजद का समर्थन करते हैं. वहीं भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत जैसे सवर्ण समुदाय भाजपा की ताकत हैं. इसके अतिरिक्त तेली, नाई, कुशवाहा, धोबी, और पासवान जैसे अति पिछड़ा व दलित वर्ग के मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं. मुस्लिम मतदाता, जो लगभग 10% के आसपास हैं, प्रायः महागठबंधन की ओर झुके रहते हैं.

2025 की रणनीति: सीधी लड़ाई, लेकिन संभावनाओं से भरी
2025 के चुनाव में भाजपा और राजद के बीच सीधी टक्कर के आसार हैं. भाजपा इस बार सवर्ण और अति पिछड़ा वर्ग को एकजुट करने की कोशिश में है, जबकि राजद यादव-मुस्लिम समीकरण को मजबूती देने में जुटा है. हालांकि अगर जदयू भी इस सीट पर दावा करती है, तो त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन सकती है.

स्थानीय मुद्दे: बाढ़, पुल और पलायन सबसे बड़े सवाल
मांझी इलाके में गंगा नदी के किनारे बसे गांव हर साल बाढ़ और कटाव की मार झेलते हैं. मांझी-रेवती घाट पुल की मांग लंबे समय से लंबित है, जो यूपी और बिहार को सीधे जोड़ सकता है. शिक्षा, स्वास्थ्य और स्थानीय रोज़गार की भी कमी यहां के युवाओं को बाहर जाने के लिए मजबूर करती है. जो भी दल इन मुद्दों पर भरोसेमंद योजना देगा, उसे जनता का समर्थन मिल सकता है.

मांझी में कड़ा मुकाबला तय, जीत उसी की जो जाति और मुद्दों का संतुलन साधे
मांझी विधानसभा सीट पर वर्तमान में भाजपा का प्रतिनिधित्व है, लेकिन राजद की चुनौती भी बेहद मजबूत है. यह चुनाव सिर्फ जातीय समीकरण का नहीं, बल्कि स्थानीय मुद्दों को समझने और सुलझाने की दिशा में उठाए गए ठोस कदमों का भी होगा. देखना यह होगा कि 2025 में मांझी की जनता किसे अपना भाग्यविधाता चुनती है. अनुभव को या बदलाव की चाह को.

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