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नरपतगंज विधान सभा चुनाव 2025
(Narpatganj Vidhan Sabha Chunav 2025)
नरपतगंज विधानसभा सीट: नरपतगंज में एक दशक का सियासी संग्राम, भाजपा-राजद के बीच तगड़ी टक्कर, इस बार कौन मारेगा बाजी
नरपतगंज विधानसभा चुनाव परिणाम
2020
2015
2010
CANDIDATE NAME | PARTY | VOTES |
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नरपतगंज विधान सभा चुनाव से जुडी जानकारी
नरपतगंज यादव बहुल सीट मानी जाती है, इसलिए भाजपा और राजद दोनों ही यहां यादव उम्मीदवारों को उतारते रहे हैं. हालांकि 2010 से 2020 तक के परिणाम यह भी दिखाते हैं कि जाति के साथ-साथ अब विकास, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे भी निर्णायक हो रहे हैं.।
बिहार के सीमावर्ती जिले अररिया में स्थित नरपतगंज विधानसभा सीट ने 2010 से 2020 तक राजनीति के बदलते रंग देखे हैं. इस दशक में भाजपा और राजद के बीच जबरदस्त मुकाबले हुए, जिसमें दोनों दलों ने बारी-बारी से इस सीट पर कब्जा जमाया. जातीय समीकरण, विकास के मुद्दे और व्यक्तिगत छवि ने यहां के चुनावी नतीजों को प्रभावित किया.
विधानसभा चुनाव 2010
2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की देवंती यादव ने इस सीट पर जीत दर्ज की. उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अनिल कुमार यादव को 6,937 वोटों के अंतर से हराया. देवंती यादव को 61,106 वोट मिले जबकि अनिल यादव को 54,169 वोट प्राप्त हुए. यह वह समय था जब राज्य में जदयू-भाजपा गठबंधन की लहर चल रही थी, और सुशासन का नारा लोकप्रिय था.
विधानसभा चुनाव 2015
2015 के विधानसभा चुनावों में स्थिति पूरी तरह बदल गई. इस बार राजद ने जबरदस्त वापसी की और अनिल कुमार यादव ने भाजपा के जनार्दन यादव को 25,951 वोटों के बड़े अंतर से हराया. अनिल यादव को 90,250 वोट मिले, जबकि जनार्दन यादव को 64,299 वोट प्राप्त हुए. महागठबंधन के समर्थन और सामाजिक समीकरणों के चलते राजद को भारी लाभ हुआ.
विधानसभा चुनाव 2020
2020 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपनी खोई हुई जमीन फिर से हासिल की. इस बार भाजपा के जयप्रकाश यादव ने राजद के अनिल कुमार यादव को हराया. जयप्रकाश यादव को 98,397 वोट मिले जबकि अनिल यादव को 69,787 वोट मिले. जीत का अंतर 28,610 वोटों का रहा, जो भाजपा की इस क्षेत्र में बढ़ती पकड़ को दिखाता है.
जातीय समीकरण और वोटिंग ट्रेंड
नरपतगंज विधानसभा सीट यादव बहुल क्षेत्र है. पिछले कई चुनावों में यादव समुदाय के उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की है, चाहे वे किसी भी दल से रहे हों. भाजपा और राजद दोनों ही दल यहां यादव उम्मीदवारों को टिकट देना पसंद करते हैं, ताकि जातीय समीकरण साधे जा सकें. 2010 से 2020 तक के नतीजे बताते हैं कि यहां का मतदाता विकास कार्यों और स्थानीय नेतृत्व की सक्रियता को भी महत्व देता है.