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दरौली विधानसभा चुनाव 2025
(Darauli Vidhan Sabha Chunav 2025)
सिवान लोकसभा क्षेत्र की सबसे चर्चित और राजनीतिक रूप से संवेदनशील सीटों में से एक है दरौली विधानसभा. यह सीट लंबे समय से सामाजिक न्याय, दलित राजनीति और वामपंथी आंदोलनों की ज़मीन रही है. यहां दलित और पिछड़े वर्ग की निर्णायक भूमिका के कारण हर चुनाव में खास राजनीतिक मंथन देखने को मिलता है.
दरौली विधानसभा चुनाव परिणाम
2020
2015
2010
CANDIDATE NAME | PARTY | VOTES |
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दरौली विधान सभा चुनाव से जुडी जानकारी
दरौली विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 2,78,901 है. इसमें पुरुष मतदाता 1,45,112, महिला मतदाता 1,33,773 और अन्य 16 वोटर शामिल हैं. इस सीट पर आमतौर पर 47-52% के बीच वोटिंग होती है, लेकिन जब चुनावी माहौल गर्म होता है, तो मतदान प्रतिशत में उछाल देखने को मिलता है.
राजनीतिक इतिहास: लाल झंडे की ज़मीन रही है दरौली
दरौली विधानसभा सीट पर वामपंथी दलों, खासकर सीपीआई(एमएल) का हमेशा से गहरा प्रभाव रहा है. यह सीट कभी किसान आंदोलन, जमींदारी उन्मूलन और दलित अधिकारों की आवाज़ का प्रमुख केंद्र रही. इस सीट से सीपीआई(एमएल) के कई प्रभावशाली नेताओं ने जीत दर्ज की है. हालांकि बीच-बीच में राजद और भाजपा ने भी यहां से जीत हासिल कर अपनी मौजूदगी जताई.
2010: भाजपा ने किया वामपंथी किले में सेंध
2010 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी पकड़ को तोड़ते हुए भाजपा के रामायण मांझी ने जीत दर्ज की थी. उन्हें 40,993 वोट मिले थे जबकि सीपीआई(एमएल) के सत्यदेव राम को 33,987 वोट प्राप्त हुए. यह एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर था, जिसने साबित किया कि बदले जातीय समीकरणों और संगठित रणनीति से भाजपा भी यहां सफलता पा सकती है.
2015 में वापसी की कोशिशें, लेकिन फिर सीपीआई(एमएल) ने मारी बाज़ी
2015 के चुनाव में भाजपा ने रामायण मांझी को फिर से टिकट दिया, लेकिन इस बार सीपीआई(एमएल) के प्रत्याशी सत्यदेव राम ने उन्हें कड़ी टक्कर दी और भारी समर्थन के साथ सीट वापस अपने पाले में ले आए. सत्यदेव राम को 49,576 वोट मिले जबकि भाजपा के रामायण मांझी को 39,992 वोट प्राप्त हुए. यह साफ संकेत था कि दरौली की जनता एक बार फिर वर्गीय राजनीति और सामाजिक मुद्दों को प्राथमिकता देने लगी है.
2020 में लगातार दूसरी बार सीपीआई(एमएल) का कब्ज़ा
2020 के विधानसभा चुनाव में सीपीआई(एमएल) ने एक बार फिर सत्यदेव राम को मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार को कड़े मुकाबले में 81,067 वोट के साथ हराया जबकि भाजपा के रामायण मांझी 68,948 वोटों से संतोष करना पड़ा.
जातीय समीकरण: दलित, यादव और पिछड़ा वर्ग है निर्णायक
दरौली विधानसभा सीट पर दलित वोटरों की संख्या सबसे अधिक है, जो लगभग 25% के आसपास मानी जाती है. इसके बाद यादव, कुशवाहा और अति पिछड़ा वर्ग के वोटर हैं. ब्राह्मण, राजपूत, मुस्लिम और भूमिहार मतदाताओं की भी भागीदारी है, लेकिन संख्या अपेक्षाकृत कम है. वामपंथी दलों को दलित-पिछड़े वर्ग का समर्थन लंबे समय से मिलता रहा है, जबकि भाजपा की कोशिश ब्राह्मण-राजपूत-ओबीसी वोटों को जोड़ने की रहती है.
2025 की लड़ाई: क्या तीसरी बार जीत पाएंगे सच्चिदानंद, या भाजपा बदलेगी समीकरण?
2025 में दरौली विधानसभा सीट पर मुकाबला फिर से सीपीआई(एमएल) और भाजपा के बीच होने की संभावना है. भाजपा यहां नए चेहरे की तलाश में है जबकि सीपीआई(एमएल) के कार्यकर्ता सच्चिदानंद यादव के नेतृत्व में ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे हैं. राजद की इस सीट पर मौजूदगी कमजोर रही है, लेकिन यदि महागठबंधन में तालमेल बिगड़ता है तो त्रिकोणीय मुकाबला भी हो सकता है.
दरौली में विचारधारा की लड़ाई अब वर्गीय और जातीय समीकरणों से जुड़ गई है
दरौली विधानसभा सिर्फ एक सीट नहीं, राजनीतिक चेतना और सामाजिक संघर्षों का केंद्र रही है. यहां हर चुनाव सिर्फ दल नहीं, विचारधाराओं के बीच टकराव का प्रतीक होता है. 2025 में भी दरौली की जनता अपने मुद्दों और जमीन से जुड़े नेताओं को चुनकर यह संदेश देने वाली है कि यहां की राजनीति अभी भी ‘जड़ से जुड़ी’ है.