23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

लेटेस्ट वीडियो

Historical Places of Bokaro: अतीत की स्मृति संजोये हैं बोकारो के ये ऐतिहासिक स्थल

Historical Places of Bokaro: किसी भी शहर का इतिहास और उसकी संस्कृति के बारे में जानना हो, तो वहां की ऐतिहासिक धरोहरों से ही मिलती है. बोकारो जिले में कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं. प्रशासन की अनदेखी के कारण इन विरासतों का उचित संरक्षण नहीं हो पाया है. आईए, आपको बोकारो जिले और उसके आसपास मौजूद कुछ ऐतिहासिक विरासतों के बारे में बताते हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Historical Places of Bokaro | कसमार (बोकारो), दीपक सवाल : शहर की विरासत और धरोहर हमें पीढ़ी दर पीढ़ी जोड़ने का काम करती है. ये ऐतिहासिक घटनाओं के गवाह होते हैं. यह हमारी पहचान, संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. बोकारो में ऐसे अनेक स्थल हैं, जो ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी हैं. कुछ स्थलों का इतिहास हजारों साल पुराना है. कुछेक स्थलों को छोड़ दें, तो शहर की अधिकांश विरासत और धरोहर शासन-प्रशासन की अनदेखी का शिकार होकर रह गये हैं.

महाभारत काल से जुड़ा है चंदनकियारी का भैरव स्थल

बोकारो जिले के चंदनकियारी प्रखंड के पोलकिरी स्थित भैरव स्थल का इतिहास लगभग 5 हजार साल पुराना है. यह स्थल महाभारत काल से जुड़ा बताया जाता है. चंदनकियारी से 7 किलोमीटर दूर मानपुर मोड़ के पास बायीं ओर की सड़क से यहां पहुंच सकते हैं. यहां एक जलधारा है. मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान माता कुंती जब अपने पुत्रों के साथ इस क्षेत्र में आयीं थीं, तब उनकी प्यास बुझाने के लिए अर्जुन ने अपने बाण से जल की धारा प्रस्फुटित कर दी थी. इसे ‘गुप्त गंगा’ के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि, किसी धर्म ग्रंथ में इस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं है. वैसे, यह स्थल भैरव स्थल के रूप में प्रसिद्ध है.

Chandankiyari Bhairav Sthal Bokaro Jharkhand
चंदनकियारी का भैरव स्थल. फोटो : प्रभात खबर

जलकुंड के निकट एक मंदिर में बाबा काल भैरव की प्रतिमा स्थापित है. इसकी स्थापना 1500 ई में हुई. बताया जाता है कि 1500 ई में पोलकरी निवासी दुर्गादास ठाकुर के पूर्वज को बाबा काल भैरव ने स्वप्न में इजरी नदी पर अपनी प्रतिमा होने का संकेत देते हुए कहा कि उसे गुप्त गंगा के पास स्थापित करो. तत्कालीन काशीपुर के महाराजा ज्योति प्रसाद सिंह देव के हाथों इस प्रतिमा को प्रतिष्ठापित किया गया था. गुप्त गंगा से सालों भर स्वच्छ जल निकलता है. यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु इस बहती जलधारा में स्नान भी करते हैं और जलपात्रों में भरकर अपने घर भी ले जाते हैं. कहा जाता है कि इसके उपयोग से पेट संबंधी बीमारियां ठीक हो जाती हैं. जलधारा को आम जनों तक पहुंचाने के लिए यहां कई नालियों का निर्माण कराया गया है. गुप्त गंगा में बीचोबीच एक गोल पत्थर है. कहा जाता है कि पहले प्रत्येक रविवार को यह पत्थर स्वयं चक्कर काटता था.

बोकारो के प्राचीनतम इतिहास का प्रत्यक्ष प्रमाण है चेचका

बोकारो जिले के चास के कुम्हरी गांव स्थित चेचका धाम बोकारो की एक विशिष्ट धरोहर है. इसे बोकारो के प्राचीनतम इतिहास के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में देखा जा सकता है. कथित तौर पर भगवान विष्णु के पदचिह्न और अस्त्र-शस्त्र तथा पत्थरों पर लिखी खास प्रकार की लिपि दर्शनीय है. इस लिपि को आज-तक पढ़ा नहीं जा सका है. माना जाता है कि जिस दिन इसको किसी ने पढ़ लिया, उस दिन इतिहास के कई गूढ़ रहस्यों का खुलासा हो जायेगा. वैसे, जैन धर्मावलंबी इस पदचिह्न को भगवान महावीर के पगचिह्न होने का दावा भी करते हैं. किसी समय इस इलाके में जैनियों का प्रभाव था. बताया जाता है कि वर्ष 1921 के सर्वेक्षण के दौरान यहां के अंग्रेज उपायुक्त को दामोदर नदी में अनेक अवशेष मिले थे.

Chechaka Pad Chinha Bokaro Jharkhand
चेचका में भगवान विष्णु के पदचिह्न. फोटो : प्रभात खबर

उन्होंने उसे शिव मंदिर में रखवा दिया था. उसकी विवरणी जिला गजेटियर में भी है. कुछ समय पहले रांची विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के प्रशिक्षक हरेंद्र सिन्हा ने भी अपनी टीम के साथ यहां पहुंचकर इसका निरीक्षण किया था. पूरी पड़ताल के बाद कहा था कि चेचका धाम पुरानी सभ्यता, संस्कृति से जुड़ा है और इसका संरक्षण जरूरी है. अब तक लिपि और पदचिह्न के संरक्षण के लिए कोई विशेष काम नहीं हुआ. फिलहाल यह स्थल हिंदू धर्मावलंबियों की आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है और इसे ‘मिनी बाबाधाम’ तक कहा जाता है. कच्छप पृष्ठभूमि में होने के कारण प्राचीनकाल में यह तांत्रिक पीठ भी था. दंतकथाओं एवं जनश्रुतियों के अनुसार, इसी स्थल पर जगन्नाथपुरी नामक तीर्थ स्थली बननी थी. भगवान विष्णु यहां साक्षात पधारे थे. यहां मौजूद पदचिह्नों को इसके प्रमाण के तौर पर देखा जाता है.

अंतरराष्ट्रीय धरोहर है लुगु बुरू घंटा बाड़ी धोरोम गाढ़

गोमिया प्रखंड के ललपनिया स्थित लुगु बुरू घंटा बाड़ी धोरोम गाढ़ अंतरराष्ट्रीय स्तर की धरोहर है. संतालियों में ऐसी मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व उनके पूर्वजों ने लुगु पहाड़ की तलहटी पर स्थित दोरबारी चट्टान पर लुगु बाबा की अध्यक्षता में निरंतर 12 वर्षों तक बैठक करके उनके सामाजिक संविधान और संस्कृति की रचना की थी. संताली समुदाय आज भी उसी का पालन कर रहा है. संतालियों की हर पूजा, विधि-विधान, कर्मकांडों तथा लोकनृत्य व लोकगीतों में लुगु बुरू का जिक्र आता है. धोरोमगढ़ के आसपास चट्टानों की भरमार है. वे ‘दोरबारी चट्टान’ के नाम से विख्यात हैं. इन्हीं चट्टानों को आसन के तौर पर इस्तेमाल कर पूर्वज यहां दरबार लगाते थे.

Lugu Buru Lalpania Bokaro Jharkhand
लुगु बुरू पहाड़. फोटो – प्रभात खबर

इनमें लगभग आधे दर्जन चट्टानों में संतालियों के पूर्वजों ने गड्डा कर उसका इस्तेमाल ओखली के रूप में किया था, जो आज भी मौजूद हैं. इनमें से कुछ देख-रेख के अभाव में भर गये हैं. यहां प्रत्येक वर्ष नवंबर में होने वाले दो दिवसीय विशाल धर्म महासम्मेलन में देश-विदेश से संतालियों का जमावड़ा होता है. पहाड़ी की चोटी पर स्थित ऐतिहासिक व रहस्यमयी गुफा के अंदर देवी दुर्गा और भगवान शिव समेत अन्य देवताओं की प्रतिमा व शिलालेख स्थापित हैं. इसलिए हिंदू धर्मावलंबियों के लिए भी लुगु बुरू पहाड़ी लोक आस्था का केंद्र बना हुआ है. वैसे तो संतालियों के धर्म महासम्मेलन को राजकीय महोत्सव का दर्जा मिला है और सरकारी स्तर पर कुछ काम भी हुए हैं, पर इसके संरक्षण व विकास के लिए अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है.

इसे भी पढ़ें

प्रशांत बोस की गिरफ्तारी के बाद प्रयाग मांझी ने पारसनाथ में संभाली थी नक्सलवाद की कमान

झारखंड : अब तक 806 नक्सली ढेर, 551 पुलिसकर्मी शहीद, 7 जिलों के 18 थाना क्षेत्रों में नक्सलियों का प्रभाव

पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकी हमले की झारखंड के नेताओं ने की निंदा, चंपाई सोरेन बोले- न भूलेंगे, न माफ करेंगे

Video: हॉकर के बेटे राजकुमार महतो को यूपीएससी में 557वां रैंक, कहा- हार्ड वर्क का विकल्प नहीं, घर में जश्न

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel