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पाकिस्तान के पागलपन का नतीजा है पहलगाम की घटना, कश्मीर पर बंटवारे के बाद से ही है नजर

Kashmir Terror Attack : पहलगाम में आतंकियों ने टूरिस्टों से उनका धर्म पूछकर उन्हें मारा, ताकि आम लोगों के बीच यह भावना घर कर जाए कि आतंकी हिंदुओं को मारना चाहते थे, मुसलमानों को नहीं. अगर ऐसा हुआ तो भारत में वर्षों से साथ रहते आए हिंदू–मुसलमान के बीच एक गहरी रेखा खिंच जाएगी. यह साजिश पाकिस्तान वर्षों से करता आया है और हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है. प्रधानमंत्री ने तो यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंकियों को कड़ा जवाब दिया जाएगा. आखिर बंटवारे के बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज क्यों नहीं आता है?

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Kashmir Terror Attack :  1947 में जब भारत आजाद हुआ, तो देश में कई ऐसे राज्य थे, जो अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखना चाहते थे और उन्होंने विलय के दस्तावेज (Instrument of Accession) पर साइन नहीं किया था. कश्मीर उनमें से ही एक था, हालांकि जब पाकिस्तान की ओर से कश्मीर पर हमला हुआ, तो कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने भारत से सहायता मांगी और विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए.उस वक्त कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था. कश्मीर भारत का हिस्सा तो बन गया, लेकिन कश्मीर पर पाकिस्तान ने जो कुदृष्टि गड़ाकर रखी थी उसकी वजह से भारत को कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष युद्ध झेलने. पहलगाम में मंगलवार को आतंकियों ने जो मौत का तांडव किया उसकी कड़ी भी पाकिस्तान के षडयंत्रों से ही जुड़ती है. 1990 के बाद से तो कश्मीर लगातार आतंकवाद की आग में जलता रहा है. 5 अगस्त 2019 को जब आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर से हटाया गया, तो इसका काफी विरोध हुआ, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि उसके बाद से ही घाटी में स्थिति सामान्य होने लगी थी. सैलानी कश्मीर लौट रहे थे, अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही थी, उसी वक्त पहलगाम की घटना घटी है.

कश्मीर के वर्तमान हालात की वजह क्या है?

Lal Chowk Srinagar
लाल चौक श्रीनगर

कश्मीर में आज जो हालात बने हैं, उसकी वजह तलाशने की कोशिश करें तो हमें 1947 में जाना होगा, जब पाकिस्तान के चंद महीनों के बाद ही पाकिस्तानी सेना कबाइलियों के वेश में जम्मू-कश्मीर में घुस गई थी और उसे पाकिस्तान में शामिल करने के लिए युद्ध छेड़ दिया था. उस वक्त कश्मीर के राजा ने विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, इसलिए भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर की सहायता नहीं कर पा रही थी. 24 अक्टूबर 1947 को उन्होंने भारत सरकार से मदद मांगी और विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर भी किया, जिसके बाद कश्मीर भारत का हिस्सा बना और भारतीय सेना ने पाकिस्तान को जवाब दिया. 1 जनवरी 1949 को भारत और पाकिस्तान की सेना के बीच सीजफायर लागू कर दिया गया. उस समय पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से कश्मीर से बाहर नहीं हुई थी, परिणाम यह हुआ कि जिन इलाकों पर पाकिस्तानी सेना का कब्जा था, वह पाकिस्तान के पास चला गया और जिनपर भारतीय सेना जीत हासिल कर चुकी थी वह भारत का हिस्सा है. 

वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिज्ञ एमजे अकबर कश्मीर की समस्या को समझने के लिए एक किताब भी लिखी है- Kashmir: Behind the Vale . प्रभात खबर के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि आज को कश्मीर के हालात हैं आतंकवाद का जो रूप दिख रहा है वह बुराई का सबसे बुरा रूप है. उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत तब से हो जाती है जब आजादी के बाद भारत  और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ था. पाकिस्तान की आर्मी कश्मीर के कई हिस्सों में घुस गई थी और जब हमारी सेना ने उन्हें खदेड़ना शुरू किया तो सीज फायर हो गया. सीज फायर के वक्त पाकिस्तान का कश्मीर के कई हिस्सों पर कब्जा था और उन्हें वहां से हटाया नहीं गया, जो आज का पीओके है. हमने पीओके पर अपना हक कभी नहीं छोड़ा है. 22 फरवरी 1994 को तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार के दौरान देश की संसद में एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें यह कहा गया था कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है और इसे भारत वापस लेगा. 

एमजे अकबर कहते हैं कि पीओके पर भारत ने अपना अधिकार तो हमेशा बताया पर उसे वापस लेने के लिए कभी कोई युद्ध नहीं किया. मेरी समझ से आज कश्मीर में जो हालात हैं, उसकी शुरुआत यहीं से होती है. हमने अपने राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को कभी युद्ध के जरिए पूरा नहीं किया. वहीं पाकिस्तान कश्मीर पर हमेशा नजरें गड़ाए बैठा रहा. 1971 में जब वह बुरी तरह पस्त हो गया, तो उसने अपनी रणनीति बदली और आतंकवाद का सहारा लिया. पाकिस्तान ने  A thousand cuts की नीति अपनाई और भारत को घाव देने लगा,  इसके पीछे उसकी मंशा कश्मीर को हथियाना ही था जो आज भी जारी है. कश्मीर को लेकर पाकिस्तान जो सोचता है यह उसकी आर्मी का पागलपन ही है. 

कश्मीरी  जनता हमेशा भारत के साथ रही है 

जब भी कोई आतंकवादी घटना होती है, तो लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर कश्मीरी जनता क्या चाहती है? इसपर एमजे अकबर कहते हैं कि कश्मीरी जनता हमेशा भारत के साथ रही है. अगर कश्मीरी जनता भारत के साथ नहीं होती तो पाकिस्तान कब का अपने इरादों में सफल हो जाता. 1965 के युद्ध में भी कश्मीरियों ने भारतीय सेना का साथ दिया. कश्मीरी यह जानते हैं कि जो कश्मीर पाकिस्तान के पास है उसकी अर्थव्यवस्था के क्या हालात हैं. जो बिहारी मुसलमान पाकिस्तान गए अपना मुल्क समझकर वे वहां मुहाजिर यानी प्रवासी बनकर रह गए. इन तमाम बातों से भारत के कश्मीरी वाकिफ हैं. भारत का निर्माण महात्मा गांधी के मानवता के प्रति प्रेम से बना है जबकि पाकिस्तान का निर्माण जिन्ना की हिंदुओं के प्रति नफरत से हुआ था और यही दोनों देशों के बीच सबसे बड़ा अंतर है.

पहलगाम की घटना हिंदू–मुसलमान के बीच खाई बनाने की कोशिश

देश के बंटवारे के बाद भी भारत में मुसलमान बेखौफ रहते आए हैं, जबकि पाकिस्तान जिसका निर्माण ही धर्म के आधार पर हुआ, वहां अशांति है.  यह बात हमेशा पाकिस्तान को परेशान करती रही है. वो भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप और हिंदू–मुसलमान के बीच एकता को तोड़ना चाहता है. यही वजह है कि पहलगाम में धर्म पूछकर लोगों को आतंकियों ने अपना निशाना बनाया है. 

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