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भगवान भरोसे मरीज अफसोस. आइसीयू में सदर अस्पताल

सदर अस्पताल इलाज कराने के लिए प्रतिदिन पहुंचने वाले सैकड़ों मरीजों को बिचौलियों की सांठ गांठ के कारण अस्पताल के कर्मी दवा की अनुपलब्धता, कर्मियों की कमी और संसाधन का अभाव बता कर शहर के निजी नर्सिंग होम व प्राइवेट क्लिनिक में भेजने का कार्य जारी है. सुपौल : महज तीन साल पहले तक राज्य […]

सदर अस्पताल इलाज कराने के लिए प्रतिदिन पहुंचने वाले सैकड़ों मरीजों को बिचौलियों की सांठ गांठ के कारण अस्पताल के कर्मी दवा की अनुपलब्धता, कर्मियों की कमी और संसाधन का अभाव बता कर शहर के निजी नर्सिंग होम व प्राइवेट क्लिनिक में भेजने का कार्य जारी है.

सुपौल : महज तीन साल पहले तक राज्य के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा केंद्र में से एक माना जाने वाला सदर अस्पताल वर्तमान समय में खुद आइसीयू में पहुंच कर हांफ रहा है. अस्पताल परिसर में बिचौलियाें का साम्राज्य कायम है. सदर अस्पताल इलाज कराने के लिए प्रतिदिन पहुंचने वाले सैकड़ों मरीजों को बिचौलियों की सांठ गांठ के कारण अस्पताल के कर्मी दवा की अनुपलब्धता, कर्मियों की कमी और संसाधन का अभाव बता कर शहर के निजी नर्सिंग होम व प्राइवेट क्लिनिक में भेजने का कार्य जारी है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस पूरे खेल को जान कर भी अनजान बने हुए हैं.
जिस कारण इस गोरखधंधे में लिप्त बिचौलिए खुलेआम सदर अस्पताल में अड्डा जमाये रहते हैं. वरीय अधिकारियों की खामोशी के कारण गांव देहात से आने वाले भोले भाले मरीज रोजाना आर्थिक व मानसिक शोषण का शिकार बन रहे हैं. खास कर नवजात शिशु और शल्य क्रिया के मरीजों को निजी क्लिनिक भेजने के लिए स्वास्थ्य कर्मी सहित बिचौलियों की होड़ लगी रहती है.
सदर अस्पताल बना दलालों का अड्डा : अस्पताल में व्याप्त कुव्यवस्था के कारण इन दिनों अस्पताल परिसर दलालों का अड्डा बन चुका है. सदर अस्पताल पहुंचने वाले मरीज जब घंटे दो घंटे में कुव्यवस्था देख कर परेशान होते हैं तो अस्पताल के कर्मी उसे खुले तौर पर मरीजों को किसी निजी चिकित्सालय में उपचार कराने को बाध्य करते हैं. अस्पताल में अड्डा जमाये दलाल मरीज को अपने साथ लेकर चिह्नित क्लिनिक तक पहुंचाते हैं. इस एवज में दलालों को क्लिनिक संचालक द्वारा तय रकम दी जाती है. अन्य दलाल भी सदर अस्पताल के चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कर्मियों की आवभगत में जुटे रहते हैं.
कमीशन के लिए नवजात को किया जाता है रेफर : इन दिनों सदर अस्पताल के कर्मियों ने कमाई का नया जरिया इजात किया है. मानवीय संवेदना को तार – तार कर पैसे बटोरने की लालच में यहां सब कुछ जायज माना जा रहा है. संस्थागत प्रसव के लिए पहुंची प्रसूता को प्रसव पीड़ा के बाद नवजात की स्थिति खराब बतायी जाती है. सदर अस्पताल में गहन शिशु चिकित्सा इकाई में वार्मर व फोटो थेरेपी मशीन रहने के बावजूद शिशु को शहर के प्राइवेट क्लिनिक में भेजा जाता है. जहां वार्मर या फोटोथेरेपी मशीन में शिशु को रखने की एवज में क्लिनिक संचालक द्वारा तीन से चार हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वसूले जाते हैं.
दवा का अभाव से जूझ रहा इमरजेंसी वार्ड : सदर अस्पताल सुपौल अपनी लचर व्यवस्था के कारण सरकार की मुफ्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने के दावों की धज्जियां उड़ा रही है. अस्पताल उपाधीक्षक डॉ एन के चौधरी के मनमानी कार्यशैली और कमजोर प्रबंधन क्षमता के कारण रोजाना सैकड़ों मरीज परेशान हो रहे हैं. अस्पताल की इमरजेंसी विभाग में एक भी जरूरी दवा उपलब्ध नहीं रहने के कारण मरीज एवं परिजन खुले बाजार से दवा की खरीदारी कर उपचार करवाने को लेकर विवश हो रहे हैं.
जमीन लगाया बंधक तब कराया प्रसव
गुरुवार को सदर अस्पताल में मौजूद बसविट्टी गांव की प्रसूता आरती कुमारी की मां अनीता देवी ने सदर अस्पताल में चल रहे कमीशनखोरी व बिचौलियागिरी का पर्दाफास किया है. सदर अस्पताल की व्यवस्था से पीड़ित अनीता ने बताया कि वे बीते 21 अप्रैल को अपनी पुत्री की प्रसव कराने के लिए सदर अस्पताल पहुंची थी. जहां जांच के बाद चिकित्सकों ने सिजेरियन द्वारा प्रसव होने की बात कही और संसाधन का अभाव बता कर निजी क्लिनिक में जाने के लिए कहा. लाचार मरीज के परिजनों ने
चिकित्सकों से लाख आरजु मिन्नत कर ऑपरेशन सहित अन्य दवा बाजार से खरीद कर लाने के शर्त पर सदर अस्पताल में ही सिजेरियन के लिए राजी कर लिया. ऑपरेशन में लगने वाले करीब छह हजार रुपये की दवा बाजार से परिजनों ने खरीदा. ऑपरेशन के बाद नवजात शिशु की स्थिति खराब बताते हुए अस्पताल के कर्मियों ने अनीता को नवजात को लेकर डॉ संजय मिश्र के क्लिनिक में भेज दिया. जहां फोटोथेरेपी पर शिशु को रखने के एवज में अनीता से 25 सौ रुपये लिया गया.
साथ ही डॉक्टर की फीस व दवा पर एक हजार रुपये खर्च हुए. ऑपरेशन से लेकर अब तक की दवा अनीता बाजार से खरीद कर लायी है. अब तक दवा खरीदने में इन्हें करीब सोलह हजार रुपये खर्च हुए हैं. अनीता ने बताया कि वे जमीन बंधक रख कर दवा का इंतजाम कराया है. अब सवाल उठना लाजिमी है कि जब वार्मर और फोटोथेरेपी की सुविधा अस्पताल में उपलब्ध है तो फिर अस्पताल के ही चिकित्सक के निजी क्लिनिक में आरती के नवजात को क्या आर्थिक शोषण के लिए भेजा गया था?

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