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शरद को पहले ही दे देना चाहिए था इस्तीफा : जदयू

नयी दिल्ली: जदयू ने राज्यसभा के सभापति एम वैंकेया नायडू द्वारा पार्टी के बागी सांसदों शरद यादव और अली अनवर को सदन की सदस्यता से अयोग्य करार देने के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि दोनों में जरा भी नैतिकता होती तो उन्हें पहले ही राज्यसभा से इस्तीफा दे देना चाहिए था. जदयू […]

नयी दिल्ली: जदयू ने राज्यसभा के सभापति एम वैंकेया नायडू द्वारा पार्टी के बागी सांसदों शरद यादव और अली अनवर को सदन की सदस्यता से अयोग्य करार देने के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि दोनों में जरा भी नैतिकता होती तो उन्हें पहले ही राज्यसभा से इस्तीफा दे देना चाहिए था. जदयू के महासचिव संजय झा ने यादव पर आरोपों के करारे प्रहार करते हुए उन पर पार्टी प्रमुख नीतीश कुमार को कमजोर करने का आरोप लगाया.

संजयझा ने कहा कि नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिये हीशरद यादव ने कांग्रेस से हाथ मिलाकर सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी का विरोध किया. जबकि पार्टी अध्यक्ष के रूप में कुमार पहले ही इन दोनों फैसलों का समर्थन कर चुके थे. उन्होंने कहा कि शरद यादव जब जदयू के अध्यक्ष थे तब उन्होंने कुमार द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री बनाये गये जीतनराम मांझी को उनके ही खिलाफ भड़काया था. बाद में मांझी ने कुमार के खिलाफ खुलकर बगावत कर दी.

जदयू महासचिव ने कहा कि अगर भाजपा के साथनीतीश कुमार द्वारा हाथ मिलाने के फैसले पर शरद यादव को एतराज था तो उन्हें राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देना चाहिए था, क्योंकि राज्यसभा की सदस्यता के लिये उन्हें वोट देने वाले विधायक और विधान पार्षद उनके इस रख के विरुद्ध थे.संजय झा ने कहा कि नीतीश कुमार के फैसले का विरोध करने के बाद शरद यादव के साथ एक भी विधायक और विधान पार्षद के अलावा पार्टी का कोई जिला अध्यक्ष भी नहीं था.

संजयझा ने अली अनवर को राजनीतिक इतिहास में अहसान फरामोश होने का सटीक उदाहरण बताते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने उन्हें सीधे उठाकर राज्यसभा भेज दिया. राज्यसभा के दोनों चुनाव में अनवर भाजपा के समर्थन से जीते और अब उन्हें भाजपा से परहेज हो गया. उन्होंने कहा कि अनवर का कार्यकाल तो कुछ ही महीनों में खत्म हो रहा था फिर भी उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया. उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य मुकुल रॉय का उदाहरण देते हुए कहा कि राय ने पहले राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया फिर भाजपा में शामिल हुए. इसी तरह अगरशरद यादव और अली अनवर में जरा भी नैतिकता शेष होती तो उन्हें पहले संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे देना चाहिए था.

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