अंजलि पांडे की रिपोर्ट
Artificial Rain: आर्टिफिशियल रेन ‘बिना मौसम बरसात’ कराने की एक प्रक्रिया है जिसे क्लाउड सीडिंग तकनीक की मदद से कराया जाता है. इस प्रक्रिया में बादलों पर रसायनों के छिड़काव किए जाते हैं. यह छिड़काव बादलों में बूंदों के बनने की गति को बढ़ा देता है जिससे बारिश होने लगती है. इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड, या रॉक साल्ट जैसे रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है.
कैसे पूरी होती है क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया?
क्लाउड सीडिंग तकनीक में रसायनों के एक मिक्स को तैयार किया जाता है जिसमें सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड, पोटेशियम आयोडाइड जैसे रसायन शामिल होते हैं. मौसम वैज्ञानिक नमी युक्त बादलों की पहचान करते हैं और तैयार किए गए फॉर्मूले को बादलों में छिड़का जाता है. इस छिड़काव से बादलों में बन रहे बारिश के बूंद एक दूसरे से आकर्षित होने लगते हैं जिससे बूंदों का भार बढ़ जाता है और यही जमीन पर बारिश के रूप में गिरते हैं. इस प्रक्रिया में छिड़काव के लिए विमान का उपयोग किया जाता है. विमान में लगे फ्लेयर सिस्टम की मदद से फॉर्मूले को बादलों पर छिड़का जाता है.
क्यों कराई जाती है आर्टिफिशियल रेन?
आर्टिफिशियल रेन अनेक परेशानियों से निपटने के लिए कराई जाती है. वायु की गुणवत्ता को सुधारने से लेकर सूखे से परेशान क्षेत्रों को राहत दिलाने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है. अमेरिका में सूखे की समस्या से बचने के लिए 60 और 70 के दशक में कई बार आर्टिफिशियल रेन कराई गई है. चीन ने भी प्रदूषण से निपटने के लिए क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया है. भारत में 50 के दशक में महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के लखनऊ में आर्टिफिशियल रेन कराई गई है. अब दिल्ली के बढ़ते वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए यहाँ भी आर्टिफिशियल रेन कराने की योजना बनाई जा रही है.
दिल्ली के किन इलाकों में कराई जाएगी आर्टिफिशियल रेन?
आर्टिफिशियल रेन के ट्रायल के लिए कम हवाई सुरक्षा वाले इलाके को चुना गया है. उत्तर-पश्चिम और बाहरी दिल्ली के इलाके में 5 बार विमान उड़ान भरेंगे। प्रत्येक उड़ान 90 मिनट की होगी जो 100 वर्ग किलोमीटर को कवर करेगी. उड़ान के दौरान फ्लेयर सिस्टम से एक रासायनिक मिक्स का बादलों में छिड़काव किया जाएगा.
IIT कानपुर ने तैयार की है कृत्रिम बारिश की योजना
IIT कानपुर और मौसम विभाग पुणे को ‘क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन’ का जिम्मा सौंपा गया है. कृत्रिम बारिश की योजना IIT कानपुर ने तैयार की है जबकि तकनीकी जिम्मेदारी मौसम विभाग पुणे को दी गई है. पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को एक प्रस्ताव भी भेजा गया है. जिसमें निर्धारित तारीख के बीच मौसम खराब रहने की स्थिति में वैकल्पिक विंडो का अनुरोध किया गया है ताकि बाद की तारीख में परीक्षण किया जा सके.
नवंबर से जनवरी तक रहता है दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बेहद खराब
दिल्ली में सर्दी के महीनों में खासकर नवंबर से जनवरी तक प्रदूषण का स्तर बेहद बढ़ जाता है. सर्दी के दौरान तापमान में गिरावट होती है और वायु की गति धीमी हो जाती है जिससे प्रदूषक तत्व हवा में जमा हो जाते हैं. तत्वों के जमा हो जाने के कारण वायु की गुणवत्ता बिगड़ जाती है जो धुंध को भी जन्म देती है. इसी परेशानी से लड़ने के लिए रसायनों के छिड़काव की मदद से आर्टिफिशियल रेन कराई जाएगी जो हवा में मौजूद प्रदूषक तत्वों को धो देगी और वायु की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकेगा.