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प्रवचन ::: अपने आप फलित होते हैं एकाग्रता तथा ध्यान इसके लिये योगनिद्रा, अंतमौंन व त्राटक बड़े उपयोगी हैं, क्योंकि इनसे हमें अपनी त्रुटियों का ज्ञान होता है. धीरे-धीरे प्रयत्न द्वारा हम उन्हें दूर करते हैं. नई आदतें डालते हैं. इस तरह हमें पारा, पत्थर अथवा नई चेतना की उपलब्धि होती है. दैनिक जीवन में अपने विचारों तथा अनुभूतियों के प्रति सचेत होइये. भावनायें हर क्षण बदलती रहती है. कभी हमें भय अथवा क्रोध की अवस्था में शरीर से लहर की तरह एड्रिनलीन निकलता अनुभव होगा. कभी हम प्रसन्न रहते हैं और कभी आंसू बहाते हैैं. भावनाओं की निरंतरता एवं उत्तेजना तथा विचारों की चंचलता के बीच संबंध को देखिये. कभी-कभी कोई विचार भावना में और भावना विचार में बदलती है. अंत में विचारों को चेतन प्रयत्न द्वारा ठोस रूप दिया जा सकता है. सतत अभ्यास तथा साधना द्वारा हम अपने अंदर ध्यान उत्पन्न कर सकते हैं. हमारी नाड़ियां तथा नलिकाविहिन ग्रंथियां शुद्ध तथा सक्रिय होती हैं. एकाग्रता तथा ध्यान अपने आप फलित होते हैं. यह पारस पत्थर अथवा ध्यान हमारे भीतर ही होता है. कीमियागर की प्रक्रियाओं द्वारा साधना, चेतना तथा ऊर्जा का एकीकरण होता है. इस लक्ष्य की प्राप्ति हो जाने पर हम स्वयं को पारस बना सकते हैं तथा अपने संपर्क में आने वाले लोगों को ध्यान के आध्यात्मिक पथ पर मर्गदर्शन देकर सोना बना सकते हैं.यात्रा के लिये भीतर मुड़िये, अपनी सभी कलाओं के लिये पारस पत्थर आपको कहीं बाहर नहीं मिलेगा : एंजिलस सायलेसियस

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