Champai Soren | सरायकेला, शचींद्र दाश: देश की प्रमुख भाषाओं के साथ अब संसद में चल रही कार्यवाही का अनुवाद संथाली भाषा में भी उपलब्ध होगा. संथाली भाषा को यह सम्मान देने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रति आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ पहला विद्रोह करने वाले बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू एवं पंडित रघुनाथ मुर्मू जैसे विद्वानों द्वारा बोली जाने वाली संथाली भाषा (ओलचिकी लिपि) अब संसद तक पहुंच गयी है.
गर्व से गद-गद हुए करोड़ों आदिवासी
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ट्वीट कर आभार जताया. उन्होंने कहा कि भारतीय संसद में संथाली भाषा (ओलचिकी लिपि) की एंट्री ने इस भाषा को बोलने वाले करोड़ों लोगों समेत सभी आदिवासियों को गर्व से भर दिया है. संसद में नियुक्त किये गये संथाली अनुवादकों को बधाई एवं शुभकामनाएं.
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कई दशकों तक चले थे आंदोलन
संस्कृति एवं लोक परंपराएं आदिवासी समाज का अटूट हिस्सा रही हैं. इस भाषा की मान्यता हेतु कई दशकों तक चले आंदोलन के बाद, आदरणीय अटल जी के शासन काल में संथाली भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था, जिसके बाद इस भाषा का तेजी से विकास हो रहा है. देश की प्रमुख भाषाओं के साथ संसद में संथाली की उपस्थिति, इस भाषा की विकास-यात्रा में एक मील का पत्थर साबित होगी.
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