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Success Story| पोटका (जमशेदपुर), संजय सरदार : साहित्य अकादमी के अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में झारखंड की एक बेटी कविता पाठ करेगी. उसका नाम मोनिका सिंह है. मोनिका भूमिज समाज से आती हैं और पोटका से भूमिज समाज की पहली युवा हैं, जो साहित्य अकादमी के अंतरराष्ट्रीय आयोजन में भाग लेंगी. वह टाटा फाउंडेशन जमशेदपुर और ओयोन आखाड़ में भूमिज भाषा की शिक्षा देतीं हैं.
25 से 28 सितंबर तक पटना में होगा ‘उन्मेष : अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव’ का आयोजन
साहित्य अकादमी, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से और बिहार सरकार के सहयोग से ‘उन्मेष : अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव’ का तीसरा संस्करण 25 से 28 सितंबर 2025 तक पटना के सम्राट अशोक कन्वेंशन सेंटर में होगा. गांधी मैदान रोड के सम्राट अशोक कन्वेंशन सेंटर में इस तीन दिवसीय महोत्सव में भारत और विदेश से लगभग 600 लेखक, विद्वान, समीक्षक, अनुवादक, साहित्यिक हस्तियां और अन्य प्रमुख व्यक्ति शामिल होंगे.
- साहित्य अकादमी का उन्मेष : अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव 25 सितंबर से पटना में
- पोटका की भूमिज युवा मोनिका सिंह को कविता पाठ के लिए विशेष आमंत्रण
- साहित्य अकादमी के अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिरिलडीह गांव की मोनिका सिंह भूमिज समाज की पहली युवा.
- 24 साल की मोनिका सिंह टाटा स्टील फाउंडेशन जमशेदपुर एवं ओयोन आखाड़ में भूमिज भाषा की शिक्षिका हैं.
25 सितंबर को ‘द जॉय ऑफ लाइफ : ट्राइबल पोएट मीट’
महोत्सव के दौरान, विशेष रूप से 25 सितंबर 2025 को, ‘द जॉय ऑफ लाइफ : ट्राइबल पोएट मीट’ का आयोजन होगा. इसमें पूर्वी सिंहभूम जिला के पोटका प्रखंड के तिरिलडीह की भूमिज युवा मोनिका सिंह को भूमिज कविता पाठ के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है. इसके लिए साहित्य अकादमी के सचिव डॉ के श्रीनिवासराव ने विधिवत पत्र भेजा है.
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Success Story: स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं मोनिका सिंह
पोटका के तेंतला पंचायत अंतर्गत तिरिलडीह गांव की 24 वर्षीय भूमिज युवा मोनिका सिंह टाटा स्टील फाउंडेशन एवं ओयोन आखड़ा, तिरिलडीह के द्वारा संचालित भूमिज भाषा स्कूल में शिक्षिका हैं. जनजातीय भूमिज कविता पाठ एवं गीत में उनकी काफी रुचि है. वह स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं. वह साहित्य अकादमी के अंतराष्ट्रीय कार्यक्रम में भाग लेने वाली पहली भूमिज युवा होंगी.
‘कविताएं लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं और साहित्य को संरक्षित करने का माध्यम’
साहित्य अकादमी के सचिव डॉ के श्रीनिवासराव के द्वारा भेजे गये पत्र में कहा गया है कि भारतीय जनजातीय कविता हमारी समृद्ध मौखिक परंपराओं, जीवित वास्तविकताओं और प्रकृति के गहरे संबंध की झलक देती है, जो उनकी सामाजिक पहचान को परिभाषित करती है. जब इसे मंच पर प्रस्तुत किया जाता है, ‘पाठ या वाचन के रूप में’ तो जनजातीय भाषाओं की लयात्मक लय लोक धुनों और पैतृक स्मृतियों से मिलकर विस्थापन, पारिस्थितिकीय संतुलन, आध्यात्मिक विश्वास और सामाजिक अन्याय जैसे विषयों को जीवंत करती है.
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समकालीन जनजातीय कविताएं इन विषयों को लाती हैं सामने
समकालीन जनजातीय कविता विस्थापन, भेदभाव और पहचान खोने की पीड़ा को भी सामने लाती है. विशेषकर तब, जब लोग अपने ग्रामीण परिवेश को छोड़कर शहरों की ओर पलायन करते हैं. इस तरह की कविताएं न केवल लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं और साहित्य को संरक्षित करने का माध्यम हैं, बल्कि जनजातीय कवियों को अपनी दृष्टि से मुख्यधारा की कथाओं को चुनौती देने का अवसर भी देती हैं.
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