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BOKARO NEWS: बुनियादी सुविधाओं से वंचित है आदिवासी गांव सूयाडीह

BOKARO NEWS: पेटरवार प्रखंड के पिछरी पंचायत का मामला, सड़क, पानी व अन्य समस्याओं से जूझ रहें हैं ग्रामीण

विप्लव सिंह, जैनामोड़, पेटरवार प्रखंड के पिछरी पंचायत स्थित सूयाडीह गांव जंगल के बीच में बसा हुआ है. गांव की आबादी करीब 400 व मकान करीब 50 है. ये आदिवासी बहुल गांव है. यहां के लोगों का जीविकोपार्जन का मुख्य जरिया मजदूरी व खेती-किसानी है. इस गांव के लोग अभी भी सड़क, पानी व अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं. यहां एक भी स्कूल नहीं है. ये गांव पंचायत में है. बावजूद विकास ना होना अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता को दिखाता है.

सूयाडीह गांव पहुंचने के लिए बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कर्मचौकी की सड़क से लगभग एक किलोमीटर जंगल होते हुए जाना पड़ता हैं. जो पूरी तरह कच्ची व पथरीली है. इस कारण आए दिन लोग इस सड़क मे गिरकर घायल होते हैं. इतना ही नहीं बारिश के दिनों में यह गांव टापू बनकर रह जाता है. ग्रामीण इस गांव में कैद हो जाते हैं. क्योंकि कच्ची सड़क बरसात में दलदल बन जाती है. साइकिल चलाना, तो दूर पैदल भी चलना मुश्किल हो जाता है. ग्रामीणों ने बताया कि बरसात का मौसम उनके लिए किसी सजा काटने जैसा होता है.

इलाज के लिए जाना पड़ता है फुसरो या जैनामोड़

सड़क नहीं रहने से जंगलों के बीच बसे इस गांव में ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाती है. उन्हें उपचार कराने के लिए फुसरो व जैनामोड़ जाना पड़ता है. बारिश में यहां लोगों को बीमार होना या फिर किसी गर्भवती महिला की डिलीवरी होना बहुत बड़ी समस्या हो जाती हैं. उन्हें खटिया से कर्माचौकी की सड़क तक ले जाना पड़ता है. इसके बाद ही गांव के लोगों को वाहन की व्यवस्था करनी पड़ती है.

प्राथमिक विद्यालय नहीं

ग्रामीणों ने बताया कि गांव में प्राथमिक विद्यालय नहीं हैं. बच्चे जैसे-तैसे चार किलोमीटर दूर स्कूल जाते हैं. गांव में एक प्राथमिक विद्यालय था, जो कई साल पूर्व में बंद हो गया है.

खेत में बना कुआं ही एक मात्र सहारा

गर्मी से लेकर बरसात तक गांव के लोगों को खेत में बना कुआं ही एक मात्र सहारा हैं. क्योंकि इस गांव में अभी तक पेयजल विभाग से एक भी चापाकल तक लगाया नहीं गया है. ग्रामीणों ने कहा कि पहले यह कुआं एक चुआं था. एक बार इस पानी को पीने से पूरा गांव बीमार पड़ गया था. इसके बाद गांव लोगों ने बैठक की. इस चुआं को गांव के लोगों ने श्रमदान व पैसे उठा कर कुआं बनाया गया. महिलाओं का कहना हैं कि दिन हो या रात खेतों के पगडंडी होते हुए कुएं तक आना पड़ता है, जिसे विषैला जीव जंतु से भी हम लोगों को खतरा व डर बना रहता है.

ग्रामीणों ने कहा : सिर्फ आश्वासन मिलता है, समाधान नहीं होता

बाबूचंद सोरेन ने कहा कि हर बार विधायक व सांसद सिर्फ आश्वासन देकर ही जाते हैं, लेकिन समस्या का समाधान नहीं कर पाते. दुर्गा मांझी ने कहा कि गांव में तो वोट मांगने आते हैं, जीतने के बाद कौन किसको याद रखता है. चुनाव के समय ही जनता की याद आती है. करमी देवी ने कहा कि जल्द-जल्द से इस सड़क का निर्माण हो. हीरामणि देवी ने कहा कि गांव में एक भी सरकारी चापाकल नहीं हैं. अंजली कुमारी ने कहा कि पढ़ने के लिए बच्चों को चार किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, लेकिन गांव के छोटे बच्चे, तो स्कूल बंद हो जाने से अभी भी अशिक्षित रह गये हैं. करमा मांझी ने कहा कि गांव के लोगों को सड़क, पानी से लेकर सरकारी सुविधाएं नहीं होने के चलते अभी भी जीने के लिए बच्चों से लेकर बूढ़े तक जिंदगी मुश्किल भरी है. खिरोधर किस्कू ने कहा कि समस्याओं को लेकर कई बार जनप्रतिनिधि व अधिकारियों से बात की, लेकिन अभी तक किसी ने भी सुधी नहीं ली.

कोटमामला संज्ञान में नहीं है. अब जानकारी मिलने पर पहल की जायेगी. अगर सड़क नहीं बनी है, तो मुखिया मद से सड़क को तुरंत बनाया जायेगा.

संतोष कुमार महतो,

बीडीओ, पेटरवार

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