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पांच बार गिरिडीह लोकसभा सीट जीतनेवाली कांग्रेस के लिए वापसी बनी बड़ी चुनौती

राकेश वर्मा, बेरमो : गिरिडीह लोकसभा सीट पर पांच बार जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस करीब तीन दशक से वापसी को एड़ी-चोटी एक कर रही है. 1984 में डॉ सरफराज अहमद के जीतने के बाद 1991 से कांग्रेस करीब-करीब बैक फुट पर चली गयी है. 1952 में पहले संसदीय चुनाव के वक्त हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र […]

राकेश वर्मा, बेरमो : गिरिडीह लोकसभा सीट पर पांच बार जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस करीब तीन दशक से वापसी को एड़ी-चोटी एक कर रही है. 1984 में डॉ सरफराज अहमद के जीतने के बाद 1991 से कांग्रेस करीब-करीब बैक फुट पर चली गयी है.

1952 में पहले संसदीय चुनाव के वक्त हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र दो भागों में विभक्त था. एक हजारीबाग पूर्वी में हजारीबाग लोकसभा सीट थी तथा दूसरे हजारीबाग पश्चिमी में गिरिडीह लोकसभा सीट थी.
पहले सांसद के काम रहे यादगार : हजारीबाग पश्चिमी से 1952 में गिरिडीह के स्व नागेश्वर प्रसाद सिन्हा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था. नागेश्वर प्रसाद सिन्हा उर्फ नागो बाबू गिरिडीह, कोडरमा व हजारीबाग के चर्चित गांधीवादी नेता थे.
पहली बार सांसद बनने के बाद उन्होंने गिरिडीह के गिरिडीह व पचंबा में शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम काम किया. पचंबा में हाई स्कूल उन्होंने ही बनवाया. गिरिडीह में कॉलेज स्थापना में अहम भूमिका अदा की. खंडोली डैम से गिरिडीह में पेयजलापूर्ति की व्यवस्था करायी.
इंदिरा लहर तक टिकी रही मैदान में : 1957 के दूसरे लोस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी नागेश्वर प्रसाद सिन्हा काजी एसए मतीन से हार गये. नागेश्वर सिन्हा को इस चुनाव में 38945 मत तथा काजी मतीन को 64602 मत मिले थे.
1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी चपलेंदु भट्टाचार्य राजा रामगढ़ की जनता पार्टी के प्रत्याशी बटेश्वर सिंह ठाकुर से हार गये. बटेश्वर सिंह ठाकुर को 50469 मत मिला था जबकि चपलेंदु भट्टाचार्य को 47011 मत मिला था.
1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदला तथा गिरिडीह के डॉ इम्तियाज अहमद कांग्रेस से लड़े. इस बार डॉ इम्तियाज ने एमएस ओबेराय को हराकर दूसरी बार कांग्रेस की झोली में गिरिडीह सीट डाली. डॉ इमित्याज अहमद को 70219 मत तथा एमएस ओबराय को 66388 मत मिला था.
1972 के चुनाव में एक बार फिर से चपलेंदु भट्टाचार्य कांग्रेस के प्रत्याशी बनाये गये तथा उन्होंने कृष्ण बल्लभ सहाय को पराजित किया. चपलेंदु भट्टाचार्य को 67046 मत तथा कृष्ण वल्लभ सहाय को 62892 मत मिला था. 1977 के चुनाव में कांग्रेस के डॉ इम्तियाज अहमद दूसरे स्थान पर रहे थे. वे जनता पार्टी के रामदास सिंह से पराजित हुए थे.
1980 के चुनाव में इंटक के दिग्गज नेता स्व बिंदेश्वरी दुबे कांग्रेस के प्रत्याशी बनाये गये. स्व दुबे ने भाजपा के रामदास को पराजित कर चौथी बार गिरिडीह सीट कांग्रेस की झोली में डाला. स्व दुबे को 105282 मत तथा रामदास सिंह को 79253 मत मिला था.
1984 के इंदिरा लहर में इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी डॉ सरफराज अहमद ने जीत दर्ज की. उन्होंने झामुमो के बिनोद बिहारी महतो को हराया था. सरफराज अहमद को 195519 तथा बिनोद बिहारी महतो को 70766 मत मिला था. इसके बाद 1989 एवं 1991 के चुनाव में कांग्रेस के सरफराज अहमद तीसरे स्थान पर रहे थे.
1996 में राजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा
1996 में गिरिडीह सीट से बेरमो निवासी इंटक नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह कांग्रेस से लड़े, पर पराजित हो गये. 1998 के लोस चुनाव में पुन: राजेंद्र सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी बने तथा दूसरे स्थान पर रहे.
विजयी भाजपा प्रत्याशी रवींद्र कुमार पांडेय को 285523 मत तथा राजेंद्र सिंह को 216732 मत मिला. पुन: 1999 के लोस चुनाव में राजेंद्र सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी बने और भाजपा के रवींद्र पांडेय को जोरदार टक्कर देते हुए मात्र 20 हजार मतों से हार गये.
चार चुनाव से गठबंधन की गांठ बांध रही कांग्रेस
पांच बार गिरीडीह सीट पर जीत का झंडा बुलंद करने वाली कांग्रेस चार लोकसभा चुनाव से झामुमो के साथ मिल कर गठबंधन की गांठ बांध रही है. 2005 के लोस चुनाव में गठबंधन के तहत कांग्रेस से इस सीट को झामुमो ने छीन लिया तथा टेकलाल महतो ने जीत दर्ज की. इसके बाद 2009 के चुनाव में पुन: टेकलाल महतो प्रत्याशी बने, लेकिन भाजपा से हार गये.
2014 में गठबंधन के तहत झामुमो ने जगरनाथ महतो को प्रत्याशी बनाया, लेकिन वे भी भाजपा से हार गये. 2019 के चुनाव में एक बार से महागठबंधन के तहत झामुमो ने इस सीट से जगरनाथ महतो को प्रत्याशी बनाया है. पिछले तीन चुनावों में झामुमो के साथ कांग्रेस का गठबंधन तो जरूर हुआ, पर कांग्रेसी वोटरों का कितना लाभ झामुमो को मिलता रहा है, यह झामुमो ही जानता है.

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