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सच और हक की लड़ाई में राजनीतिक नफा नुकसान की नहीं करते थे परवाह लालू सोरेन

दीपक सवाल, कसमार : लालू सोरेन की सियासत के निराले अंदाज थे़ वह मुखर थे़ शोषित-पीड़ितों के पक्ष में लड़ना जानते थे़ बेशक ईमानदार भी थे़ छल-प्रपंच और सत्ता की राजनीति से बहुत दूर रहे़ राजनीतिक नफा-नुकसान की परवाह किये बिना सच को बेबाक बोलने और अलग राह चुनने-चलने की क्षमता रखते थे़ दिशोम गुरु […]

दीपक सवाल, कसमार : लालू सोरेन की सियासत के निराले अंदाज थे़ वह मुखर थे़ शोषित-पीड़ितों के पक्ष में लड़ना जानते थे़ बेशक ईमानदार भी थे़ छल-प्रपंच और सत्ता की राजनीति से बहुत दूर रहे़ राजनीतिक नफा-नुकसान की परवाह किये बिना सच को बेबाक बोलने और अलग राह चुनने-चलने की क्षमता रखते थे़ दिशोम गुरु शिबू सोरेन के परिवार में वह इकलौते ऐसे सदस्य रहे, जो गुरुजी और उनकी पार्टी से बगावत कर राजनीति की अलग राह चल पड़े थे़
लालूजी को जब लगा कि झामुमो में उनकी नहीं सुनी जा रही और वह इस पार्टी में रहकर झारखंडी अरमानों के अनुरूप राजनीति नहीं कर सकते, तो एक झटके में खुद को किनारा कर लिया़ झामुमो उलगुलान को दोबारा अस्तित्व में लाया़ बतौर केंद्रीय उपाध्यक्ष झामुमो उलगुलान को नेतृत्व देकर महज कुछ महीनों में ही पार्टी को खड़ा कर दिखाया़ इनके निधन से राज्य की राजनीति में एक अलग तरह की रिक्तता महसूस की जाएगी़ सभी का मानना है कि झारखंड व झारखंडियों ने एक लड़ाकू और पक्के झारखंडी नेता को खो दिया है़ इसे पाट पाना संभव नहीं.
गुरुजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर किया आंदोलन
27 नवंबर 1957 को अपने पिता सोबरन मांझी की हत्या के पहले लालू सोरेन अपने बड़े भाई शिबू सोरेन के साथ गोला के छात्रावास में रहकर पढ़ाई करते थे़ अन्य भाई भी साथ थे़ पिता की हत्या के बाद उनका परिवार टूट-सा गया़ किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. हाल के वर्षों में लालूजी का गुरुजी व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ भले मतभेद हो गया, लेकिन सच्चाई यह भी है कि लालूजी ने गुरुजी का साथ शुरुआती दिनों से ही दिया़
आंदोलनों में गुरुजी के साथ लक्ष्मण जैसी भूमिका निभायी़ पिता की हत्या के करीब चार साल बाद 1961 में जब शिबू सोरेन ने कसमार प्रखंड के केदला गांव की ओर रुख किया, तो लालूजी भी महज 12 साल की उम्र में ही उनके साथ निकल पड़े थे़ दोनों भाई काफी दिनों तक यहां रहे और खुद को आंदोलन के लिए तैयार किया़ साठ के दशक में शिबू सोरेन ने जब महाजनों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया, तब इस आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने में लालूजी की भी अहम भूमिका रही़
उन दिनों सैकड़ों लोग महाजनों के चंगुल में फंसकर तबाह हो रहे थे़ लालूजी ने गुरुजी के साथ मिलकर महाजनों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और लोगों को महाजनों के चंगुल से मुक्त कराया़ इस लड़ाई में लालूजी को कई बार विषम परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ा़ बताया जाता है कि वर्ष 1972-73 में महाजनी आंदोलन के दौरान बगोदर में महाजनों ने इन्हें तीन दिनों तक बंधक बना लिया था़
इसकी जानकारी मिलने के बाद करीब 10 हजार आदिवासी जुटे और लालूजी को छुड़ाया था़ इसके बाद इन्होंने आक्रामक तेवर अपनाया़ उन दिनों सोरेन परिवार में गुरुजी के बाद लालूजी ही राजनीतिक विकल्प हुआ करते थे़ गुरुजी जिन कार्यक्रमों, सभाओं में शामिल नहीं हो पाते थे, वहां लालूजी ही प्रतिनिधित्व करते थे़
लालूजी पर लोगों, खासकर आदिवासियों को अपार भरोसा था़ गांवों के छोटे-बड़े विवादों को सुलझाने के लिए भी लोग उन्हें याद करते थे़ झारखंड आंदोलन में भी लालू सोरेन की अग्रणी भूमिका रही है़ बंदी से लेकर नाकेबंदी तक को सफल बनाने के लिए लालू ने आंदोलनों का नेतृत्व किया़ इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा़
घर-परिवार व खेतीबारी से था विशेष लगाव : लालू सोरेन को गोला के नेमरा स्थित अपने पैतृक घर व परिवार से बेहद लगाव था़ जब झामुमो की राज्य की सत्ता में पकड़ और पार्टी का राजनीतिक उफान था, तब भी लालूजी सत्ता की चकाचौंध से दूर नेमरा में रहकर घर को संवारने व खेती के कार्य में व्यस्त रहते थे़
वर्श 2008 में भाई शंकर सोरेन के निधन के बाद घर-परिवार संभालने को उन्हें विशेष जिम्मेवारी उठानी पड़ी़तीन पुत्र छोड़ गये लालू सोरेन : लालू सोरेन का जन्म 28 जनवरी 1949 को हुआ था़ वह पांच भाइयों में चौथे नंबर पर थे़ इनकी शादी पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिला स्थित बलरामपुर में सरस्वती सोरेन के साथ हुई़ इनके तीन पुत्र हुए़ बड़े पुत्र का नाम नित्यानंद सोरेन, मंझले का परामनंद सारेन व छोटे पुत्र का नाम दयानंद सोरेन है़
आंदोलनों में गुरुजी के साथ निभायी थी लक्ष्मण जैसी भूमिका
लालू सोरेन करीब 25 वर्षों तक झामुमो के बोकारो जिलाध्यक्ष रहे़ वर्ष 1991 में बोकारो जिला के अस्तित्व में आने के बाद ही उन्हें जिलाध्यक्ष बनाया गया था़ इससे पूर्व गिरिडीह जिला के उपाध्यक्ष थे़ वर्ष 2014 में उन्होंने बोकारो जिलाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया़ इसके बाद झामुमो के साथ उनका मतभेद सतह पर आया़ उनका मानना था कि झामुमो अपने उद्देश्यों से भटक गया है़
झारखंड आंदोलनकारियों की उपेक्षा को लेकर उन्हें पार्टी से विशेष नाराजगी थी़ वह कहते थे, जिनके संघर्ष के दम पर अलग राज्य बना, उन्हें और उनके परिवार को जब न्याय नहीं मिल रहा तो इससे दुखद राज्य के लिए क्या हो सकता है़ इन्हीं मतभेदों के बीच 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये़
हालांकि, तृणमूल में अधिक समय तक नहीं रहे़ करीब छह माह बाद ही इससे अलग हो गये़ इसके बाद चार अक्तूबर 2017 को झामुमो उलगुलान को अस्तित्व में लाया़ इन्हें केंद्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली़ फिलहाल जिला स्तर पर सांगठनिक कमेटियों का गठन कर पार्टी को रूप देने में व्यस्त थे़ स्वर्गीय सोरेन गोमिया विस क्षेत्र से दो बार विधानसभा चुनाव भी लड़े थे़ इनका अधिकतर समय बोकारो जिला में ही व्यतीत हुआ है़
पांच भाइयों में चौथे नंबर पर थे
स्वर्गीय सोरेन पांच भाइयों में चौथे नंबर पर थे. वह अपने पीछे तीन पुत्र नित्यानंद सोरेन, परमानंद सोरेन व दयानंद सोरेन समेत भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं. स्वर्गीय सोरेन ने झारखंड आंदोलन में अहम भूमिका निभायी थी. पिता की हत्या के बाद महज 14 वर्ष की उम्र में शिबू सोरेन के साथ आंदोलन में निकल पड़े थे.
महाजनी प्रथा के खिलाफ भी आंदोलन किया था. वर्ष 1991 में झामुमो के बोकारो जिलाध्यक्ष बनाये गये और 2014 तक इस जिम्मेदारी को उठाते हुए जिले में संगठन को मजबूत बनाया. वर्ष 2014 में मतभेद के कारण झामुमो छोड़ दी और तृणमूल कांग्रेस में चले गये. हालांकि तृणमूल में अधिक समय तक नहीं रहे. फिर अक्तूबर 2017 में झामुमो उलगुलान के केंद्रीय उपाध्यक्ष बनाये गये. स्वर्गीय सोरेन गोमिया विधानसभा से चुनाव भी लड़े थे.
जरीडीह में शोक की लहर
जैनामोड़ : सोमवार को दर्जनों कार्यकर्ता व समाजसेवी लालू सोरेन को श्रद्धांजलि देने उनके आवास पहुंचे. श्रद्धांजलि देने वालों में जरीडीह प्रमुख बाबूचंद सोरेन, जिला उपाध्यक्ष पंकज जायसवाल, झामुमो नेता मोहन मुर्मू, जरीडीह प्रखंड अध्यक्ष पंकज मरांडी, अमित सोरेन, सोहन मुर्मू, खाड़ेराम मुर्मू, इंदर मांझी, सचिव सोनू सोरेन, उपाध्यक्ष बाबूलाल हांसदा, महिला जिला सचिव अंबिका देवी, झाविमो प्रखंड अध्यक्ष गोविंद टुडू, संजय रजवार, संतोष महतो, जादू हेंब्रम, उपेंद्र हेंब्रम, सुरजन मरांडी आदि मौजूद थे.
पूर्व विधायक योगेंद्र प्रसाद ने जताया शोक
गोमिया के पूर्व विधायक योगेंद्र प्रसाद ने लालू सोरेन के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा दुख की इस घड़ी वे पूरी तरह से पीड़ित परिवार के साथ हैं. उनके परिवार को ईश्वर यह दुख सहने की शक्ति दे व मृतात्मा को शांति प्रदान करे. कहा : लालूजी को झारखंड आंदोलन में अहम योगदान रहा है़ इसे भुलाया नहीं जा सकता है़
पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं ने जताया शोक
लालू सोरेन के निधन पर झामुमो तथा झामुमो उलगुलान के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने गहरा शोक जताया है़ झामुमो उलगुलान की केंद्रीय कमेटी के सचिव कृष्णा थापा, केंद्रीय सदस्य बैजनाथ महतो, भुवनेश्वर महतो व अमरलाल महतो, अनूप कुमार पांडेय, झामुमो केंद्रीय समिति सदस्य सिकंदर कपरदार, कसमार प्रखंड अध्यक्ष दिलीप हेंब्रम, प्रखंड सचिव सोहेल अंसारी, मिथिलेश महाराज आदि ने गहरा शोक प्रकट किया है.
गुरु जी के आवास पर दी गयी श्रद्धांजलि
बीजीएच से उनके पार्थिव शरीर को निकालकर सेक्टर पांच स्थित शिबू सोरेन के आवास ले जाया गया. जहां उन्हें काफी संख्या में पहुंचे कार्यकर्ताओं ने श्रद्धांजलि दी. इसके बाद शव को दाह संस्कार के लिए नेमरा ले जाया गया. मौके पर उनके तीनों पुत्र नित्यानंद सोरेन, परमानंद सोरेन और दयानंद सोरेन भी मौजूद थे.
बीजीएच में नेताओं का जमावड़ा
लालू सोरेन के निधन की खबर फैलते ही बीजीएच में झामुमो व उलगुलान पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लग गया. डुमरी विधायक जगरनाथ महतो, उलगुलान के केंद्रीय महासचिव बेनीलाल महतो, झामुमो जिलाध्यक्ष हीरालाल मांझी, मंटू यादव, संतोष रजवार, बीके चौधरी, काशीनाथ सिंह, राजेश महतो, शंभु यादव, भुनेश्वर महातो, रंजीत महतो, जयकुमार टुडू समेत बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पहुंचे तथा शोक प्रकट करते हुए परिजन को ढाढ़स बंधाया.
लालू के निधन से मर्माहत हूं : जगरनाथ
लालू सोरेन के निधन की खबर सुनते ही डुमरी विधायक जगरनाथ महतो बीजीएच पहुंचे़ पत्रकारों से बातचीत करते हुए उनके निधन पर गहरा शोक प्रकट किया़ कहा : वह इससे काफी मर्माहत हैं. दुख की इस घड़ी में परिवार के साथ हैं. उन्होंने बताया कि सोमवार को होने वाली केंद्रीय कमेटी की बैठक को इनके निधन के कारण स्थगित कर दिया गया है़
राज्य को हमेशा कमी खलेगी : बेनीलाल
झामुमो उलगुलान के केंद्रीय महासचिव बेनीलाल महतो भी बीजीएच पहुंचे़ बेनीलाल ने गहरी संवेदना जताते हुए कहा कि लालू सोरेन का निधन केवल उनकी पार्टी के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य के लिए अपूरणीय क्षति है़ उन्होंने लालू को ईमानदार व लड़ाकू नेता बताते हुए कहा : झारखंड को इनकी कमी हमेशा खलेगी़ श्री महतो ने बताया कि लालू के साथ मिलकर कई दशक तक आंदोलन व राजनीति की़

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