चना के फसल का करें कीट से बचावसंवाददाता, भागलपुरचना दलहनी फसलों का मुख्य फसल है. बिहार के लगभग सभी क्षेत्रों में चना की खेती की जाती है. कई किसान चने की खेती से लाखों रुपये की कमाई करते हैं. चना के फसल का मुख्यत: कीटों से बचाव करना जरूरी है. चना के फसलों में कीट का लार्वा पौधों के कोमल पत्तियों, टहनियों व फूलों को चट कर जाती है. इससे फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है. फलियां लगने पर ये कीट छेद कर देती हैं. इससे फलियां नष्ट हो जाती हैं. कीट ग्रसित फलियां पकने के पहले ही नष्ट हो जाती हैं. एक अकेला कीट का शिशु 20-25 दिनों में 30- 40 फलियां नष्ट कर डालती है. इस कीट से बचाव के लिये किसान रसायनिक दवाओं का प्रयोग करते हैं. जो फसलों को बरबाद तो करती ही हैं, साथ ही खेतों को भी नुकसान पहुंचाती हैं.बीएयू तकनीक का करें इस्तेमालचने की खेती को नुकसान नहीं पहुंचे, इसके लिए किसानों से बातचीत कर बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने नयी खोज ईजाद की है. बीएयू के वैज्ञानिकों ने ट्रैप बनायी है. इस कीट के प्रबंधन के लिये क्रमश: फेरोमोन ट्रैप, बीट व एनपीवी, बीटी या एनपीवी ट्रैप का प्रयोग कर सकते हैं. बीएयू के वैज्ञानिकों ने 2010-11 से 2012-13 तक इसका प्रयोग किया. इसके बाद वैज्ञानिकों ने इसे बाजार में किसानों के लिये उतारा है. किसान बीएयू से संपर्क कर सकते हैं. इस तकनीक से कीटों से बचाव किया जा सकता है. किसानों को इससे काफी लाभ मिला है. अच्छे परिणाम आयेबीएयू के प्रसार निदेशक डॉ आर के सुहानी कहते हैं कि बीएयू के केवीके में कई किसानों ने इसका प्रयोग किया है. इसका सफल परिणाम आये हैं . किसान इसका प्रयोग कर सकते हैं. किसानों को इसका लाभ होगा.
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चना के फसल का करें कीट से बचाव
चना के फसल का करें कीट से बचावसंवाददाता, भागलपुरचना दलहनी फसलों का मुख्य फसल है. बिहार के लगभग सभी क्षेत्रों में चना की खेती की जाती है. कई किसान चने की खेती से लाखों रुपये की कमाई करते हैं. चना के फसल का मुख्यत: कीटों से बचाव करना जरूरी है. चना के फसलों में कीट […]
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