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पटना : प्रतिरोधक क्षमता घटने से बढ़ रही नसों में लकवा मारने की बीमारी
आनंद तिवारी हर महीना आ रहे पांच से छह मरीज पटना : पटना और आसपास के क्षेत्रों में गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) बीमारी का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है. आम बोलचाल की भाषा में नसों में लकवा मारने की बीमारी बोली जाने वाले इस सिंड्रोम का अटैक पिछले कुछ महीनों में तेजी से हुआ […]
आनंद तिवारी
हर महीना आ रहे पांच से छह मरीज
पटना : पटना और आसपास के क्षेत्रों में गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) बीमारी का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है. आम बोलचाल की भाषा में नसों में लकवा मारने की बीमारी बोली जाने वाले इस सिंड्रोम का अटैक पिछले कुछ महीनों में तेजी से हुआ है.
डॉक्टरों की मानें, तो नसों का लकवा 10 साल में एक से दो मरीजों को होता था. लेकिन अचानक इसके बढ़ जाने से डॉक्टर भी हैरान हैं.आइजीआइएमएस सहित शहर के प्राइवेट व सरकारी अस्पतालों में हर महीने पांच से छह मरीज आ रहे हैं. ऐसे में डॉक्टर मरीज के परिजनों को लक्षण बता कर जागरूक होने की सलाह दे रहे हैं. लक्षण का पता लगते ही मरीज इलाज कराने पहुंच जाये, तो बीमारी को जल्द ठीक किया जा सकता है.
वायरस से होती है यह बीमारी : आइजीआइएमएस फिजियोथेरेपिस्ट विभाग के डॉ रत्नेश चौधरी ने बताया कि इस बीमारी में अज्ञात वायरस नसों पर हमला कर व्यक्ति को अचानक अपाहिज बना देता है. धीरे-धीरे लकवा शरीर के खास अंग में पहुंच जाता है और इससे हाथ, पैर काम करना बंद कर देते हैं. जीबीएस के चलते बुखार, उल्टी, दस्त हुआ हो और ठीक से इलाज नहीं हुआ, तो कई महीने बाद वायरस अचानक सक्रिय हो जाता है.
मूल पुस्तकों से स्वाधीनता संघर्ष का करें अध्ययन
स्वाधीनता संघर्ष सिलेबस का वह हिस्सा है, जो रुचि के अनुकूल होने की वजह से ज्यादातर छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय होता है. लिहाजा इस पर पकड़ बनाना मुश्किल नहीं है. इसका सिलेबस 1885 से शुरू होता है.
इसी वर्ष कांग्रेेस की स्थापना हुई, जिसके नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ. इसमें समय-समय पर कई उतार-चढ़ाव भी आये. क्योंकि, उस समय की स्थिति और अंग्रेजों की नीति को देखते हुए हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने अपने संघर्ष का तरीका चुना. जैसे गांधी जी ने संघर्ष विराम संघर्ष की रणनीति अपनायी.
जबकि, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह ने क्रांतिकारी आंदोलन का रास्ता अपनाया. बीपीएससी पीटी के अभ्यर्थियों को स्वतंत्रता आंदोलन के अलग-अलग धड़ों के बारे में विस्तार से पढ़ना चाहिए. तैयारी के लिए मूल पुस्तकों का सहारा लें, तभी सारे प्रश्नों का उत्तर वे दे पायेंगे. जैसे स्वराज्य पार्टी का गठन सीआर दास और मोती लाल नेहरू ने मिल कर 1924 में किया था.
इसमें प्रश्न आता है कि स्वराज्य पार्टी बनाने का मुख्य उद्देश्य क्या था. उत्तर के चार विकल्प इस तरह होते हैं, जो कम पकड़ वाले छात्रों को उलझाते हैं. सही उत्तर है कि विधायिका में प्रवेश के लिए इसे बनाया गया था. हालांकि, यह गांधी जी की नीति के खिलाफ था.
मूल पुस्तकों से समग्रता में विभिन्न टॉपिक को पढ़ा जाये, तभी इस तरह के प्रश्नों का सही उत्तर दिया जा सकता है. क्योंकि, इसके लिए विभिन्न टॉपिक को आपस में जोड़ कर निष्कर्ष निकालना होगा. विपिन चंद्रा ने स्वतंत्रता आंदोलन पर बहुत अच्छी किताबें लिखी है. आरसी मजूमदार की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ द फ्रीडम मूवमेंट चार खंडों में हैं. इसमें बहुत सारे वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर छात्राें को मिल जायेंगे.
एआर देसाइ की पुस्तक भारतीय राष्ट्रवाद का सामाजिक आधार भी उपयोगी है. इतिहास को रुचिपूर्वक पढ़ना चाहिए. सारे तारीख को याद करने की जरूरत नहीं है. लेकिन, महत्वपूर्ण तिथियों को अवश्य याद रखना चाहिए. पढ़ी गयी चीजों का नोटबुक में सारांश बनाना चाहिए.
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