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पटना पुलिस के पास नहीं है अपना मोबाइल सर्विलांस सिस्टम

पटना : टेक्निकल मामले में बिहार पुलिस के अनुसंधान की गति सुस्त होने से अपराधी जल्दी नहीं पकड़े जाते. जब तक अपराधी तक पुलिस पहुंचती है, तब तक वे अपना ठिकाना बदल लेते है. इस सुस्ती का एक बड़ा कारण यह है कि बिहार पुलिस के पास टेक्निकल सर्विलांस की अपनी कोई व्यवस्था नहीं है, […]

पटना : टेक्निकल मामले में बिहार पुलिस के अनुसंधान की गति सुस्त होने से अपराधी जल्दी नहीं पकड़े जाते. जब तक अपराधी तक पुलिस पहुंचती है, तब तक वे अपना ठिकाना बदल लेते है.
इस सुस्ती का एक बड़ा कारण यह है कि बिहार पुलिस के पास टेक्निकल सर्विलांस की अपनी कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके चलते समय पर मोबाइल टावर का लोकेशन या सीडीआर नहीं मिल पाती है और पुलिस के अनुसंधान का समय बढ़ जाता है.
टेक्निकल सर्विलांस है अनुसंधान का अहम हिस्सा : किसी भी अपराध के मामले में जांच के दौरान टेक्निकल सर्विलांस का अहम योगदान है. यह अनुसंधान का अहम हिस्सा है. इसकी मदद से पुलिस ने कई केसों को सुलझाया है, लेकिन इसके लिए पुलिस को मोबाइल कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है.
अपराधियों के मोबाइल का सीडीआर या लोकेशन निकालने के लिए मोबाइल कंपनियों की मदद लेनी पड़ती है और इन प्रक्रियाओं के पूरा होते-होते अपराधी इलाका छोड़ कर निकल जाता है. इसके बाद उन्हें पकड़ना काफी मुश्किल हो जाता है. मोबाइल कंपनी प्रशासन कभी डिटेल जल्दी दे देती है तो कभी डिटेल देने में दो-तीन दिन लग जाते हैं. इतने समय में अपराधी दूर निकल जाते हैं. पुलिस सूत्रों की मानें तो मोबाइल कंपनियां मोबाइल लोकेशन या कॉल डिटेल के लिए काफी दौड़ाती हैं.
अगर एसपी खुद किसी केस को देख रहे हैं तो मोबाइल कंपनियों से जल्द ही जानकारी मिल जाती है, लेकिन अगर थाना स्तर पर हो तो जानकारी मिलने में कई दिन लग जाते हैं. इसके साथ ही अगर थाना को किसी प्रकार का कॉल डिटेल चाहिए तो वह मोबाइल कंपनियों को एसपी स्तर से ही भेजी जाती है और इसमें भी काम में देरी होती है जिसके कारण अपराधी तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है.
कॉल डिटेल को सुलझाने के लिए नहीं हैं एक्सपर्ट
अब अगर मोबाइल कंपनियों से कॉल डिटेल मिल भी गया तो उसे सुलझाने और मैच कराने के लिए अलग से कोई एक्सपर्ट नहीं है. जिसके कारण अनुसंधानकर्ता को ही वह काम करना पड़ता है, जबकि अनुसंधानकर्ता मोबाइल संबंधित मामलों के बहुत जानकार नहीं होते हैं, जिसके कारण उन्हें निष्कर्ष पर पहुंचने में काफी समय लग जाता है. अनुसंधानकर्ता के पास कई केसों का बोझ होता है, जिससे अनुसंधान सुस्त हो जाता है.
यह है आवश्यकता
– मोबाइल का लोकेशन जानने वाला उपकरण पुलिस के पास होना चाहिए. कई राज्यों में पुलिस के पास ऐसे उपकरण मौजूद हैं.
– मोबाइल कंपनियों में पुलिस की ओर से एक-दो ऑफिसर की हमेशा तैनाती होनी चाहिए, ताकि वक्त पड़े तो वह तुरंत ही मोबाइल से संबंधित जानकारी कंपनी से लेकर पुलिस को उपलब्ध कराये.
– पुलिस ऑफिसर को मोबाइल से संबंधित अनुसंधान की ट्रेनिंग दिया जाना चाहिए.

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