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hajipur news. वैशाली में जातीय समीकरणों के बीच विकास व भ्रष्टाचार मुख्य चुनावी मुद्दे

जदयू के मौजूदा विधायक सिद्धार्थ पटेल दूसरी बार किस्मत आजमा रहे हैं, वहीं उनके चाचा और छह बार के विधायक पूर्व मंत्री वृषिण पटेल इस बार निर्दलीय मैदान में हैं

पटेढ़ी बेलसर. लोकतंत्र की आदि भूमि वैशाली इस बार चुनावी रोमांच के चरम पर है. राजनीतिक दलों की गोटियां बिछ चुकी हैं और हर मोहरे के पीछे जातीय गणित, बगावत और विकास के समीकरण छिपा है. कभी अगड़े-पिछड़े की लड़ाई का केंद्र रही वैशाली की राजनीति अब जातीय ध्रुवीकरण, परिवारों की टूट और जनमानस के बीच विकास की एक नयी उम्मीद पर टिकी है. इस विधानसभा चुनाव में विकास और भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दे हैं, लेकिन जातीय समीकरणों की पकड़ अभी भी मजबूत है. जदयू के मौजूदा विधायक सिद्धार्थ पटेल दूसरी बार किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं, उनके चाचा और छह बार के विधायक पूर्व मंत्री वृषिण पटेल इस बार निर्दलीय मैदान में हैं. चाचा बनाम भतीजे की जंग वैशाली की राजनीति को नया मोड़ दे रही है. हालांकि, विधायक सिद्धार्थ पटेल अपने आधार वोट बैंक की जड़ को और मजबूत करने के सारे प्रयास कर रहे हैं. लोगों से मिलते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यों का हवाला दे रहे हैं. जदयू की पूर्व नेत्री निशा पटेल अब बसपा से मैदान में हैं, जिससे पटेल वोटों में और बिखराव की संभावना जतायी जा रही है.

अजय को टिकट ने कुशवाहा समाज को राजद के पक्ष में किया गोलबंद

राजद ने अजय कुशवाहा पर दांव लगाया है, जिसने कुशवाहा समाज को गोलबंद किया है. अब तक कुशवाहा वोटरों को जदयू का आधार माना जाता था. कुशवाहा के साथ यादव और मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिलते ही राजद के लिए समीकरण और मजबूत हो सकता है, कांग्रेस ने इ संजीव सिंह को मैदान में उतारकर राजद के समीकरणों में खलल डाल दिया है. वे भूमिहार समुदाय से आते हैं. आम धारणा है कि अगर भूमिहार उम्मीदवार न हो तो यह वोट एनडीए की ओर जाता है. हालांकि, लालगंज से भूमिहार समाज की उम्मीदवार और पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला की बेटी को राजद से टिकट मिलने के बाद परिस्थितियां कुछ बदल सकती है और कांग्रेस उम्मीदवार के लिए यह चुनौती है.

एनडीए के वोट बैंक को विधायक मान रहे एकजुट

सिद्धार्थ पटले कहते हैं कि एनडीए के कोर वोटर अब भी एकजुट हैं. पूर्व मंत्री वृषिण पटेल का दावा है कि जनता का झुकाव उनके साथ है. ये कहते हैं कि यह चुनाव सत्ता की नहीं, स्वाभिमान और वैशाली की जनमानस की लड़ाई है. जदयू विकास कार्यों को अपना चुनावी हथियार बना रही है. बुद्ध सम्यक दर्शन स्थल पर बुद्ध की अस्थिकलश स्थापना और गोरौल में डिग्री कॉलेज का निर्माण इसकी बड़ी उपलब्धियों में गिना जा रहा है. 2005 से यह सीट जदयू की परंपरागत रही है, लेकिन इस बार उसके अभेद किले को चुनौती मिल रही है. वैशाली में इस बार कुशवाहा, यादव एवं मुस्लिम का नया गठजोड़ बनता दिख रहा है. राजद और जदयू दोनों के लिए भूमिहार जाति की रणनीति इस बार बहुत ही मायने रखने वाली है. 2025 का यह चुनाव तय करेगा कि जदयू का किला बरकरार रहेगा या इतिहास में नयी इबारत लिखी जायेगी.

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