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न्याय की आस में भटक रही एक मां – फ्लायर

न्याय की आस में भटक रही एक मां – फ्लायरभोरे अस्पताल में नवजात की हुई थी मौत भोरे. ‘मैंने अभी दुनिया में कदम ही रखा था. मेरे जन्म के साथ ही मेरी जिंदगी की बोली क्यूं लगने लगी. मेरा शायद यही कुसूर था कि मैंने एक गरीब मां की कोख से जन्म लिया. गरीबी से […]

न्याय की आस में भटक रही एक मां – फ्लायरभोरे अस्पताल में नवजात की हुई थी मौत भोरे. ‘मैंने अभी दुनिया में कदम ही रखा था. मेरे जन्म के साथ ही मेरी जिंदगी की बोली क्यूं लगने लगी. मेरा शायद यही कुसूर था कि मैंने एक गरीब मां की कोख से जन्म लिया. गरीबी से मेरा वास्ता पड़ता, हालात से मैं लड़ती. लेकिन, मुझे इस दुनिया में सलामत रखने के लिए मां तेरे पास पैसे नहीं थे. जब तुझे यह पता था कि सरकारी अस्पताल में मुझे दुनिया में सलामत रखने के लिए पैसे लिये जायेंगे. तुने पैसे क्यों नहीं दिये मां. शायद किसी को दर्द का एहसास नहीं हुआ होगा. जब कड़ाके की ठंड में मुझै ऐसे ही छोड़ दिया गया. कंपकंपी के बीच जब मैंने दुनिया को अलविदा किया, तो सिर्फ तेरे और मेरे पिता की आंखों में ही आंसू थे. बाकी लोग तो अस्पताल को कोस रहे थे. कुछ मेरी मौत के किस्से को दबाने के लिए पैसों का खेल खेल रहे थे. तुमने और मेरे पिता ने न्याय के लिए हर दरवाजा खटखटाया, लेकिन क्या तुम्हें यह पता नहीं कि यहां गरीबों की नहीं सुनी जाती.’ शायद यही सवाल वो मासूम बच्ची कर रही होगी, जिसकी मौत सिर्फ पैसों के खेल में ही हो गयी. बच्ची का सिर्फ इतना कुसूर था कि उसने गरीब मां की कोख से जन्म ली थी. क्या है मामला 23 दिसंबर की रात भोरे थाना क्षेत्र के तिवारी चकिया गांव निवासी सुनील चौहान की पत्नी कुसुम देवी को प्रसव पीड़ा हुई थी. उसे गांव की आशा फूलकुमारी देवी प्रसव के लिए भोरे रेफरल अस्पताल ले गयी, जहां रात के 10 बजे उसने एक बच्ची को जन्म दिया. जन्म के बाद स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा पैसे की मांग की गयी. पैसे देने में असमर्थ गरीब सुनील चौहान की बेटी को ठंड में ही छोड़ दिया गया. इसके कारण सुबह के 5 बजे बच्ची की मौत हो गयी. अस्पताल कर्मियों की निर्दयीता का एक और नमूना तब सामने आया, जब मृत बच्ची और प्रसूता को अस्पताल से डिस्चार्ज करने के नाम पर भी पैसे ले लिये गये. घटना के बाद परिजन अस्पताल में हंगामा करने लगे. साथ ही भोरे पुलिस को मामले में शिकायत भी की. वहीं, इस मामले को तूल पकड़ता देख गोपालगंज के सिविल सर्जन भी जांच के लिए पहुंचे. उन्होंने दोषी स्वास्थ्यकर्मियों को क्लीन चिट दे दिया. परिजनों की लापरवाही एवं देख-रेख में कमी ही बच्ची की मौत का कारण बताया गया.मानवाधिकार की टीम कर चुकी है जांच न्याय की आस भटक रही मां मानवाधिकार आयोग की शरण में गयी, जहां अभी मामला लटका पड़ा है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल सह है कि अगर बच्ची की मौत ठंड के कारण हुई, तो अस्पताल प्रबंधन द्वारा प्रसूता एवं बच्ची को ठंड से बचाने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया गया. क्यों प्रसूता एवं उसकी बच्ची को अस्पताल ने गद्दा, कंबल आदि चीजें नहीं दीं. पूरी रात स्टील के बेड पर पड़ी मरीज को देखने कोई डॉक्टर क्यों नहीं आया. ऐसे कई सवाल हैं, जो स्वास्थ्य महकमे को कठघरे में खड़े करते हैं, लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मां की ममता को न्याय मिल पायेगा.

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