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पुत्र व परिवार को संस्कारी बनाना चाहिए : जीयर स्वामी

सिर्फ गंगा स्नान और तीर्थवास से ज्ञान-वैराग्य संभव नहीं आरा : काल सर्प के समान जगत में मुंह खोल कर बैठा है, लेकिन परमात्मा के सान्निध्य में रहनेवाले को काल का भय नहीं सताता. उपरोक्त बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने चंदवा चातुर्मास ज्ञान यज्ञ के दरम्यान प्रवचन करते हुए कहीं. श्री जीयर स्वामी […]

सिर्फ गंगा स्नान और तीर्थवास से ज्ञान-वैराग्य संभव नहीं
आरा : काल सर्प के समान जगत में मुंह खोल कर बैठा है, लेकिन परमात्मा के सान्निध्य में रहनेवाले को काल का भय नहीं सताता. उपरोक्त बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने चंदवा चातुर्मास ज्ञान यज्ञ के दरम्यान प्रवचन करते हुए कहीं. श्री जीयर स्वामी ने भागवत कथा के आत्मदेव-धुंधली प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान के शरणागत रहने वाले और अपना मन, दिल और दिमाग ईश्वर को समर्पित कर देने वाले को काल का भय नहीं सताता. उन्होंने कहा कि जिस तरह जेल के अधिकारी जेल में रहते हैं, कैदियों के साथ घुमते-बैठते हैं, फिर भी दंड के भय से मुक्त होते हैं. उसी प्रकार भगवान नाम, लीला, गुण, धाम और चरित्र का गायन करनेवाले मृत्यु को निश्चित जान भी उसके भय से मुक्त रहते हैं. बच्चे का जन्म के 11वें और 12वें दिन उसका नामकरण अवश्य कर देना चाहिए.
साथ ही नामकरण में विशेष सावधानी रखनी चाहिए. उन्होंने बताया कि पुत्र और पुत्री का नामकरण लक्ष्मी और नारायण के नामों के अनुसार होना चाहिए, जो उम्र बढ़ने के साथ ही उचित और प्रभावशाली प्रतीत हो. पुत्र और परिवार को संस्कारी बनाना चाहिए. इसके लिए माता-पिता का आचरण एवं व्यवहार शुद्ध और सात्विक होनी चाहिए, क्योंकि बच्चों का प्रथम पाठशाला घर ही होता है. घर की संस्कृति से ही बच्चों में संस्कार का बीजारोपण होता है. बाल्यकाल में जैसा देखते-सुनते हैं, उसका प्रभाव आजीवन बरकरार रहता है. उन्होंने मानव जीवन में सीख, सबक और ज्ञान की चर्चा करते हुए कहा कि छोटे बच्चों से भी सीख और सबक मिलती है. कभी-कभी रोग, भोग और पत्नी के कटु वचन से भी ज्ञान प्राप्ति होती है.
उन्होंने संत तुलसी को पत्नी से प्राप्त ज्ञान का उदाहरण देते हुए कहा कि कब, किसे, कैसे ज्ञान की प्राप्ति हो जायेगी, पता नहीं है. श्री जीयर स्वामी ने मानव के नश्वर जीवन और माया की चर्चा करते हुए कहा कि जो अपना नहीं है, उसे अपना मानना सबसे बड़ी भूल है. जब यह शरीर ही अपना नहीं है, तो इससे अर्जित धन कहां अपना होनेवाला है. आश्चर्य है कि लोग उसकी प्राप्ति के लिए अनर्थ की हदें पार कर देते हैं. उन्होंने कहा कि उद्देश्य पवित्र नहीं हो, तो गंगा स्नान, तीर्थ और जंगल में निवास करने से ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति नहीं होती. मानव को आचरण युक्त जीवन जीना चाहिए.

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