दाउदनगर.
काराकाट सांसद राजाराम सिंह ने एक बार फिर से इंद्रपुरी जलाशय के निर्माण कराने और सोन नहरों के आधुनिकीकरण का मामला उठाया है. उन्होंने बताया कि इससे संबंधित मांग पत्र उन्होंने जल शक्ति मंत्री को दिया. इस विषय पर वार्तालाप भी हुआ है. सांसद ने बताया कि इस परियोजना के निर्माण पर बिहार के जल जीवन और हरियाली निर्भर है. सदन में वे सवाल उठाते रहेंगे. कई चरण पर काम करेंगे. आधुनिक भारत की सबसे प्राचीन नहर प्रणाली को मरने नहीं देंगे. पहले वह प्रधानमंत्री से मिलना चाहे, लेकिन वह नहीं मिले. जल शक्ति मंत्री से मिलने को कहा गया. विभाग को ज्ञापन दिया गया था. ज्ञापन पर आरा के सांसद सुदामा प्रसाद, सासाराम के सांसद मनोज कुमार, बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह व जहानाबाद सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव के हस्ताक्षर थे. एक बार फिर से उन्होंने जल शक्ति मंत्री से मुलाकात की है और मांग पत्र दिया है. सांसद का कहना है कि निर्माण स्थल बिहार और झारखंड दोनों प्रदेश में पड़ते हैं. बिहार के रोहतास के नौहट्टा प्रखंड के मटिआंव और झारखंड के गढ़वा जिला के क्षेत्र में निर्माण स्थल है, जबकि तीसरा कोण उत्तर प्रदेश का भी है. इसलिए यह स्वयं में राज्य स्तरीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है, जिसे सुलझाने की जिम्मेदारी भारत सरकार की है. इस जिम्मेदारी से केंद्र को भागने नहीं दिया जा सकता है.समझौते के कारण समय पर पानी नहीं मिलता
मगध और शाहाबाद के पांच सांसदों द्वारा हस्तांतरित्र व राजा राम सिंह के लेटर पैड पर प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन में कहा गया था कि 1874 में बनी ऐतिहासिक सोन नहर प्रणाली दम तोड़ रही है. इंद्रपुरी बाराज से पर्याप्त पानी नहीं मिलता है. इसका बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 1990 में शिलान्यास किया था और तब से यह परियोजना लंबित है. बिहार सोन के पानी का इस्तेमाल करने वाला पहला राज्य रहा है. नदी के पानी के बंटवारे उपलब्धता के लिए बाणसागर व रिहंद समझौता के तहत समय पर बिहार को पानी नहीं मिलता. पानी तब छोड़ा जाता है, जब चारों ओर पानी पानी रहता है. नदी में आया पानी बहता हुआ गंगा होकर समुद्र में चला जाता है. सोन के इलाकों में बाढ़ व कटाव पैदा करता है, जिससे जन-धन की भारी क्षति होती है. सोन नहरों से आच्छादित बिहार के जिले रोहतास, औरंगाबाद, अरवल, भोजपुर, पटना, कैमूर, बक्सर और गया धान का कटोरा कहा जाता है. यह देश का प्रमुख बहुफसली क्षेत्र है. ज्ञापन में बताया गया कि औरंगाबाद में सोन के किनारे बने एनटीपीसी और बीआरबीसीएल थर्मल पावरों को बरसात के पहले पानी का अभाव झेलना पड़ता है. खतरे की घंटी भी पहले बज चुकी है. सोन का मीठा पानी मछली समेत लाखों जीवों, मनुष्यों, वनस्पतियों व पेड़ पौधों के जीवन का आधार है. बिहार जिसका बड़ा हिस्सा बाढ़ व सुखाड़ से पीड़ित रहता है. इस कृषि प्रधान इलाके में इसकी सिंचाई प्रणाली को बचाना व सशक्त बनाना राज्यहित व राष्ट्रहित में है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है