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Premanand Ji Maharaj: कैसे हुई गोस्वामी तुलसीदास जी और हनुमान जी की मुलाकात? प्रेमानंद जी महाराज ने बताई अद्भुत कथा

Premanand Ji Maharaj: भक्ति का मार्ग कठिन जरूर है, पर जब मन सच्चा हो, तो भगवान खुद भक्त से मिलने आते हैं. ऐसी ही एक अद्भुत कथा सुनाई प्रेमानंद जी महाराज ने गोस्वामी तुलसीदास जी और हनुमान जी की. आइए जानें प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन के अनुसार, कैसे तुलसीदास जी को मिले हनुमान जी.

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि तुलसीदास जी का जीवन पूरी तरह राम भक्ति में लीन था. वे हर दिन कथा कहते, राम नाम जपते और लोगों को प्रेम और भक्ति का संदेश देते. लेकिन उनके हृदय में एक गहरी लालसा थी-“काश, मुझे एक बार प्रभु श्रीराम के साक्षात दर्शन हो जाएं.” वे जानते थे कि केवल भक्ति और तपस्या से ही प्रभु प्रसन्न होंगे.

जब तुलसीदास जी को मिला एक दिव्य संकेत

तुलसीदास जी शौच के बाद अपने कमंडल का पानी एक पेड़ के पास फ़ेंक देते थे और उसी पेड़ में एक प्रेत (भूत) निवास करता था. प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, वह प्रेत एक दिन तुलसीदास जी से कहा इस पानी से मेरी बहुत बड़ी सेवा हुई है, अब मैं भी आपको कुछ देना चाहता हूं. तुलसीदास जी ने कहा मुझे मेरे श्री राम के दर्शन के सिवा कुछ नही चाहिए, तब प्रेत ने कहा  “आपकी भक्ति सच्ची है तुलसीदास. पर श्रीराम के दर्शन सीधे नहीं होंगे. पहले उनके सच्चे सेवक, श्री हनुमान जी से मिलना होगा.”

प्रेत ने तुलसीदास जी को मार्ग बताया

हनुमान जी हर दिन तुम्हारी कथा में आते हैं, पर किसी को पहचान में नहीं आते. वे एक वृद्ध, कुरूप और साधारण मनुष्य के रूप में बैठते हैं- सबसे पहले आते हैं और सबसे आखिर में जाते हैं.

तुलसीदास जी ने पहचाना हनुमान जी को

अगले दिन तुलसीदास जी ने कथा में गहराई से सभी श्रोताओं को देखा. तभी उन्होंने देखा कि एक वृद्ध व्यक्ति सबसे पहले आया और अंत तक शांत बैठा रहा. तुलसीदास जी को प्रेत की बात याद आई और उनके हृदय में एक कंपन हुआ. कथा समाप्त होने के बाद वे तेजी से उस वृद्ध के पीछे गए और विनम्र होकर बोले “मुझे लगता है आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं, कृपा कर अपना वास्तविक स्वरूप बताएं.” तभी वह वृद्ध मुस्कुराए और धीरे-धीरे अपने दिव्य रूप में प्रकट हुए. स्वयं हनुमान जी उनके सामने खड़े थे. तुलसीदास जी के नेत्रों से आँसू बह निकले, और वे चरणों में गिर पड़े.

हनुमान जी ने बताया श्री राम से मिलने का रास्ता

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा तुम्हारी भक्ति से मैं प्रसन्न हूं. अब चित्रकूट जाओ, वहां प्रभु श्रीराम तुम्हें स्वयं दर्शन देंगे. हनुमान जी ने तुलसीदास जी को यह भी बताया कि भक्ति का मार्ग केवल शब्दों या पूजा से नहीं, बल्कि सेवा, विनम्रता और सत्यता से खुलता है. तुलसीदास जी ने हनुमान जी का आशीर्वाद लिया और चित्रकूट की ओर निकल पड़े.

तुलसीदास जी को श्रीराम के दर्शन कब और कहाँ हुए?

हनुमान जी के आदेश से वे चित्रकूट गए. वहीं मंदाकिनी तट पर उन्हें श्रीराम और लक्ष्मण के साक्षात दर्शन हुए.

हनुमान जी आज भी कथा में आते हैं क्या यह सच है?

प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि जहां सच्चे मन से राम कथा होती है, वहां हनुमान जी किसी न किसी रूप में अवश्य उपस्थित रहते हैं.

तुलसीदास जी की यह कथा किस ग्रंथ में मिलती है?

यह कथा तुलसी चरित, भक्तमाल और रामचरितमानस की लोककथाओं में वर्णित है.

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JayshreeAnand
JayshreeAnand
कहानियों को पढ़ने और लिखने की रुचि ने मुझे पत्रकारिता की ओर प्रेरित किया. सीखने और समझने की इस यात्रा में मैं लगातार नए अनुभवों को अपनाते हुए खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करती हूं. वर्तमान मे मैं धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को नजदीक से समझने और लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं.

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