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Jagannath Puri : जगन्नाथ पुरी यानी पावन धरती. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार यह मोक्ष की धरती है. भगवान विष्णु इस धरती पर साक्षात निवास करते हैं इसलिए ऐसी मान्यता है कि हिंदू धर्म मानने वालों को यहां अपने जीवनकाल में एक बार जरूर आना चाहिए. जगन्नाथ पुरी के तर्ज पर देश में कई जगह पर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया गया है, जहां की पूजा पद्धति भी जगन्नाथ पुरी की तरह ही है, लेकिन अक्षय तृतीया के दिन बंगाल के मेदिनीपुर जिले के दीघा में जगन्नाथ धाम मंदिर का उद्घाटन किया गया है, जिसे लेकर जगन्नाथ पुरी के लोगों को कुछ आपत्तियां हैं.
दीघा में बनाया गया है जगन्नाथ धाम
बंगाल के मेदिनीपुर जिले में स्थित है दीघा. दीघा अपने समु्द्री तट के लिए काफी प्रसिद्ध है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यहां एक भव्य जगन्नाथ मंदिर बनवाया है. जिसे जगन्नाथ धाम का नाम दिया गया है. यह मंदिर दरअसल जगन्नाथ पुरी की नकल है. इस मंदिर का निर्माण कार्य 2022 में शुरू हुआ था और 30 अप्रैल 2025 को मंदिर का उद्घाटन किया गया. इस मंदिर को लेकर विवाद इसलिए शुरू हो गया है क्योंकि इसे धाम कहा जा रहा है और यहां की पूजा पद्धति को बिलकुल उसी तरह का रखा गया है, जैसा जगन्नाथ पुरी में है.
मंदिर से जुड़ी खास बातें | पुरी जगन्नाथ मंदिर | दीघा जगन्नाथ मंदिर |
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स्थान | पुरी, ओडिशा | दीघा, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल |
स्थापना काल | 12वीं शताब्दी | 2025 (निर्माण 2022 में शुरू हुआ) |
मूर्ति की सामग्री | नीम की लकड़ी | पत्थर की मूर्तियां |
शैली | कलिंग शैली (मूल) | कलिंग शैली की नकल |
धार्मिक मान्यता | चार धामों में से एक – (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) | “धाम” शब्द का उपयोग विवादास्पद; पारंपरिक मान्यता नहीं |
अनुष्ठान और पूजा विधि | विशेष और पारंपरिक नियमों के तहत, केवल प्रशिक्षित सेवक | पुरी के समान अनुष्ठानों पर विवाद, सेवकों को भाग न लेने की चेतावनी |
गैर-हिंदू प्रवेश | अनुमति नहीं है | गैर-हिंदुओं और विदेशियों को प्रवेश की अनुमति |
पर्यटन पर प्रभाव | बंगाल से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण | दीघा में नया आकर्षण, लेकिन पुरी जैसी सुविधा और महत्व अभी नहीं |
जगन्नाथ पुरी के सेवकों ने दर्ज कराई है आपत्ति

दीघा में भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनाए जाने से पुरी के सेवकों को आपत्ति नहीं है. उन्हें इस बात पर आपत्ति है कि इस मंदिर को जगन्नाथ धाम कहा जा रहा है. मंदिर में तमाम पूजा पद्धतियां उसी तरह की हैं, जैसी पुरी में है, जैसे यहां प्रतिदिन ध्वज लगाया जा रहा है. मंदिर के शिखर पर नीलचक्र का प्रतिरूप भी लगाया है, जिसे लेकर पुरी में बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है क्योंकि नीलचक्र को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का प्रतिरूप माना जाता है. नीलचक्र को काफी पवित्र माना जाता है, जिस प्रकार बंगाल सरकार ने नीलचक्र का मंदिर के प्रचार में उपयोग किया है, उसपर पुरी से घोर आपत्ति दर्ज कराई जा रही है.
पुरी के सेवकों को किस बात पर है आपत्ति
जगन्नाथ पुरी के सेवक(पुजारी) संतोष मिश्रा ने प्रभात खबर के साथ खास बातचीत में बताया कि हमें मंदिर के निर्माण पर कोई आपत्ति नहीं है. भगवान जगन्नाथ का मंदिर तो कई जगह पर है. रांची में भी भगवान जगन्नाथ का मंदिर है, लेकिन दीघा के मंदिर को धाम कहा जा रहा है, जो गलत है. धाम चार ही हैं-पुरी, द्वारिका, बद्रीनाथ और रामेश्वम. दीघा में धाम नहीं हो सकता है. एक नीलचक्र के नीचे दो भगवान नहीं हो सकते हैं. साथ ही पुरी में भगवान का ब्रह्म स्वरूप है, जिसे कहीं और स्थापित नहीं किया जा सकता है. बस इतनी सी ही बात है. मंदिर का कोई विरोध नहीं है, लेकिन जगन्नाथ पुरी को कहीं और स्थापित नहीं किया जा सकता है. यह लोगों में भ्रम फैलाने की बात है. ऐसा करने से धार्मिक शुचिता भी भंग होती है. यही वजह है कि पुरी के सेवकों ने भगवान का भोग लगाने वाले समुदाय सुआर महासुआर निजोग को दीघा जाने से रोका है. साथ ही पुरी में भगवान का वस्त्र तैयार करने वाले सेवकों को भी वहां जाने से रोका गया है. पुरी के कुछ सेवक दीघा गए थे, लेकिन उन्होंने पूजा-पद्धति में भाग नहीं लिया. उनके जाने की वजह यह थी कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनकी यजमान हैं.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार सुआर महासुआर निजोग के अध्यक्ष पद्मनाव महासुआर ने बताया कि वे दीघा में मंदिर के उद्घाटन का स्वागत करते हैं और चाहते हैं कि भक्तगण वहां जाएं, लेकिन नए मंदिर में मूल मंदिर के पारंपरिक अनुष्ठानों की नकल नहीं की जानी चाहिए. यह गलत होगा.
दीघा मंदिर के विरोध का क्या है आर्थिक कारण
दीघा मंदिर के निर्माण पर किसी को आपत्ति नहीं है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि पुरी आने वाले श्रद्धालुओं में से 14 प्रतिशत यानी लगभग 15 लाख बंगाली होते हैं. अब जबकि दीघा में भी मंदिर बन गया है और यह दावा किया जा रहा है कि वहां सबकुछ पुरी मंदिर की तर्ज पर होगा, तो श्रद्धालु पुरी जाना कम कर सकते है, इससे पुरी मंदिर की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है.
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