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Caste Census : 2025 की जनगणना जाति आधारित होगी, यह घोषणा बुधवार को केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की है. सरकार की यह घोषणा विपक्ष के लिए चौंकाने वाली तो है ही उनके हाथ से उनका मुद्दा छिन लेने जैसा भी है. बुधवार को कैबिनेट की बैठक के बाद जातिगत जनगणना की जानकारी दी गई है, जिसका विपक्ष ने स्वागत किया है. केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि बीजेपी की सरकार तो जातिगत जनगणना कराना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस इसकी विरोधी रही थी और उसने अतीत में इसे टालने का भी काम किया है.अब जबकि जातिगत जनगणना की घोषणा हो गई है, विपक्षी खेमे में इस बात की खलबली है कि आखिर सरकार ने जातिगत जनगणना का फैसला क्यों किया?
2025 में जनगणना होना तय था
देश में 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है. 2021 की जनगणना कोविड महामारी की वजह से नहीं हो पाई थी. 2029 के लोकसभा चुनाव के पहले संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन भी होना है इसलिए जनगणना का होना तय था. बिहार में हुए जातिगत जनगणना के बाद विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर जातिगत जनगणना के लिए दबाव बनाना भी शुरू कर दिया था. हालांकि शुरुआत में सरकार ने इसका विरोध भी किया था, बीजेपी के शीर्ष नेता अनुराग ठाकुर ने संसद में बहस के दौरान इसका विरोध भी किया था, लेकिन अब सरकार जातिगत जनगणना के लिए तैयार दिख रही है. 2025 की जनगणना में जातियों का विशेष काॅलम भी होगा. 2011 में यूपीए सरकार के दौरान जातिगत सर्वेक्षण कराया गया था, लेकिन उसका डाटा जारी नहीं किया गया था. आजादी के बाद से अबतक जाति आधारित जनगणना नहीं कराई गई है.
सरकार क्यों कराती है जनगणना
जनगणना कराने के पीछे सरकार का उद्देश्य होता है कल्याणकारी योजनाओं की आम लोगों तक पहुंच बनाना और विकास योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन करना. जनगणना के आंकड़ों के अनुसार सरकार योजनाएं बनाती हैं. जनगणना के आंकड़ों से सरकार को क्षेत्रवार जनसंख्या, शिक्षा, रोजगार, आयुवर्ग और रहन-सहन का पता चलता है, जो सरकार को योजनाएं बनाने में मदद करता है. किस खास वर्ग के लिए सरकार क्या योजना बनाएं इसकी प्लानिंग में भी जनगणना के आंकड़ों के जरिए ही होती है.
जातिगत जनगणना से क्या मिलेगा लाभ
देश में अंतिम जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी. उसके बाद जातिगत जनगणना नहीं कराई गई थी. अब जबकि जातिगत जनगणना देश में होने जा रही है, इसके फायदे और नुकसान पर चर्चा शुरू हो गई है. देश की कुल आबादी में जितनी जनसंख्या अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की है, उसके आंकड़ें सरकार के पास हैं, बाकी रह जाते हैं ओबीसी और सामान्य वर्ग के लोग. इस बार की जातिगत जनगणना में उनके ही आंकड़े सामने आएंगे और इन आंकड़ों के आधार पर सरकार आरक्षण की नीति भी तय कर सकती है. अभी देश में जो आरक्षण मिल रहा है, उसके अनुसार अनुसूचित जाति को 15%, अनुसूचित जनजाति को 7.5%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10% आरक्षण दिया जा रहा है. जातिगत जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद संभव है कि आरक्षण नीति में कुछ बदलाव हो, क्योंकि ओबीसी की जनसंख्या अनुमान से अधिक हो सकती है.
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