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तस्करी के खतरे

रेवेन्यू इंटेलिजेंस निदेशालय हर माह औसतन एक हजार करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की प्रतिबंधित वस्तुएं पकड़ता है.

बीते एक दशक में देश में तस्करी का अवैध बाजार बढ़कर 2,60,094 करोड़ रुपये हो चुका है. इस अवधि में पांच प्रमुख उद्योगों- शराब, मोबाइल फोन, उपभोक्ता वस्तु, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ और तंबाकू- में सरकार के कर संग्रहण का नुकसान 22,230 करोड़ रुपये से बढ़कर 58,521 करोड़ रुपये हो चुका है यानी इसमें 163 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. शराब और तंबाकू उत्पादों के कर संग्रहण में तो नुकसान 227 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि उपभोक्ता वस्तु और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ में यह आंकड़ा 162 प्रतिशत रहा है.

भारतीय उद्योग एवं व्यापार जगत की संस्था फिक्की की एक समिति की रिपोर्ट में उल्लिखित ये आंकड़े इंगित करते हैं कि तस्करी हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है. रिपोर्ट ने रेखांकित किया है कि अमृत काल में देश की अर्थव्यवस्था को 40 ट्रिलियन डॉलर के स्तर पार ले जाने के लक्ष्य को पाने में तस्करी बहुत बड़ी बाधा बन सकती है. फिक्की ने सरकार से अनुरोध किया है कि इसे रोकने के लिए एक ठोस अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाया जाना चाहिए.

यह समस्या किस हद तक गंभीर हो चुकी है, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि तस्करी रोकने के लिए बना रेवेन्यू इंटेलिजेंस निदेशालय हर माह औसतन एक हजार करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की प्रतिबंधित वस्तुएं पकड़ता है. तस्करी एक वैश्विक समस्या है. संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन के अनुसार, तस्करी हर साल वैश्विक अर्थव्यवस्था के तीन फीसदी हिस्से का नुकसान करती है तथा इससे दो ट्रिलियन डॉलर की हानि होती है.

इसका एक बेहद चिंताजनक पहलू यह है कि उपभोक्ता, खाद्य, शराब, तंबाकू और इलेक्ट्रॉनिक सामानों की तस्करी करने वाले नेटवर्क ही नशीले पदार्थों, घातक हथियारों, बारूद आदि को भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते हैं. हवाला कारोबार के तार भी इनसे जुड़े होते हैं तथा आतंकियों का वित्त पोषण भी इसी माध्यम से होता है. इस प्रकार, यह एक आपराधिक आर्थिक और वित्तीय समस्या तो है ही, साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा की भी प्रश्न है.

तस्करी के खिलाफ हमारे देश में भी कानून हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक समझौते हैं. लेकिन देश के भीतर होने वाली कार्रवाई में आम तौर पर छोटे स्तर के तस्कर ही पकड़े जाते हैं. वे अपने नेटवर्क के बारे अधिक जानकारी भी नहीं दे पाते. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझौते और इंटरपोल की व्यवस्था के बावजूद सरकारें एवं संगठन समुचित ढंग से परस्पर समन्वय नहीं स्थापित कर पाते. अनेक देशों की सत्ता के संबंध भी तस्करों से हैं. घरेलू और वैश्विक स्तर पर सरकारों और जांच एजेंसियों में भी तस्करों की पैठ है.

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