सरकारी नीतियों के मुताबिक देश में स्टार्टअप्स की शुरुआत 2016 में हुई, पर 2014 से पहले अपने यहां स्टार्टअप का दौर आ गया था. उस दौर में फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और कुछ वित्तीय क्षेत्र के (फिनटेक ) स्टार्टअप्स ही देश में थे, लेकिन वे सभी संघर्ष के दौर में ही थे. मोदी सरकार ने 16 जनवरी, 2016 को राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस की शुरुआत की और तब से स्टार्टअप शब्द युवाओं के सपनों के शब्दकोश में शामिल हो गया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले नौ वर्षों में स्टार्टअप्स की संख्या 500 से बढ़कर करीब 1,59,000 हो गयी है. भारत वैश्विक स्तर पर स्टार्टअप्स की दौड़ में अमेरिका व चीन के बाद तीसरे पायदान पर खड़ा है. तकरीबन 17 लाख रोजगार इन्होंने उपलब्ध करवाए हैं. करीब 70 हजार से अधिक स्टार्टअप्स में महिला संचालक हैं, जो महिला सशक्तिकरण की तरफ भारत के बढ़ते कदमों को दिखाता है.
उन स्टार्टअप्स ने सबसे अधिक प्रभावित किया है, जिनका वित्तीय मूल्यांकन एक अरब डॉलर से बढ़कर अधिक हो गया और उन्हें यूनिकॉर्न शब्द से संबोधित किया जाने लगा. आज भारत में 115 यूनिकॉर्न हैं. कुछ स्टार्टअप्स ने खुद को पब्लिक कंपनियों में बदला और शेयर बाजार की तरफ रुख किया. इनमें पेटीएम व जोमैटो आदि हैं. भारत में स्टार्टअप्स ने अपनी शुरुआत में समाज की बड़ी समस्या दूर करने के लिए कुछ नवाचार किये, जिसका उद्देश्य यह था कि टेक्नोलॉजी के माध्यम से समाज के हर व्यक्ति तक लाभ पहुंचे. फिर धीरे-धीरे उसमें कुछ बड़े संस्थानों व औद्योगिक घरानों का वित्तीय निवेश होने लगा. इस दौरान स्टार्टअप्स ने दो तरह से कमाई की. पहली, ग्राहकों के विभिन्न प्रकार के लेन-देनों के व्यवहार व रुचियों का संग्रहण और दूसरा निवेशकों के माध्यम से वित्तीय निवेश. लेकिन एक दौर के बाद स्टार्टअप्स समाज में व्यापार करने में अधिक संलग्न होने लग गये हैं, जिसका प्रत्यक्ष नुकसान उस क्षेत्र के छोटे व्यापारों को होने लगा. इससे सरकारों को भी आर्थिक नुकसान हुआ, क्योंकि स्टार्टअप बनने की प्रक्रिया में उन्होंने सरकारी प्रोत्साहन के तौर पर लंबे अरसे तक विभिन्न प्रकार के करों में रियायतें और छूट प्राप्त की, वहीं उनके माध्यम से अब छोटे व्यवसायों को होने वाला नुकसान भी देखने को मिल रहा है, जिनमें जीएसटी का नुकसान भी शामिल है. जैसे पहले एक स्थानीय दुकानदार अपनी किसी वस्तु को 100 रुपये में बेचता था, तो उस पर जीएसटी 18 रुपये लगता था, पर अब बड़े स्टार्टअप्स उस स्थानीय व्यापारी से उसके उत्पाद बड़ी संख्या में 50 रूपये में खरीदने शुरू कर दिये, तो उसका मुनाफा प्रति उत्पादन के हिसाब से कम हो गया, जिसका नुकसान सरकार को जीएसटी में हुआ.
स्टार्टअप्स का मुख्य कार्य छोटे व्यापारों को टेक्नोलॉजी के माध्यम से बड़े प्लेटफार्म पर लाना था, पर देखने को मिल रहा है कि स्टार्टअप्स उनके साथ प्रतिस्पर्धा में उतर गये हैं और खुद के रिटेल स्टोर्स स्थापित कर रहे हैं. इसमें उनकी दो गलत नीतियां सामने आ रही हैं. पहले वे अपने उत्पादों को डिस्काउंट पर बेचकर निवेशक के वित्तीय निवेश का नुकसान कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धा में अपनी पैठ बना रहे हैं, और जब उनके उत्पादों का चलन बढ़ जाता है, तो वे ग्राहकों से डिलीवरी चार्ज के रूप में अतिरिक्त रकम वसूल रहे हैं, जो व्यवसाय के तौर-तरीकों को नष्ट कर रहा है. स्टार्टअप से यूनिकॉर्न का रास्ता पूर्णतया उसके वित्तीय मूल्यांकन पर निर्भर करता है. इस संबंध में बड़े-बड़े वित्तीय विश्लेषकों ने दबे स्वर में यह बात मानी है कि विश्लेषण के संबंध में बहुत पारदर्शी नियम अभी उपलब्ध नहीं हैं. यह बात भी देखने को मिली है कि जो यूनिकॉर्न अपने आइपीओ के बाद पब्लिक लिस्टेड कंपनी के तौर पर अपनी पहचान रखने लगे, उनके वित्तीय निवेश के पैटर्न में इंस्टिट्यूशन इक्विटी की जगह रिटेलर इक्विटी के रूप में ले ली है. इससे यह समझ में आता है कि इन स्टार्टअप्स के मालिकों ने अपनी रकम बहुत अधिक मुनाफे पर सुरक्षित कर ली. इसी के चलते यह भी देखा गया कि कई ऐसे यूनिकॉर्न पब्लिक लिस्टेड कंपनी बने और बाद में उनका मूल्यांकन यूनिकॉर्न के मूल्यांकन से भी कम हो गया. भारतीय आर्थिक नीतियों की वैश्विक स्तर पर आलोचना इस कारण भी होती है कि उनमें शोध व अनुसंधान पर बहुत कम निवेश किया जाता है. यह बात भारतीय स्टार्टअप्स में भी देखने को मिलती है.
केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का यह कहना, कि भारतीय स्टार्टअप्स ने बेरोजगार युवाओं को सस्ते मजदूर में बदल दिया है, जो अमीरों के घर पर उन्हें खाना पहुंचाने की कतार में लगे हुए हैं, आज के दौर के भारतीय स्टार्टअप्स की एक तस्वीर जरूर दिखाता है, पर यह भी सच्चाई है कि बेरोजगार युवाओं के पास आज उसके अलावा कोई विकल्प नहीं है. हालांकि यह भी समझना होगा कि केंद्रीय मंत्री का यह कथन आने वाले समय में भारतीय स्टार्टअप्स के लिए नीतियों के एक नये दौर को लाने की भूमिका के तौर पर दिखता है, जिसमें सरकार का मकसद स्पेस टेक्नोलॉजी, कृषि क्षेत्र, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों की तरफ बहुत अधिक हो जाएगा. आने वाले समय में इस संबंध में सरकारी नीतियों में प्रोत्साहन हो या कुछ अन्य वित्तीय सुविधाएं मिलेगी, जिनका जिक्र वाणिज्य मंत्री ने स्टार्टअप महाकुंभ में किया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)