नयी दिल्ली : गृह मंत्रालय ने कर्नाटक में लिंगायत और वीर शैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मुद्दे से गुरुवारको वस्तुत: अपना पल्ला झाड़ लिया और कहा कि यह मुद्दा इसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है.
मंत्रालय ने कहा कि इस पर अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय गौर करेगा. गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस मुद्दे पर जल्द कोई निर्णय होने की उम्मीद नहीं है क्योंकि कर्नाटक में चुनाव आचार संहिता लागू है जहां अगले महीने विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. मंत्रालय को कर्नाटक सरकार से पत्र मिला है जिसमें संख्या बल के आधार पर मजबूत इन दोनों समुदायों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की अनुशंसा की गयी है.
प्रवक्ता ने बताया, ‘बहरहाल, यह विषय गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है और इसलिए इसे अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के पास भेजा जा रहा है जो इस पर निर्णय करने के लिए सक्षम है.’ लिंगायत और वीर शैव की राज्य में लगभग 17 फीसदी आबादी है और उन्हें भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है.
गौरतलब है कि कर्नाटक सरकार ने नागभूषण कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए पिछले 19 मार्च को लिंगायत समुदाय को धर्म का दर्जा देने सिफारिशों को मंजूरी दी थी. भारतीय जनता पार्टी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इसे समुदाय को बांटनेवाला बताया था. राज्य की सिद्धरमैया सरकार ने यह फैसला विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लिया है. ध्यान रहे कि ही लिंगायत संतों के एक समूह ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से मुलाकात की थी और उस आधिकारिक कमेटी की रिपोर्ट लागू करने का उनसे अनुरोध किया था, जिसमें उनके समुदाय को एक अलग धार्मिक एवं अल्पसंख्यक दर्जा देने की सिफारिश कीगयीहै. संतों का नेतृत्व गाडग आधारित तोंदार्य मठ सिद्धलिंग स्वामी ने की थी. उन्होंने सिद्धरमैया से उनके निवास पर मुलाकात की और कमेटी रिपोर्ट पर विचार करने और उसे लागू करने का अनुरोध किया था. गौरतलब है कि रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक में लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक माना जा सकता है.