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महाभारत का समय

विजय शंकर दुबे पूर्व मुख्य सचिव बिहार-झारखंड दुनिया के महान धार्मिक-पौराणिक ग्रंथों में महाभारत काफी लोकप्रिय है. यह ऐसा महाकाव्य है, जो हजारों वर्षो के बाद भी अपना आकर्षण बनाये हुए है. यह काव्य रचना जितनी लौकिक है, उतनी ही अलौकिक भी. इसके जरिये जीवन-जगत, समाज-संबंध, प्रेम-द्वेष, आत्मा-परमात्मा के रहस्यों को समझा जा सकता है. […]

विजय शंकर दुबे

पूर्व मुख्य सचिव

बिहार-झारखंड

दुनिया के महान धार्मिक-पौराणिक ग्रंथों में महाभारत काफी लोकप्रिय है. यह ऐसा महाकाव्य है, जो हजारों वर्षो के बाद भी अपना आकर्षण बनाये हुए है. यह काव्य रचना जितनी लौकिक है, उतनी ही अलौकिक भी. इसके जरिये जीवन-जगत, समाज-संबंध, प्रेम-द्वेष, आत्मा-परमात्मा के रहस्यों को समझा जा सकता है.

शायद यही वजह है कि समय के बड़े अंतराल के बाद भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है. इसी महाभारत में श्रीकृष्ण के कर्म, अनुराग, युद्ध, रणनीति वगैरह के दर्शन भी मिलते हैं. अब तो श्रीभगवद् गीता को प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थानों में पढ़ाया जा रहा है. इसके घटनाक्रम और वृतांत यह जिज्ञासा पैदा करते रहे हैं कि इस काव्य का रचनाकाल क्या है. कोई इसे तीन हजार साल पुराना मानता है तो किसी की मान्यता है कि यह करीब 1400 ईपू या 950 ईपू पुरानी बात है.

महाभारत के रचनाकाल पर बीते दिनों बिहार-झारखंड के मुख्य सचिव रहे विजय शंकर दुबे ने पटना के प्रतिष्ठित केपी जायसवाल शोध संस्थान में विशेष व्याख्यान श्रृंखला के तहत अपना लिखित व्याख्यान पेश किया. यह विषय इतना रोचक और दिलचस्प रहा है कि आज भी उसकी लोकप्रियता जस की तस बनी हुई है. इस विशेष पेज में पढ़िए श्री दुबे के अंगरेजी में दिये गये व्याख्यान के अनुवाद का संपादित अंश. हम इसे प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि महाभारत के रचना काल, उसके चरित्रों के संदर्भ में हमारी-आपकी जिज्ञासाओं को एक मुकाम मिल सके.

महाभारत का युद्ध क्या सिर्फ एक पौराणिक कथा है या इसमें कुछ सच्चई भी है? क्या महाभारत का युद्ध उसी उग्रतापूर्ण तरीके से लड़ा गया था, जैसा महाकाव्य में वर्णन किया गया है? क्या उसके पात्र सच्चे थे या सिर्फ एक मनगढ़ंत कहानी है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हर भारतीय के दिमाग में उथल-पुथल मचाते रहते हैं. हमेशा पूछे जाने वाले ऐसे ही सवालों के जवाब देने की कोशिश की गयी है.

1. ग्रहों की स्थिति के आधार पर महाभारत युद्ध की तारीख

ग्रहों की स्थिति, जैसाकि कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के दौरान महाभारत में वíणत हैं, को व्यापक रूप से युद्ध की तारीख जानने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. फिर भी, ग्रहों की स्थिति महाभारत युद्ध की कई तिथियां बताती हैं. ग्रहों की दशा की गणना के आधार पर कुछ तिथियां सामने आयी हैं, वे हैं – 3140 ईपू, 3137 ईपू, 3102 ईपू, 3000 ईपू, 2449 ईपू, 1931 ईपू, 1400 ईपू, 1197 ईपू, 1151 ईपू.

गुप्त वंश के शासनकाल के समय पांचवी सदी में खगोलविद् आर्यभट्ट ने गणना के बाद महाभारत युद्ध की तारीख 3102 ईपू बतायी थी. हालांकि उनके बाद के कई खगोलविद् आर्यभट्ट से सहमत नहीं हैं. उदाहरण के लिए ब्रह्ममिहिर और कल्हन के अनुसार महाभारत का युद्ध 2449 ईपू में लड़ा गया था. इस तरह खगोलविदों की गणना में ही आपसी अंतरविरोध उजागर हो जाते हैं. उनमें कुछ गणनाएं महाकाव्य में काल्पनिक घटनाओं पर आधारित हैं, जिसकी सच्चई को आज मान्यता नहीं दी जा सकती है.

ऊपर जिन खगोलविदों का जिक्र किया गया है, उन्होंने महाभारत युद्ध की तारीख की गणना युद्ध की तथाकथित तारीख के 3500 साल या उससे भी ज्यादा समय बाद की. इस बीच महाकाव्य का मूलग्रंथ पूरी तरह से परिवíतत हो गया था और इसलिए महाकाव्य में वíणत घटनाओं के आधार पर की गयी गणना पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता है. जैसाकि हम सभी जानते हैं, महाकाव्य के मूलगंथ को समय-समय पर विस्तारित किया गया है. मौलिक रूप से जय संहिता में 8800 श्लोक थे, जो भारत में 24000 श्लोक हो गये और अंत में महाभारत में 100000 श्लोक हो गये. इसमें 1000 वर्ष का हरिवंश का समय भी शामिल है. महाभारत का परिवर्धन पांचवी शताब्दी ईपू से चौथी शताब्दी एडी या उससे आगे का काल है. इस बड़े काल में, महाकाव्य में नयी कहानियों को जोड़ा गया. ताजा घटनाक्रमों को उसमें समाहित किया गया. इस प्रकार से महाकाव्य के मूल भावों से छेड़छाड़ की संभावनाओं को नकार पाना मुश्किल है.

2. भारतीय साहित्य स्नेत पर आधारित तारीख

वैदिक और वैदिक काल के बाद का साहित्य

1. चारों वेदों में, ब्राह्मण या प्रारंभिक उपनिषदों में महाभारत युद्ध का जिक्र नहीं है. पहली बार, बाद के उपनिषदों और सूत्र साहित्य (जिसे वेदांग भी कहा जाता है), जिसे 800 ईपू से 500 ईपू के बीच लिखा गया, में जय-संहिता और भारत का जिक्र अत्यंत पवित्र ग्रंथ के तौर पर किया गया है और आभास मिलता है कि युद्ध 800 ईपू से पहले लड़ा गया होगा. छंदोगय उपनिषद (सातवीं शताब्दी ईपू) में वासुदेव कृष्ण का जिक्र है.

2. पाणिनी (पांचवी शताब्दी ईपू) ने अपने अष्टाध्यायी में शब्दों की रचना को समझाया है और वासुदेव का, महाभारत आदि के साथ महाभारत के नायकों का जिक्र किया है, जो बताता है कि उस समय महाकाव्य से सभी लोग परिचित हो गये थे और उसके पात्रों से कोई भी अनजान नहीं था.

3. मेगास्थनीज (चौथी शताब्दी ईपू) बताते हैं कि मथुरा के लोगों में हेराक्लीज (वासुदेव कृष्ण) का विशेष स्थान था.

4. पौराणिक ग्रंथ : कुछ पुराणों के अनुसार अधिसीम कृष्ण और महापद्म नंद के सत्तासीन होने के बीच 26 पीढ़ियों का अंतर है. जैसाकि हम जानते हैं, युधिष्ठिर के बाद अधिसीम कृष्ण पांचवें स्थान पर थे (युधिष्ठिर – परीक्षित – जन्मेजय – अश्वमेघ दत्त-अधिसीम कृष्ण). दूसरे शब्दों में, 26+5=31 पीढ़ियों का अंतर युधिष्ठिर और महापद्म नंद के बीच है. हम यह भी जानते हैं कि महापद्म नंद करीब 382 ईपू सत्तासीन हुए थे. प्राचीन काल में एक शासनकाल की गणना औसतन 18 वर्षो की मानी जाती है. इसलिए युधिष्ठिर के सत्तासीन होने का समय 31 x 18+382 = 940 ईपू या 950 ईपू कह सकते हैं. प्राचीन भारतीय इतिहास परंपरा के जानकार डॉ एफइ फ्लीट के मुताबिक युद्ध का यही समय होना चाहिए.

परंतु, कुछ अन्य पुराणों के अनुसार, परीक्षित के जन्म और महापद्म नंद के सत्तासीन होने के बीच 1050 वर्षाें का फासला है. अगर इसे भरोसेमंद माना जाये, तब यह भारत युद्ध की तिथि को बढ़ाकर करीब 1050+382=1432 ईपू कर देगी.

3. भारतीय अभिलेखों के

आधार पर

1. भारत युद्ध या इस ऐतिहासिक युद्ध में हिस्सा लेने वाले नायकों के बारे में दूसरे भारतीय अभिलेख भी मौन हैं. वासुदेव के संदर्भ में शुरुआती जिक्र विदिशा (बेसनगर) अभिलेख में मिलता है, जो दूसरी शताब्दी ईपू के हिलीयोडोरस के समय का है. लेकिन, इतनी देर के बाद आया जिक्र भारत युद्ध के समय को बताने में मददगार नहीं है. इससे इतना ही पता चलता है कि दूसरी शताब्दी ईपू से पहले युद्ध जरूर हुआ होगा.

2. वातापी (कर्नाटक के बागलकोट जिले के बादामी) के अभिलेख के अनुसार, 3102 ईपू में भारत युद्ध हुआ, जिसे कलियुग का शुरुआती समय भी माना जाता है. इस अभिलेख का मूलपाठ एक कवि रवि-कीíत ने दिया था. अभिलेख को 635 ई में चालुक्य राजा पुलकेसिन-दो के समय लिखा गया था. अभिलेख में वíणत समय आर्यभट्ट द्वारा की गयी गणना पर आधारित है. इसलिए इस गणना की वही कमियां हैं जो आर्यभट्ट की गणना में पायी जाती हैं.

4. महाप्रलय के आधार पर समय

1. भयानक महाप्रलय का जिक्र प्राचीन भारतीय, हिब्रयू और बेबीलोन के साहित्य में देखने को मिलता है. शतपथ ब्राह्मण (आठवीं शताब्दी ईपू) के अनुसार, सुबह में जब मनु पानी में अपने हाथ धो रहे थे, उनके हाथ में एक छोटी मछली आयी और अपनी जान बचाने को कहा -मुङो बचाओ, मै तुमको बचाऊंगी. मनु ने मछली को बचाया और जब वह बड़ी हो गयी, तब समुद्र में छोड़ दिया. मछली ने मनु को जल प्रलय के बारे में चेताया और एक नाव बनाने का सुझाव दिया और कहा कि जब प्रलय आये तो वे नाव में चले जायें. तय समय पर पानी बढ़ने लगा. मनु नाव पर सवार हो गये.

तब मछली तैरकर पहुंची और उसने मनु से कहा कि नाव की रस्सी को मेरे सिंग से बांध दो जिससे मैं नाव को उत्तर दिशा में पहाड़ की तरफ ले जा सकूं. पहुंचने के बाद मछली ने मनु से कहा कि वह पहाड़ पर चढ़ जाएं और तबतक वहीं रहें, जबतक जल प्रलय का प्रभाव कम नहीं हो जाता. कहा जाता है कि जल प्रलय में सब कुछ समाप्त हो गया. सिर्फ मनु ही बचे थे और आज की मानव जाति के उत्पन्नकर्ता वही बने. दुर्भाग्यवश, किताब में इस घटना के संबंध में कोई तारीख नहीं दी गयी है. लेकिन, यह कहा जाए कि 800 ईपू के आसपास यह घटना घटी होगी, तो गलत नहीं होगा.

2. कुछ इसी तरह के जल प्रलय और निर्माण की कहानी प्रचीन बेबीलोन साहित्य में भी है. सबसे ज्यादा प्रचलित और विस्तारपूर्वक वर्णन गिलगमेश महाकाव्य में है, जिसकी रचना 2200 ईपू के आसपास हुई होगी. बेबीलोन की कई कहानियों में जल प्रलय का जिक्र है. उनमें सबसे प्रमुख है अक्कड का अतरा-हसिस महाकाव्य. लेकिन, मूल रूप से सभी कहानियां

एक जैसी हैं. संक्षेप में कहें तो पौराणिक कथाओ में ईश्वर ने सुमेर के लोगों को सजा देने के लिए सात दिनों तक भारी बारिश करवायी. इस दौरान सभी चीजें समाप्त हो गयीं, सिर्फ एक आदमी को छोड़कर, जिसने अपनी और अपने परिवार की जान एक नाव पर सवार होकर बचायी थी. उसे इस विभीषिका की पूर्व जानकारी सरकंडे के पेड़ों से मिली थी, जिसका इस्तेमाल उसने अपनी झोपड़ी बनाने में किया था. यह कहा गया है कि सरकंडों ने सुमेरवासियों को वर्षा के माध्यम से सजा देने के संबंध में देवताओं को बात करते हुए सुन लिया था. अत: सरकंडों ने इस संबंध में झोपड़ी मालिक को आगाह कर दिया था. जब जल प्रलय खत्म हुआ, तब उस व्यक्ति ने मानव समाज की फिर से संरचना की. अतरा-हसिस के अक्कादिन महाकाव्य के अनुसार ज्यु सुद्र ने गुस्साये देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जानवरों की बलि दी और मानवता को बचाया था. संयोग से, अक्कादिन पांडुलिपि में ज्यु सुद्र का मतलब ‘वो जिसने जीवन को बचाया’ है.

3. शुरुआती हिब्रू साहित्य में भी जल प्रलय के संदर्भ में कुछ ऐसा ही जिक्र किया गया है, जैसा मेसोपोटामिया में किया गया है. हिब्रयू साहित्य में नोह नाम का नायक जल प्रलय से बच जाता है और मानव सभ्यता की नींव रखता है. लेकिन इस घटना के संदर्भ में कोई तारीख नहीं दी गयी है. फिर भी यह घटना ईसा के जन्म से कई सौ वर्षो पूर्व घटी होगी.

5. मेसोपोटामिया की खुदाई के आधार पर महाप्रलय का समय

1. 1930 के दशक में इराक के दजला और फरात घाटी में मेसोपोटामिया के भू-भाग पर खुदाई की गयी. उर नामक स्थान में की गई खुदाई में जल प्रलय के गाद का पता चला जिसकी मोटाई 8-11 फीट थी और वह सभ्यता के शुरुआती समय से पहले की थी. यह घटना करीब 3500 ईपू की है.

2. किस नामक स्थान की खुदाई में दस इंच मोटा सिल्ट मिला, जिससे तीन बड़े जल प्रलय के सबूत मिले. एक 3000 ईपू के आसपास, दूसरा 2900 ईपू और तीसरा 2600 ईपू के आसपास का है.

3. शारुपाक नामक जगह पर खुदाई के दौरान बालू और 15 इंच मोटा सिल्ट मिला. यह समय 2950 ईपू से 2850 ईपू के बीच का है.

अब सवाल यह है कि मेसोपोटामिया, हिब्रयू और भारतीय साहित्य में वíणत महाप्रलय को किस से जोड़ा जाए. किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि मेसोपोटामिया में खुदाई में जिस जल प्रलय के बारे में पता चला है, वह सभी स्थानीय थे. इरूडू में खुदाई के दौरान जल प्रलय का कोई सबूत नहीं मिला. लेकिन इसकी कहानियां साहित्यिक संदर्भो में हैं, चाहे वे भारतीय हों या पश्चिमी, उनमें जल प्रलय का जिक्र आता है , जिसने सबकुछ नष्ट कर दिया था. उसके बाद एकमात्र बचने वाला व्यक्ति मनु हो सकते हैं, ज्यु सुद्र हो सकते हैं, नोह हो सकते हैं.

पर कई विद्वानों का मानना है कि जल प्रलय एक महत्वपूर्ण घटना रही है और इसीलिए इस घटना को बहुत स्पष्ट तरीके से भारतीयों, हिब्रयू और बेबीलोन के लोगों को एक ही तरीके से बताया गया है. इसलिए, कल्पना मात्र कह कर इसे खारिज नहीं किया जा सकता है. पुराणों के अनुसार, मनु एवं महाभारत युद्ध के बीच 95 पीढ़ियां गुजरी थीं. यदि मनु का समय महाप्रलय के आधार पर 3102 ईपू माना जाता है तो महाभारत युद्ध का समय 3102-(95 x 18)=1392 ईपू या 1400 ईपू रहा होगा. अगर यह माना जाए कि मेसोपोटामिया में तीनों गाद जमा होना की सबसे निचली तारीख 2600 ईपू को जल प्रलय का समय माना जाये, तब महाभारत का समय 2600-(95 x18)=890 ईपू या 900 ईपू हो जायेगा. इस तरह महाभारत युद्ध का समय 1400 ईपू से 900 ईपू के बीच हो कहीं भी हो सकता है.

6. भारतीय पुरातात्विक सबूतों के आधार पर

1. हस्तिनापुर की खुदाई को भारत युद्ध के संदर्भ में सबसे प्रामाणिक पुरातात्विक सबूत माना जाता है. 1950 के दशक में हुई खुदाई से यह बात सामने आयी है कि हस्तिनापुर को जल प्रलय ने नष्ट कर दिया था. यह घटना करीब 800 ईपू की है. इसमें 50 साल जोड़ा या घटाया जा सकता है. महाभारत में भी इस बात का जिक्र है कि हस्तिनापुर जल प्रलय में नष्ट हो गया था और वहां के राजा निचक्षु ने शहर छोड़ कर कौशांबी को अपनी राजधानी बनायी थी. यह इलाहाबाद के नजदीक है. युधिष्ठिर के बाद के छठे शासक थे निचक्षु. दूसरे शब्दों में कहें तो उनका उदय युधिष्ठिर के 18×6=108 वर्ष बाद हुआ. इससे युधिष्ठिर के शासन का जो समय सामने आयेगा, वह है 850+108=958 ईपू या कह सकते हैं 950 ईपू का. महाभारत युद्ध के तुरंत बाद युद्धिष्ठिर ने हस्तिनापुर पर शासन किया था. इस आधार पर कह सकते हैं कि महाभारत युद्ध 950 ईपू के आसपास हुआ होगा.

2. ऊपर के निष्कर्ष का समर्थन कौशांबी में खुदाई के बाद मिले सबूत भी करते हैं. कौशांबी की सुरक्षा व्यवस्था को 815 ईपू में मजबूत बनाया गया था जिसे निचक्षु ने किया होगा. यदि यह मान्य है तब भारत युद्ध का समय 815+108=923 ईपू (950 ईपू के नजदीक का समय) होगा.

3. इसी के समानांतर महाभारत युद्ध का यही समय बताने वाला एक और सबूत है. मध्य एशिया में हाल के समय जो साक्ष्य मिले हैं, उससे इस बात का प्रमाण मिलता है कि आर्य लोग कैस्पियन सागर, तुर्की, सीरिया, इराक और उत्तरी ईरान के इलाकों में 18वीं शताब्दी ईपू तक फैल गये थे. कसाइट्सि (भारतीय-यूरोपियन भाषा बोलने वाले लोगों का समूह और अपने आप को आर्य कहने वाले) ने बेबीलोन के शहरों पर 1760 ईपू के आसपास आक्रमण किया था. उनके ये हथियार कठोर धातुओं से बने हुए थे. उनके देवताओं के नाम भारतीय-यूरोपीय थे, जैसे- इंडस (इंद्र), सूर्या (सूर्य), असतासा (वायुवेद), कस्सु आदि. इस नतीजे का समर्थन टेल अर्मना और बोगाज कोई (दोनों 15 वीं शताब्दी ईपू) में मिले अभिलेख भी करते हैं. इन अभिलेखों में देवताओं जैसे इंद्र, मित्र, वरुण, उषा, सूर्य आदि का जिक्र है. इससे यह सहज ही माना जा सकता है कि आर्य लोग 18 वीं शताब्दी ईपू से 15वीं शताब्दी ईपू तक मध्य-पूर्व एशिया में फैल गये थे और अब वे भारत में प्रवेश करने को आतुर थे. ऐसी परिस्थिति में महाभारत युद्ध का समय 1500 ईपू के बाद होगा.

4. सिंधु घाटी की सभ्यता के नगरों को आर्यो ने इसी दौरान नष्ट कर दिया था. ऋृग वेद में एक जगह हरियुपिया स्थान का जिक्र है. कई इतिहासकार इसे सिंधु घाटी की सभ्यता की हड़प्पा से पहचान कराते हैं. ठीक इसी तरह, ऋृग वेद में शिश्न देव (शिव) का संदर्भ मिलता है जिससे रक्षा की प्रार्थना की गयी है. सिंधु सभ्यता के लोग शिश्न देव के उपासक थे.

अत: स्पष्ट है कि सिंधु सभ्यता के लोगों से रक्षा करने के लिए ऋृग वेद में प्रार्थना की गयी है. सिंधु सभ्यता के पतन का दस्तावेज कई पुरातात्विक स्थानों से मिला है, जो 1500 ईपू से 1400 ईपू के बीच के हैं. इस तरह उत्तर-पश्चिम भारत में आर्यो के विस्तार की शुरुआत करीब 1500 ईपू के आसपास हुई होगी या उसके बाद 1400 ईपू के आसपास. ऋृग वेद का काल 1000 ईपू के आसपास तक था. ऋग वेद में भारत युद्ध के बारे में कोई चर्चा नहीं है, इसलिए महाभारत युद्ध का समय 1000 ईपू के बाद का ही होगा.

5. निस्संदेह, महाभारत युद्ध प्राचीन काल का सबसे भीषण युद्ध था. उस तरह का भीषण युद्ध लकड़ी, हड्डी, पत्थर या तांबा/कांस्य से बने हथियारों से नहीं लड़ा जा सकता था. लोहे से बने हथियारों से वैसा भीषण युद्ध लड़ा जा सकता है. एशिया माइनर के हित्ती लोगों ने लोहा गलाने का काम 1800 ईपू के आसपास किया था और उस तकनीक को अपने पास 1200 ईपू तक गुप्त रखा था. 1200 ईपू जब हित्ती साम्राज्य का बिखराव शुरू हुआ, तब लोहा गलाने की तकनीक जानने वाले लोग अफगानिस्तान और इराक वाले क्षेत्र में चले गये. 1000 ईपू के आसपास उन्होंने इन इलाकों में लोहे का सामान बनाना शुरू किया जो भारत के बहुत करीब हैं. इस तरह, कई इतिहासकार यह भी मानते हैं कि भारत में लोहे की तकनीक नौवीं शताब्दी ईपू इराक से आयी. हालांकि कुछ इतिहासकारों का मत है कि तब तक भारतीयों ने खुद इस तकनीक को विकसित कर लिया था. लेकिन, ऐसा मानने वाले भी 1000 ईपू से पहले भारत में लोहे का इतिहास बता पाने में समर्थ नहीं हैं. भारत में खुदाई में लोहे के सबूत मिले हैं जो 1000 ईपू से पहले के नहीं हैं. इसलिए, अगर यह कहा जाये कि भारत में लोहे का इतिहास 1000 ईपू के आसपास का है तो गलत नहीं होगा. अगर यह सही है तो भारत युद्ध का समय 1000 ईपू के बाद का होगा.

7. निष्कर्ष

इस प्रकार, हम देखते हैं कि महाभारत में ग्रहों की स्थितियों के बारे में जो जिक्र किया गया है, उससे निश्चित ही हम इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकते कि भारत युद्ध की तिथि क्या थी. ऐसी ही स्थिति ज्योतिषीय गणना, महाकाव्य के तथ्यों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक संदर्भां के साथ भी है. पुरातत्व से मिले सबूत ही एकमात्र ऐसे साक्ष्य हैं, जिन पर तर्कसंगत तरीके से महाभारत युद्ध के समय के बारे में जानने के लिए भरोसा किया जा सकता है. पुरातात्विक सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है कि 950 ईपू के आसपास का समय ही महाभारत युद्ध का सबसे स्वीकार्य योग्य है.

बौद्ध और जैन साहित्य के अनुसार

1. पांचवी शताब्दी ईपू का शुरुआती बौद्ध साहित्य भारत युद्ध और उसके नायकों पर चुप है.

2. जैन साहित्य में कृष्ण का जिक्र है. उनके बारे में कहा गया है कि वे 22 वें जैन र्तीथकर अरिष्टनेमी या नेमीनाथ के समकालीन थे और उसी यादव कुल के थे. यह सर्वविदित है कि पाश्र्वनाथ 23वें जैन र्तीथकर थे और कहा जाता है कि उनकी मृत्यु 24वें जैन र्तीथकर महाबीर के जन्म के 250 वर्ष पहले हुई थी. माना जाता है कि महाबीर का जन्म 599 ईपू हुआ था. कह सकते हैं कि 600 ईपू में हुआ था. इस तरह पाश्र्वनाथ का निधन करीब 600+250=850 ईपू में हुआ था. यह भी कहा जाता है कि पाश्र्वनाथ का निधन सौ वर्ष की आयु में हुआ था. अगर ऐसा है तो उनका जन्म करीब 850+100=950 ईपू में हुआ होगा. 22वें र्तीथकर नेमीनाथ का समय 950 ईपू के आसपास का होगा. इस परिस्थिति में 950 ईपू के समय को भगवान कृष्ण और भारत युद्ध का काल माना जा सकता है.

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