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विवाह पूर्व क्यों जरूरी है वर-वधू का कुंडली मिलान

डॉ एनके बेरा, ज्योतिषाचार्य विवाह और दांपत्य जीवन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है. उसकी सफलता, असफलता, सुख-दुःख सब कुछ इन पर निर्भर करता है. प्रत्येक मनुष्य के जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण अंग है. विवाह-संस्कार के सभी कर्मों में सप्तपदी सर्वोपरि महत्व रखती है. वर-वधू द्वारा साथ-साथ सात फेरे लगाने […]

डॉ एनके बेरा, ज्योतिषाचार्य

विवाह और दांपत्य जीवन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है. उसकी सफलता, असफलता, सुख-दुःख सब कुछ इन पर निर्भर करता है. प्रत्येक मनुष्य के जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण अंग है. विवाह-संस्कार के सभी कर्मों में सप्तपदी सर्वोपरि महत्व रखती है. वर-वधू द्वारा साथ-साथ सात फेरे लगाने को ही सप्तपदी कहते हैं.
विवाह का बंधन धर्म का बंधन है. जिस प्रकार धर्म किसी भी स्थिति में त्यागा नहीं जाता है, उसी प्रकार विवाह का बंधन किसी भी स्थिति में तोड़ा नहीं जाता. पति के साथ रहनेवाली पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है. वस्तुतः गृहस्थ धर्म के विभिन्न अनुष्ठानों की पूर्ति के लिए विवाह होता है और गृहस्थ धर्म के सभी कार्यों के लिए पति-पत्नी एक दूसरे पर निर्भर होते हैं.
हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने ज्योतिष अनुसंधान से विवाह के विषय में ज्योतिष ग्रंथों व विवाह संस्कार के ग्रंथों में कुछ सूत्र स्पष्ट किये हैं, जिनके अनुकरण करने से वर-वधू का गृहस्थ जीवन सुखद, आनंदमय हो सकता है. विवाह संबंध तय करने से पूर्व जन्म कुंडली मिलान आवश्यक माना जाता है. इसमें वर-कन्या की अभिरुचियां, प्रकृति की समानता, जीवन के विभिन्न पक्षों में उनकी आपसी पूरकता जैसे संवेदनशील पहलुओं पर विचार करने के लिए मेलापक की ज्योतिष शास्त्रीय परंपरा है, जो बेहद सटीक व महत्वपूर्ण है.
मेलापक के दो पूर्ण आधार है : 1. नक्षत्र मेलापक व 2. ग्रह मेलापक. नक्षत्र मेलापक के आधार पर वर-कन्या के जन्म नक्षत्र व जन्म राशि के माध्यम से अष्टकूट मिलान किया जाता है. इससे उनकी प्रकृति और अभिरुचिगत समानता का मूल्याकंन किया जाता है. वर-कन्या की कुंडलियों में मंगल, सूर्य, शनि, राहु, केतु की स्थिति के परस्पर मूल्याकंन के आधार पर दोनों ही परस्पर अनुकूलता या प्रतिकूलता का विचार ग्रह मेलापक का एक पहलू है-
इन्हीं पाप ग्रहों की स्थिति के आधार पर मांगलिक मिलान किया जाता है. ग्रह मेलापक का दूसरा पहलू है. दोनों कुंडलियों में नवग्रहों की स्थिति का परस्पर मूल्याकंन व विभिन्न भावों की स्थिति के आधार पर त्रिएकादश, सम, सप्त आदि स्थितियों का निर्णय व इसका फल कथन है.
नक्षत्र मेलापक के 8 पक्ष हैं, जिन्हें अष्टकूट कहा गया है
1. वर्ण 2. वैश्य 3. तारा 4. योनि 5. ग्रह-मैत्री 6. गण-विचार 7. भकूट 8. नाड़ी के माध्यम से दोनों कुंडलियों का मेलापक किया जाता है. पूर्ण अनुकूलता होने पर वर्ण वैश्यादि में क्रमशः 1,2,3 से 8 तक अंक दिये जाते हैं. इन अंकों का योग 36 है. इस प्रकार अष्टकूट मिलान का आधार 36 गुण हैं, जिसमें से 18 गुण मिलना आवश्यक माना गया है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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