।। दक्षा वैदकर ।।
आज हर रिश्ता बेमानी लगता है. प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गयी है कि आज दोस्ती जैसा पवित्र रिश्ता भी कहीं खो-सा गया है. दोस्त धोखा देने लगे हैं. पीठ पीछे बुराई करने लगे हैं. इसे देख कर हम टूट रहे हैं, क्योंकि यही एक ऐसा रिश्ता है, जिसे हम खुद अपनी मर्जी से जोड़ते हैं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? यह सवाल हम सभी के मन में आता है. दरअसल, दोस्तों के साथ हो रही ये सारी बातें इस बात पर निर्भर करती है कि आपने दोस्ती किस आधार पर की है? हमें इस बात पर गहराई से सोचना होगा कि हम दोस्त में किन चीजों को देख कर दोस्ती कर रहे हैं.
ऐसा इसलिए, क्योंकि वर्तमान में कई लोग फिजिकल चीजें देख कर दोस्ती कर रहे हैं. हम देखते हैं कि सामनेवाला दिखने में कैसा है? उसका रहन-सहन कैसा है? उसकी आर्थिक स्थिति कैसी है? वह किस पद पर काम करता है? साथ ही उस इनसान से दोस्ती करने के बाद हमें क्या-क्या फायदा हो सकता है? हम यही सोच कर दोस्ती करते हैं कि ‘फलां से दोस्ती बना कर रखो, कहीं-न-कहीं ये हमारे काम आ सकता है.’ जब आप इस सोच के साथ दोस्ती करते हैं, तो ऐसी दोस्ती टूटना, धोखा पाना कोई बड़ी बात नहीं है.
दोस्तों, हमें दोस्ती केवल वैल्यूज को देख कर करनी चाहिए. हमारी दोस्ती का आधार वैल्यूज, संस्कार, विचार होने चाहिए. तभी यह दोस्ती टिकेगी. मुङो आपके अंदर क्या पसंद है? यही बात आपके रिश्ते को मजबूत बनाती है. आप में से कई लोग कहेंगे कि मेरे दोस्त के संस्कार पहले बहुत अच्छे थे. अब वह बिल्कुल बदल गया है. वह बिगड़ गया है. इसलिए मैंने उससे दूरी बना ली या दोस्ती तोड़ ली. ऐसी स्थिति में मैं यही कहूंगी कि आपने दोस्ती की सही परिभाषा ही नहीं सीखी. सच्च दोस्त वही है, जो रास्ते से भटके अपने दोस्त को वापस रास्ते पर ले आये. न कि उसका साथ छोड़ दे. दोस्ती तोड़ने की बजाय आपको यह पता लगाना चाहिए कि दोस्त आखिर क्यों बदल गया? क्या कारण है उसके बदलने के? अगर आप उसे यूं ही छोड़ देंगे, तो बाकी रिश्तों में और दोस्तों में कोई फर्क नहीं रह जायेगा.
बात पते की..
सच्च दोस्त वही है, जो अपने दोस्त के चेहरे के पीछे छिपी बदलाव की वजह को जाने, उसे समङो और उसे सुधारने के लिए जी-जान लगा दे.
कभी किसी से रुपये, पद, प्रतिष्ठा देख कर दोस्ती न करें. सामनेवाले के संस्कार व उसका दिल देख कर दोस्ती करें. ऐसे दोस्त धोखा नहीं देंगे.

