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सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल बना रहा मानसिक रूप से बीमार
इंटरनेट और सोशल मीडिया पर अधिक समय बितानेवालों में मानसिक बीमारी की आशंका ज्यादा बढ़ जाती है. कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी ने इस संबंध में एक शोध अध्ययन किया है, जिसमें इस बात की पुष्टि की गयी है. शोधकर्ताओं ने इस शोध के लिए कॉलेज छात्रों को चुना और इंटरनेट के जरिये उनके द्वारा सोशल […]
इंटरनेट और सोशल मीडिया पर अधिक समय बितानेवालों में मानसिक बीमारी की आशंका ज्यादा बढ़ जाती है. कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी ने इस संबंध में एक शोध अध्ययन किया है, जिसमें इस बात की पुष्टि की गयी है. शोधकर्ताओं ने इस शोध के लिए कॉलेज छात्रों को चुना और इंटरनेट के जरिये उनके द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल का दो मानकों के आधार पर विश्लेषण किया. इसमें पहला था – इंटरनेट एडीक्शन टेस्ट (आइएटी), जो स्मार्टफोन के व्यापक इस्तेमाल से काफी पहले वर्ष 1998 में विकसित हुआ था और दूसरा स्मार्टफोन आधारित इंटरनेट इस्तेमाल होनेवाला मौजूदा पैटर्न.
40 फीसदी छात्र मानसिक बीमार
प्रमुख शोधकर्ता माइकल वान एमरिंजेन काकहना है कि पिछले 18 वर्षों के दौरान इंटरनेट के इस्तेमाल में भयानक तरीके से बदलाव आया है और बड़ी तादाद में लोग न केवल ऑनलाइन काम करते हैं, बल्कि मीडिया स्ट्रीमिंग और सोशल मीडिया आदि से भी जुड़े रहते हैं. माइकल वान कहते हैं, ‘हमारा संदर्भ उन चीजों या समस्याओं से है, जो आइएटी की प्रश्नावली तैयार करते समय पूर्व में नहीं रही होंगी और आज की दुनिया में एक बड़ी समस्या के रूप में उभर चुके हैं या उस समय इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले इस पर उतना ज्यादा भरोसा नहीं करते थे, जितना आज करते हैं.’
शोधकर्ताओं ने इंटरनेट का इस्तेमाल करनेवाले 254 छात्रों का अध्ययन किया और उससे हासिल नतीजों को उनके मानसिक स्वास्थ्य से जोड़ कर समझने की कोशिश की. आइएटी पर आधारित उनके नतीजों में पाया गया कि 33 छात्र इंटरनेट के आदी हो चुके हैं, लेकिन जब दूसरे मानक के आधार पर इसका विश्लेषण किया गया, तो इनकी संख्या 107 तक पहुंच गयी.
शोधकर्ताओं ने इसके लिए प्रश्नावली में भरे गये जवाबों की जांच भी की और बेहद बारीकी से इसे समझने की कोशिश की थी कि इंटरनेट का इस्तेमाल किस तरह से छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. इस टेस्ट में मूल रूप से डिप्रेशन और एंक्जाइटी (निराशा और व्यथित होने), इंपल्विसनेस व अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिजॉर्डर (एडीएचडी) जैसी मानसिक बीमारियों पर फोकस किया गया है. इंटरनेट के आदी हो चुके छात्रों में दोनों ही मानकों पर उनकी रोजमर्रा की गतिविधियों में भी इसका भयावह असर देखा गया.
संबंधित भयावहता का कम मूल्यांकन
हाल ही में वियना में आयोजित 29वें यूरोपियन कॉलेज ऑफ न्यूरोसाइकोफार्माकोलाॅजी (इसीएनपी) में प्रस्तुत किये गये इस अध्ययन रिपोर्ट में प्रमुखता से यह दर्शाया गया है कि इंटरनेट एडिक्शन यानी इसकी लत या नशे के फैलाव को अब तक शायद कम करके आंका गया है.
हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक बीमारियां इंटरनेट की लत लगने का नतीजा भी हो सकती हैं, फिलहाल इसे साबित करना थोड़ा मुश्किल समझा जा रहा है. माइकल वान का कहना है, ‘इंटरनेट के आदी हो चुके लोगों में उल्लेखनीय रूप से निराशा और व्यथित होने के लक्षण पाये गये. साथ ही उन्हें प्लानिंग और टाइम मैनेजमेंट की समस्या से भी जूझते हुए देखा गया है.’ इसके अलावा उन्होंने अनेक ऐसे लक्षणों का जिक्र किया है, जो सामान्य स्वभाव से इतर पाये गये हैं और जिसके आधार पर उन्हें सोशल मीडिया पर ज्यादा तल्ख भाव व्यक्त करनेवालों को मानसिक रोगी की श्रेणी में ला खड़ा किया है.
कन्हैया झा
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