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जम नहीं रहा है रास मेले का रंग, नोटबंदी की मार का पड़ा सीधा असर

कूचबिहार: कूचबिहार शहर में आयोजित ऐतिहासिक रास मेले का रंग पिछले वर्ष के मुकाबले काफी फीका है. ऐसा लगता है कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा हजार तथा पांच सौ रुपये का नोट रद्द किये जाने का असर रास मेले पर भी पड़ा है. कूचबिहार में रास मेला उत्तर बंगाल में सबसे बड़े मेले […]

कूचबिहार: कूचबिहार शहर में आयोजित ऐतिहासिक रास मेले का रंग पिछले वर्ष के मुकाबले काफी फीका है. ऐसा लगता है कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा हजार तथा पांच सौ रुपये का नोट रद्द किये जाने का असर रास मेले पर भी पड़ा है. कूचबिहार में रास मेला उत्तर बंगाल में सबसे बड़े मेले के रूप में परिचित है. यहां हर साल ही ना केवल उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों, बल्कि असम तथा पड़ोसी देश बांग्लादेश से भी भारी संख्या में व्यवसायी आकर अपना स्टॉल लगाते हैं.
इस साल नोटबंदी के बीच ही इस मेले का आयोजन हुआ है. मेले में स्टॉल लगाने वाले कारोबारी शुरू से ही बिक्री कम होने की आशंका व्यक्त कर रहे थे. अब स्थिति कुछ इसी प्रकार की दिख रही है. मेले में पहले के मुकाबले भीड़ भी कम है. यदि रविवार को छोड़ दें तो अन्य दिनों में उतनी भीड़ नहीं होती. मेला आयोजकों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, इस साल बाहर से भी मेले में आने वालों की संख्या कम हुई है.

कूचबिहार जिले तथा आसपास के लोग ही मेले में आ रहे हैं. उत्तर बंगाल के दूसरे जिले दक्षिण दिनाजपुर, उत्तर दिनाजपुर, मालदा, दार्जिलिंग जिला आदि से मेला देखने आने वालों की संख्या करीब-करीब नगण्य है. मेला आयोजकों ने बताया कि लोगों के पास नगदी की कमी है. इसी वजह से मेले का रंग नहीं जमा है. जब दिसंबर महीने की शुरूआत हुई थी तो ऐसा लग रहा था कि वेतन भुगतान के बाद मेले में आने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी. इसके साथ ही आठ नवंबर को हुई नोटबंदी की घोषणा से अब तक काफी समय बीत चुका है. इसी वजह से दिसंबर के पहले सप्ताह में भीड़ जमने की उम्मीद थी. लेकिन अब कारोबारियों को एक बार फिर हताश होना पड़ा है. मेला आयोजकों का कहना है कि नगदी की किल्लत पहले की तरह ही बनी हुई है. लोगों को घंटों लाइन में खड़े होकर बैंकों से पैसे निकालना पड़ रहा है.

ऊपर से बैंक द्वारा अधिक पैसे भी नहीं दिये जा रहे हैं. इस माहौल में स्वाभाविक है कि बाहर से लोग मेले देखने नहीं आ रहे हैं. मेले में आने वाले सुबल चक्रवर्ती, मनोज दास आदि ने बताया है कि वह लोग पिछले साल भी मेले में आये थे. इस साल भी मेले का आयोजन तो अच्छा है, लेकिन पैसे के अभाव में खरीददारी नहीं कर पा रहे हैं. मेले में घुमने आने वाले कई लोगों ने यह भी बताया कि उनके पास दो हजार रुपये के नये नोट तो हैं, लेकिन दुकानदारों के पास लौटाने के लिए खुदरा पैसे की कमी है. एक हजार रुपये से अधिक की खरीददारी पर ही दुकानदार नये दो हजार के नोट लेने पर तैयार होते हैं. मेले में स्टॉल लगाने वाले सिलीगुड़ी के एक कारोबारी सुभाशीष दत्ता का कहना है कि पिछले साल के मुकाबले बिक्री में 50 से 60 प्रतिशत की कमी आयी है. बिक्री का आलम यह है कि रोज का खर्चा तक उठाना मुश्किल है.

इससे पहले कभी भी इस प्रकार की परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ा था. इनके जैसे अन्य व्यवसायियों ने भी कहा कि ऐसा नहीं है कि लोग मेला देखने नहीं आ रहे हैं. रविवार को तो लोगों की अच्छी-खासी भीड़ होती है. यह अलग बात है कि खरीददारी के प्रति इनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती. 100-50 रुपये का खुदरा पैसा खर्च कर लोग वापस घर लौट आते हैं. मेले का आयोजन इस महीने की नौ तारीख तक है. इस बीच, विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मेले की अवधि और आगे बढ़ाने पर चरचा की जा रही है. मेला आयोजक कमेटी के लोग इस बात को लेकर जिला प्रशासन के साथ संपर्क करने की कोशिश में लगे हुए हैं.

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