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सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधा के अभाव में गांव छोड़ने को लोग हो गये मजबूर

उदासीनता. कोजागरी लक्खी पूजा पर बेना गांव के इकट्ठा हुए लोगों ने प्रशासन पर लगाया गंभीर आरोप

20 साल पहले 2005 में पूरा गांव हो गया खाली, खंडहर बन चुके हैं सारे आवास साल में एकबार लक्खी पूजा के दिन जुटते हैं गांव के सारे लोग, रातभर पूजा अर्चना के बाद सुबह लौट जाते हैं अपने घर

आसनसोल/नियामतपुर. कुल्टी थाना क्षेत्र के नियामतपुर इलाके में चित्तरंजन नियामतपुर मुख्यमार्ग पर रेलवे पुल के निकट सड़क से पांच सौ मीटर अंदर स्थित बेना गांव प्रशासनिक उदासीनता के कारण उजड़ गया. वर्ष 2005 में यहां रहने वाला अंतिम परिवार भी गांव छोड़कर चला गया. सोमवार को कोजागरी लक्खी पूजा के अवसर पर यहां जुटे ग्रामीणों ने बताया कि बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में एक-एक करके लोग गांव छोड़कर निकलने लगे. देखते ही देखते पूरा गांव खाली हो गया. यहां के लोग पास में ही सीतारामपुर, कुल्टी, नियामतपुर आदि इलाकों में कुछ लोग निजी मकान बनाकर चले गये तो कुछ किराये के मकान लेकर निकल गये. बुनियादी सुविधाओं के अभाव में बच्चों की शिक्षा सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही थी. जिसके कारण 150 लोगों की अवादी वाले 25 परिवार का यह गांव आज वीरान हो गया है, सारे आवास ख़बधर बन गये है. हालांकि लोगों को अभी भी उम्मीद है कि शायद वे लोग एकदिन पुनः अपने पुरखों के घर में वापस लौटेंगे. गौरतलब है कि बेना गांव में साल में एक दिन लक्खी पूजा के अवसर पर सारे ग्रामीण अपने परिवार, दोस्त और कुटुंब के साथ यहां जुटते हैं और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने के बाद सारे लोग पुनः वापस लौट जाते हैं. मां लक्खी इस गांव के लोगों की कुल देवी के रूप में पूजी जाती हैं.

बेना गांव के निवासी कांचन माजी ने बताया कि बुनियादी सुविधा के अभाव में एक-एक करके गांव छोड़कर जाने लगे और पूरा गांव वर्ष 2005 में खाली हो गया. उसके बाद यहां कोई रहने नहीं आया. 25 परिवार यहां रहते थे, 20 वर्षों में यहां की अवादी काफी बढ़ती, लेकिन यह गांव वीरान हो गया. सभी के मकान खंडहर बन गया है. श्री माजी ने बताया कि मां के मंदिर में नियमित पूजा होती है. लेकिन गांव के सारे लोग अपने परिवार के साथ कोजागरी लक्खी पूजा के दिन ही यहां इकट्ठा होते हैं. मां की कृपा हुई तो पुनः अपनेगांव में सभी वापस लौटेंगे. पिछले सौ वर्ष से अधिक समय से माता की यह मंदिर यहां हैं. उनके पूर्वजों से यह मंदिर उन्हें विरासत में मिला है.

सौ साल पुरानी परंपरा अब भी जारी, लोगों के लौटने की उम्मीद

मंदिर के पुजारी साधन चट्टोपाध्याय ने कहा कि सौ वर्षों से इस गांव में लक्खी पूजा होती आ रही है. पिछले 30 वर्षों से वह खुद पूजा कर रहे हैं, इससे पहले उनके पिता यहां पूजा करते थे. गांव खाली हो गया, लेकिन देवी की कृपा इस मिट्टी पर अब भी बनी हुई है. पिछले साल ग्रामीणों ने पुराने जर्जर मंदिर को तोड़कर एक नया पक्का मंदिर बनवाया इससे लोगों में नयी ऊर्जा आयी है. हम चाहते हैं कि हमारी अगली पीढ़ी भी यह परंपरा जारी रखें, ताकि बेना गांव का नाम नहीं मिटे.

पार्षद ने कहा, ग्रामीणों को वापस लाने का कई बार हुआ है प्रयास

स्थानीय पार्षद और तृणमूल के ब्लॉक अध्यक्ष आदित्यनाथ पुइतंडी उर्फ बादल ने बताया कि गांव के लोगों को वापस लाने का की बार प्रयास किया गया. गांव में सड़क भी बनाया गया, बिजली के पोल भी लगाया गया. लोगों से अपील की गयी कि वे यहां वापस लौटे, उन्हें सारी सुविधा मिलेगी. ग्रामीण वापस नहीं लौटे. अभी भी प्रयास किया जा रहा है. वापस लौटने पर ही बिजली, पानी, सड़क सारी सुविधा मिल जायेगी. 20 साल पहले और अभी के सरकार में काफी अंतर है.

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