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” गो ग्रीन” मिशन को बढ़ावा
आसनसोल ; जिले में ‘ गो ग्रीन’ मिशन को बढ़ावा और सेल्फ हेल्प ग्रूप (एसएचजी) की महिलाओं को आर्थिक स्तर पर स्वावलंबी बनाने के साथ – साथ लघु उद्योग के रूप में शाल, पलाश, सियाली, कंचन पेड़ के पत्तों से थाली, कटोरी आदि बनाने को लेकर जिला स्तर पर परियोजना तैयार की जा रही है. […]
आसनसोल ; जिले में ‘ गो ग्रीन’ मिशन को बढ़ावा और सेल्फ हेल्प ग्रूप (एसएचजी) की महिलाओं को आर्थिक स्तर पर स्वावलंबी बनाने के साथ – साथ लघु उद्योग के रूप में शाल, पलाश, सियाली, कंचन पेड़ के पत्तों से थाली, कटोरी आदि बनाने को लेकर जिला स्तर पर परियोजना तैयार की जा रही है.
बीते शनिवार को राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजीभा सिन्हा को एडीडीए भवन में इन परियोजनाओं को लेकर पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन दिया गया था. श्री सिन्हा ने इसपर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर भेजने को कहा था. जिला प्रशासन इसपर रिपोर्ट तैयार कर रहा है. जिसे जल्द ही अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजा जायेगा. परियोजना यदि लाभजनक साबित होती है तो रिपोर्ट की फाइल को मंजूरी के लिए वित्त विभाग को भेजा जायेगा.
बीते शनिवार को दिया गया था इस पर पावर प्रजेंटेशन
पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन में क्या दिखाया: शनिवार को राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री सिन्हा जिले के दौरे पर थे. इस दौरान गो ग्रीन मिशन को बढ़ावा देने के साथ एसएचजी की महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने और लघु उद्योग के रूप में चार परियोजनाओं का पावर प्वाइंट प्रजेंटेंशन दिया गया था. जिसमे शाल, पलाश, सियाली, कंचन के पेड़ के पत्तों से थाली, कटोरी आदि बनाने, सेनेटरी नेपकिन बनाने, मशरूम की खेती करने और रेडीमेड गारमेंट बनाने की परियोजनाएं शामिल थी. इसमें पत्तों से बर्तन बनाने की परियोजना पर विस्तृत रिपोर्ट भेजने का निर्देश श्री सिन्हा ने दिया. जिला प्रशासन इस पर रिपोर्ट तैयार कर रहा है. जिलाशासक की मंजूरी के बाद इसे अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजा जायेगा.
क्या है पत्तों की बर्तन की परियोजना
गो ग्रीन मिशन के तहत प्लास्टिक और थर्मोकॉल के बर्तनों पर जिला प्रशासन ने रोक लगा दी है. विकल्प के रूप में कागज और पत्तों के बर्तनों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसकी जरूरत को पूरा करने के लिए, विभिन प्रकार के पत्तों को बर्तन का आकार देने की परियोजना तैयार की जा रही है. बाजार में फिलहाल शाल के पत्तों की थाली और कटोरी उपलब्ध है. पत्तों पर कानूनी प्रावधान यह है कि इसे पेड़ से तोड़ना कानूनन अपराध है.
पत्तों को तोड़ने से पेड़ों को नुकसान पहुंचता है. इसलिए विकल्प के रूप में यहां आसानी से उपलब्ध पलाश के पत्तों को चुना गया है. पलाश के पेड़ों से पत्तों को तोड़ने से पेड़ों को कोई नुकसान नहीं होता. पत्तों को तोड़ने के बाद इसे मल्चिंग कर इसमें रेशम कीट को छोड़कर रेशम तैयार करने की योजना है. जिसके लिए महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जायेगा.
पलाश के पत्ते में डाली और अन्य रसदार सब्जियां परोसी जा सकती है, जो बहकर बाहर नहीं निकलेगी. यह शाल के पत्तों में संभव नहीं होता. इसके साथ ही यहां मिलने वाले कंचन के पेड़ों के पत्तों से कटोरी बनाने और आंध्रप्रदेश में उगने वाले सिवली के पेड़, जिनके पत्तों से वहां बर्तन का उद्योग चलता है. उस पेड़ को यहां लगाने और उसके पत्ते का उपयोग करने की योजना है. इसकी लागत शाल के पत्तों से काफी कम होगी.
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