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भैया दूज: बहनों ने की भाइयों की लंबी उम्र की कामना, माथे पर लगाया स्नेह का टीका
जीभ में रेंगनी के कांटों को लगाकर लंबी उम्र के िलये की प्रार्थना यमुना नदी में भाई के साथ स्नान करने पर गहरा होता है रिश्ता दुर्गापुर : यह भारतीय संस्कृति ही है, जहां अलग-आलग त्यौहारों को उसके महत्व के अनुसार मनाया जाता है.चाहे यह त्यौहार एक के बाद एक क्यों न हो? हिन्दू समाज […]
जीभ में रेंगनी के कांटों को लगाकर लंबी उम्र के िलये की प्रार्थना
यमुना नदी में भाई के साथ स्नान करने पर गहरा होता है रिश्ता
दुर्गापुर : यह भारतीय संस्कृति ही है, जहां अलग-आलग त्यौहारों को उसके महत्व के अनुसार मनाया जाता है.चाहे यह त्यौहार एक के बाद एक क्यों न हो? हिन्दू समाज में भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक भैयादूज(भाई-टीका) पर्व काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के प्रतीक के पर्व को हिन्दू समुदाय के सभी वर्ग के लोग हर्ष उल्लास से मनाते हैं.
भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक और पांच दिवसीय दीपोत्सव का अंतिम पर्व ‘भैया दूज’ शनिवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इसे आम बोल चाल की भाषा में गोधन कहा जाता है. हिन्दू धर्म में भाई-बहन के स्नेह व सौहार्द का प्रतीक यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है. यह दिन यम द्वितीया भी कहलाता है. इसलिए इस पर्व पर यम देवता की पूजा भी की जाती है.
एक मान्यता के अनुसार इस दिन जो यम देव की उपासना करता है, उसकी असामियक मृत्यु का भय नहीं रहता है. भैजा दूज को महिलाएं गाय के गोबर से गोधन बनाकर इसकी पूजा-अर्चना करती है. भैयादूज के दिन महिलाएं पहले भाई को मरने का श्राप देती है फिर गोधन की पूजा पूरे विधि-विधान से कर अपनी जीभ में रेंगनी के कांट को लगाकर अपने भाई के लंबी उम्र की कामना करती है.
मान्यता है कि ऐसा करने से भाई की लंबी उम्र और घर अन्न धन्न से भर जाता है. माना जाता है कि इस दिन शुभ मुहूर्त में अगर भाई और बहन साथ में यमुना नदी में स्नान करें तो भाई और बहन का हमेशा का रिश्ता बना रहता है और भाई की उम्र बढ़ती है. यमुना तट पर भाई -बहन का भोजन करना शुभ माना जाता है.
पंडित अनित शुक्ल ने बताया कि भैया दूज का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से लेकर 10 बजकर 10 मिनट सर्वार्थ सिद्धि योग हो रहा है. इस कारण शाम तक बहनों ने भाइयों को बजड़ी खिलाई. भैया दूज के दिन यमुना एवं यमराज की पूजा की गयी. इस दिन बहनों ने भाइयों को तिलक लगाकर दीर्घायु और यशस्वी होने की कामना की और भाइयों ने उनकी रक्षा का वचन दिया.
पंडित गोपाल शर्मा बताते हैं कि मान्यता के अनुसार इस दिन जो यम देव की उपासना करता है, उसे असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है. शुभ मुहूर्त में अगर भाई और बहन साथ में यमुना नदी में स्नान करें तो भाई और बहन का रिश्ता अटूट हो जाता है और भाई की उम्र बढ़ती है. भाई दूज को भाऊ बीज और भातृ द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है.
ऐसे की पूजा
शिल्पांचल के विभिन्न इलाके में बहनों ने सबसे पहले चावल के आटे से चौक तैयार की. इस चौक पर भाई को बैठाया फिर उनके हाथों की पूजा की. इसके लिये भाई की हथेली पर चावल का घोल लगाया गया. इसके बाद इसमें सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी, मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे-धीरे हाथों पर पानी छोड़ते हुए मंत्र बोलें गये.
किसी-किसी जगह पर इस दिन बहनों ने अपने भाइयों की आरती भी उतारीं और फिर हथेली में कलावा बांधा. भाई का मुंह मीठा करने के लिए भाइयों को मिश्री और मिठाइयां खिलाईं.शहर के सिटी सेंटर चतुरंग मैदान में निरो हेल्थ क्लब ने भाई फोटा के अवसर पर महिलाओं ने कुछ पुरूषों को चंदन का फोटा लगाया. क्लब के प्रणव राय ने बताया कि प्रत्येक वर्ष चतुरंग मैदान में इस तरह का कार्यक्रम आयोजित होता है. अनेक लोग ऐसे हैं, जिनकी बहनें नहीं है.
बहनों के स्नेह और प्यार की कमी को दूर करने के िलये भाई-बहन मिलकर भाई फोटा का आयोजन करते हैं. इस दौरान मालती मंडल, विजय लक्खी बनर्जी, इला सरकार आिद मौजूद थीं. दूसरी तरफ, मारवाडी, गुजरती समुदाय के लोगो के घरों में भैया दूज मनाया गया. बहनों ने अपने भाई को हल्दी चंदन और चावल का ितलक लगाकर आरती उतारते हुये उनकी लंबी उम्र की कामना की.भाइयों ने भी अपनी बहनों को सामर्थ्य के अनुसार उपहार दिये.
यह है मान्यता
भैया दूज के संबंध में पौराणिक मान्यता है कि भगवान सूर्य की पत्नी से यमराज व यमुना का जन्म हुआ. यमुना अपने भाई से बहुत स्नेह करती थी. वह यमराज को भोजन के लिए अपने घर बार-बार आमंत्रित करती थी.
यमराज अपने कार्य में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात टाल देते थे. कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने घर भोजन के लिए बुलाया. बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में रहने वाले जीवों को मुक्त कर दिया. भाई को अपने घर आया देख यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने अपने भाई का प्रसन्नता के साथ स्वागत किया और भोजन कराया.
प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा. इस पर यमुना ने कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करें. इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन कराए उसे आप का भय न रहे. यमराज तथास्तु कह यमुना को वस्त्र, आभूषण देकर सम्मान करने के बाद यमपुरी चले गये.
तभी से यह पर्व भाई-बहनों के स्नेह का पर्व माना गया है. मान्यता है कि जो भाई इस पर्व पर पूरी श्रद्धा से अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता.
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