न सरकार सोचती न ही प्रशासन
साहिबगंज : एक आंकड़ा के मुताबिक जिले के करीब पांच हजार बच्चे पेट की खातिर मजदूरी करने को विवश हैं. ऐसे बच्चे शहर के दुकानों, होटलों, पत्थर क्रेशरों, गैरसरकारी संस्थानों में आसानी से देखे जा सकते हैं. कई बच्चे तो बीड़ी भी बनाते हैं. इन सभी कामों से जो मजदूरी मिलती है, उससे वे परिवार चलाने में मदद करते हैं.
बच्चे करते मजदूरी
मिर्जाचौकी से लेकर कोटालपोखर तक बाल श्रमिक क्रशर से लेकर पत्थर खदान तक में कार्य करते हैं. बीड़ी उद्योग में भी सैकड़ों बाल श्रमिक अपने परिवार के सदस्यों के साथ बीड़ी बनाने का कार्य करते हैं. यही हाल कृषि क्षेत्र का भी है परिवार के सदस्यों के साथ रोपनी से लेकर निगरानी कार्य में बच्चों को लगाया जाता है.
सरकारी पहल
सरकार ने भी पहल की. ड्राप आउट बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए काफी प्रयत्न किये लेकिन यह प्रयत्न भी कामयाब नहीं हुआ.
एनजीओ भी विफल
बाल श्रम उन्मूलन में एनजीओ भी कोई विशेष काम नहीं कर सकी. ये लोगों को जागरूक नहीं कर पाये. जिसका नतीजा साफ है.