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सिमडेगा में मिले आदिमानव के साक्ष्य, जानें किसने की इसकी खोज

शैलचित्र मुख्यतः लाल व सफेद रंगों से बनायी गयी है. इन चित्रों में आखेट, जंगली जानवर, डॉमेस्टिकेशन व ज्यामितीय आकृतियां हैं. कुछ चित्र खोदकर बनाये गये हैं

प्राकृतिक सुंदरता, हॉकी तथा आदिवासी बाहुल्य जिले के रूप में जाना जानेवाला सिमडेगा में आदिमानव के साक्ष्य मिले हैं. डॉ अंशुमाला तिर्की व बालेश्वर कुमार बेसरा ने जिले के कई स्थलों का भ्रमण कर आदिमानव द्वारा बनाये गये शैलचित्र ढूंढ निकाले हैं. ये शैलचित्र बिरू, बंगरू घोसरा, छूरिया, पूरनापानी, कोलेबिरा के भंवर पहाड़ तथा जलडेगा के परबा जैसे स्थानों से मिले हैं.

शैलचित्र मुख्यतः लाल व सफेद रंगों से बनायी गयी है. इन चित्रों में आखेट, जंगली जानवर, डॉमेस्टिकेशन व ज्यामितीय आकृतियां हैं. कुछ चित्र खोदकर बनाये गये हैं, जिनमें फर्टिलिटी कल्ट चट्टानों को खोदकर बनाया गया है.

केरसई प्रखंड के ढोडीजोर गांव में नवपाषाण कालीन ग्रुभस प्रमुख रूप से मिले हैं. ये पांच सौ से भी ज्यादा संख्या में मिले हैं. चित्रों को देखने से प्रतीत होता है कि यह चित्र मध्यपाषाण काल से लेकर नवपाषाण काल तक के हैं. आदिमानव के ये साक्ष्य झारखंड के क्रमबद्ध इतिहास को लिखने में सहायक होगा. ये साक्ष्य इतिहास, पुरातत्व, नृविज्ञान तथा कला के शोधार्थियों को भी आकर्षित करेगा.

सिमडेगा जिले के साहित्य व इतिहास में ये सभी आदिमानव के साक्ष्य एक नये अध्याय का सूत्रपात करेगा. सरकार को इन क्षेत्रों को संरक्षित करने की आवश्यकता है. समय के साथ ये शैलचित्र धूमिल हो रहे हैं. कुछ जगहों पर लोग इन चित्रों के ऊपर अपना नाम लिखकर इसे बर्बाद कर रहे हैं. इस कारण सरकार या जिला प्रशासन को इन स्थानों को संरक्षित घोषित करने की आवश्यकता है. ये शैलचित्र केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है. इससे झारखंड के पर्यटन के क्षेत्र को भी रोजगार सृजित करने में आसानी होगी.

जिन्होंने यह खोज की

डॉ अंशु माला तिर्की

स्वतंत्र पुरातत्वविद, इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के प्रोजेक्ट में रिसर्च एसोसिएट.

बालेश्वर कुमार बेसरा

स्वतंत्र पुरातत्वविद, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली) की परियोजना में अनुसंधान सहायक

Prabhat Khabar News Desk
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