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रांची में किताब उत्सव: वरिष्ठ साहित्यकार महादेव टोप्पो बोले, सिर्फ पढ़ा-लिखा समुदाय ही नहीं होता शिक्षित

डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध कल्याण संस्थान के निदेशक रणेन्द्र ने कहा कि इतिहास में वर्चस्व और शासित का स्वीकार्य अब भी कायम है और यूरोपीय दृष्टि से लिखे जा रहे इतिहास लेखन को हम ढोए जा रहे हैं. मानवशास्त्रियों के लेखन में आदिवासियों की केवल जंगली छवि ही बनी हुई है. ऐसा नहीं होना चाहिए.

रांची: वरिष्ठ साहित्यकार महादेव टोप्पो ने झारखंड की विचारक सुशीला सामद को याद करते हुए कहा कि आदिवासी समाज में शुरू से पढ़ने-लिखने वाले लोग थे, लेकिन उन्हें उपेक्षित रखा गया. शिक्षित वह समुदाय भी था, जो निरक्षर था. सिर्फ पढ़ा-लिखा समुदाय ही शिक्षित नहीं होता. आज के समय में लोग साक्षर जरूर होंगे, लेकिन शिक्षित नहीं होते. राजकमल प्रकाशन समूह और डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘किताब उत्सव’ में वे बोल रहे थे. दूसरे दिन का पहला सत्र ‘हमारा झारखंड हमारा गौरव’ का रहा. इस सत्र में उन्होंने कहा कि हमारा संबंध प्रकृति से इतना आत्मीय और गहरा है कि इसके बगैर हम नहीं रह सकते. आदिवासी और प्रकृति का गर्भनाल संबंध है जबकि गैर-आदिवासी इस संबंध से विमुख है. 1850 के पहले जो आदिवासी समाज एकजुट रहता था वो आगे चलकर अलग-अलग हो गया.

पहली आदिवासी महिला संपादक थीं सुशीला सामद

सुशीला सामद के व्यक्तित्व और उनके कर्तव्यों के संदर्भ में वरिष्ठ साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि उन्होंने बहुत परिश्रम से शिक्षार्जन किया था. सुशीला सामद मुंडा समुदाय से थीं. ‘चांदनी’ और ‘आदिवासी’ नामक पत्रिकाओं में उन्होंने आदिवासी समुदाय के बारे में लिखा. 1936 में वे अपने समय की मुख्यधारा के लेखन से प्रभावित थीं. वह पहली आदिवासी महिला संपादक थीं. आदिवासी समाज के लेखन के लिए उन्होंने जमीन तैयार करने की कोशिश की. उन्होंने महिला मंदिर का निर्माण भी किया था.

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आदिवासी इतिहास लेखन : कठिनाइयां और संभावनाएं पर था दूसरा सत्र

दूसरा सत्र ‘आदिवासी इतिहास लेखन : कठिनाइयां और संभावनाएं’ विषय पर केंद्रित रहा. इस सत्र में डॉ रवि वाजपेई, डॉ संजय सिन्हा, डॉ इंद्र कुमार चौधरी और अंजू टोप्पो ने अपनी राय रखी. संजय सिंह ने कहा कि आदिवासी समुदाय को लेकर एक छवि बनी हुई है कि वो मुख्यधारा से अलग रहते हैं, लेकिन झारखंड के संदर्भ से देखने में बहुत सी चीजें एकदम अलग हैं, जो भी आदिवासी समूह रहा है, उनका इतिहास बहुत ही पारंपरिक ढंग से लिखा गया है. उन्हें हमेशा से अलग सभ्यता और संस्कृति का माना गया है. मैं राजकमल प्रकाशन समूह का बहुत आभार व्यक्त करता हूं कि वह इतनी सार्थक बातचीत करवा रहा है.

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लेखन में आदिवासियों की बनी है जंगली छवि

डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध कल्याण संस्थान के निदेशक रणेन्द्र ने कहा कि इतिहास में वर्चस्व और शासित का स्वीकार्य अब भी कायम है और यूरोपीय दृष्टि से लिखे जा रहे इतिहास लेखन को हम ढोए जा रहे हैं. मानवशास्त्रियों के लेखन में आदिवासियों की केवल जंगली छवि ही बनी हुई है. ऐसा नहीं होना चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने राजकमल प्रकाशन के बारे में कहा कि केवल साहित्य ही नहीं, बल्कि अन्य विषयों और विधाओं की भी अच्छी किताबें राजकमल प्रकाशन सबके सामने लेकर आता रहा है.

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आदिवासी इतिहास लेखन में शोधकर्ताओं की है कमी

रवि वाजपेई ने कहा कि जिस समाज को अपना इतिहास लिखने का मौका नहीं, उनके साथ ऐसी समस्याएं नहीं रही. अंजू टोप्पो ने कहा कि आदिवासी इतिहास लेखन में काम कम हुआ है, ऐसा नहीं है, लेकिन आदिवासी जीवन संदर्भों को ध्यान में रखकर लेखन नहीं हुआ. जैसे महिला आदिवासी लेखन नहीं हुआ है. इस क्षेत्र में संभावनाएं हैं. इंद्र कुमार चौधरी ने कहा कि राम दयाल मुंडा शोध संस्थान और राजकमल प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में हो रहे इस आयोजन की जितनी तारीफ की जाए कम है. इतिहास समसामयिक भी होता है और इसका लेखन दशक दर दशक होता रहता है. आदिवासी संदर्भ में उत्तर बनाम दक्षिण का विमर्श जो हमेशा से होता रहा है, उस पर ध्यान देने की जरूरत है. जिस तरह भारत का इतिहास विविध पहलुओं का रहा है उसी प्रकार आदिवासियों का इतिहास भी विविध पहलुओं को लेकर चलता है, उसे एक साथ लाना बहुत ही मुश्किल है. भारत में मौखित इतिहास भी मजबूत था. इतिहास लेखन संवाद है. दुनिया में कोई इतिहास लेखक ऐसा नहीं है जिसने कुछ त्रुटियां नहीं की. अंतिम वक्ता वरिष्ठ इतिहासकार लालजी राणा ने कहा कि जितनी अभिरुचि से लोग साहित्य पढ़ते हैं उतना इतिहास नहीं. आदिवासी इतिहास लेखन में संभावनाएं बहुत हैं, लेकिन शोधकर्ताओ की बहुत कमी है.

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पार्वती तिर्की ने पढ़ीं कविताएं

अनुज लुगुन के कविता संग्रह ‘अघोषित उलगुलान’, पार्वती तिर्की के कविता संग्रह ‘फिर उगना’ और जसिंता केरकेट्टा के कविता संग्रह ‘ईश्वर और बाजार’ पर परिचर्चा हुई. इसमें सावित्री बड़ाइक, प्रज्ञा गुप्ता और विनोद कुमार ने तीनों कवियों की कविताओं की विशेषताओं पर बातचीत की. इस सत्र में पार्वती तिर्की ने संग्रह से कुछ कविताएं भी पढ़ीं.

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