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झारखंड की राजनीति का फ्लैश बैक : एक हजार रुपये में मोती राम ने जीत लिया था चुनाव

अजय/रंजीत मांडू के पहले चुनाव में मोतीराम कांग्रेस की सरस्वती देवी को पराजित कर बने थे विधायक गिद्दी(हजारीबाग) : आजादी से पहले मात्र दो आना लेकर मोती राम घर से निकले थे. उन्होंने छोटानागपुर केशरी रामनारायण सिंह के सान्निध्य में रह कर राजनीति सीखी और कांग्रेसी हो गये. नामचीन कांग्रेसियों में उनकी गिनती होती थी. […]

अजय/रंजीत
मांडू के पहले चुनाव में मोतीराम कांग्रेस की सरस्वती देवी को पराजित कर बने थे विधायक
गिद्दी(हजारीबाग) : आजादी से पहले मात्र दो आना लेकर मोती राम घर से निकले थे. उन्होंने छोटानागपुर केशरी रामनारायण सिंह के सान्निध्य में रह कर राजनीति सीखी और कांग्रेसी हो गये. नामचीन कांग्रेसियों में उनकी गिनती होती थी.
कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में उनका भाषण काफी प्रभावशाली था. कई बड़े कांग्रेसी नेता ने उनके भाषण की प्रशंसा की थी. आजादी के बाद वर्ष 1951 के पहले चुनाव में बगोदर विधानसभा क्षेत्र से मोती राम चुनाव लड़े थे. रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह ने उन्हें पराजित कर दिया था. उस जमाने में छोटानागपुर इलाके में रामगढ़ राजा का राजनीतिक प्रभुत्व था.
मोती राम ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और रामगढ़ राज परिवार की पार्टी छोटानागपुर एवं संताल परगना जनता पार्टी में शामिल हो गये. वर्ष 1957 में मांडू विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया था. मांडू विधानसभा क्षेत्र में गोमिया और बगोदर विधानसभा क्षेत्र में विष्णुगढ़ आता था. मांडू के पहले चुनाव में मोती राम ने कांग्रेस की सरस्वती देवी को सात हजार से अधिक मतों से पराजित किया था. सरस्वती देवी हजारीबाग मोहन टॉकिज के मालिक रघुनाथ गुप्ता की पुत्री थी. इस जीत से रामगढ़ राज परिवार में उनका राजनीतिक कद बढ़ गया था.
वर्ष 1962 में मोती राम बगोदर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और कांग्रेस उम्मीदवार को आसानी से पराजित कर दिया था. मोती राम के पुत्र अधिवक्ता ज्योति प्रसाद याद करते हुए बताते हैं कि 50 व 60 के दशक में चुनाव प्रचार की कोई सुविधा नहीं थी. ज्यादातर उम्मीदवार व उनके समर्थक साइकिल व पैदल टोली बनाकर मतदाताओं के बीच जाते थे. उन्होंने बताया कि मोती राम के समर्थक बांस व टीना से बनी तुतुगा से चुनाव प्रचार करते थे. तुतुगा की आवाज दूर तक नहीं जाती थी, लेकिन यह लाउडस्पीकर का एक छोटा रूप था.
चुनाव प्रचार में कोई चमक-दमक नहीं रहती थी. ज्योति प्रसाद ने बताया कि मोती राम के पास पैसे कम थे. 1957 के चुनाव में लगभग एक हजार रुपये खर्च हुए थे. 1951 के चुनाव में इससे भी कम पैसा खर्च हुआ था. जहां जरूरत होती थी, वहां ही वे जीप वाहन से जाते थे. यूं कहे, तो चारपहिया वाहन का उपयोग चुनाव प्रचार में कम होता था.
चुनाव में मोती राम लंबे समय से दूर रहे. उन्होंने वर्ष 1980 में कांग्रेस यू तथा 1985 में निर्दलीय चुनाव लड़े थे. मोती राम यह दोनों चुनाव बुरी तरह से हार गये थे. वह फिर कभी चुनाव नहीं लड़े. मोती राम मूलत: ईचाक के करियातपुर के रहनेवाले थे. वर्ष 1952-53 में वे अपने परिवार के साथ मांडू में बस गये थे. उनकी मृत्यु 19 मई 1997 में हुई थी.

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