-खूंटी के अड़की में घने जंगलों में बसे गांवों में पठारी नाले-नदी का पानी पीते हैं लोग
-गांवों से बाहर निकलने के लिए सड़क नहीं, मीलों चल कर बच्चे जाते हैं स्कूल
खूंटी, अड़की, पश्चिमी सिंहभूम के कुछ खास इलाके में पत्थलगड़ी को लेकर विवाद चल रहा है. ग्राम सभाओं ने अपने एकाधिकार की घोषणा की है. बाहरी लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध की बात कही जा रही है. दुरूह जंगल में बसे इन गांवों का प्रभात खबर ने मुआयना किया़. अड़की के जंगलों में बसे गांवों में विकास का हाल देखा. इन गांवों में ग्रामीणों के आक्रोश की पड़ताल की. टीम के दौरे से एक बात साफ थी कि इन इलाके में विकास के सारे वादे फेल है़ं दूर-दराज के गांव अभाव और बेबसी है़ इन गांवों की स्थिति और सरकारी योजनाओं के हाल पर प्रभात खबर की खोजपरक रिपोर्ट़…
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आनंद मोहन/प्रवीण मुंडा
खूंटी के अड़की में कोचांग से आगे बंदगांव तक सड़क बनी है. हाल में बनी सड़क पर घास उग आये हैं. सड़क पर बड़े-बड़े पत्थर बिखरे हैं. इस रास्ते पर चलना मुश्किल है. यह सरकारी योजनाओं की सच्चाई है. अड़की के घनघोर जंगलों में सरकार की योजनाएं ऐसे ही पूरी हो रही हैं. कोचांग से बायीं ओर भी एक सड़क बनी है, उसका भी यही हाल है. अड़की के दुरूह जंगलों में बसे तुतकोड़ा, शाके, समदा, कोचांग, कुरूंगा, मनहातू, टुबिल, लदीबेरा आदि गांवों में विकास की सारी बातें बेमानी है. इन गांवों के गोद में गरीबी, बदनसीबी बसती है. लोग अपने संसाधनों से जैसे-तैसे जीवन बसर कर रहे हैं.
प्रभात खबर ने जब इन गांवों में बुनियादी सुविधाओं का जायजा लिया, तो विकास की सच्चाई सामने आयी. इन गांवों तक पहुंचना आसान नहीं है. किसी तरह गांव तक पहुंच भी गये, तो विकास के खोखले दावे नजर आयेंगे. गांव में न तो पीने का पानी, ना बिजली, ना आसपास स्वास्थ्य सुविधा. गरीबी से लड़ते हुए स्कूलों में बच्चे किसी तरह पढ़ाई करते दिखेंगे. इन गांवों की पंचायत में ग्रामसभा ने अपने अधिकार का एलान यूं ही नहीं किया है. व्यवस्था से इनका भरोसा उठ गया है. पठारी नाले-नदी का पानी पीते हैं. जानवर और आदमी एक ही जगह से पानी पी रहे हैं. ऐसी ही बदहाली-बदनसीबी पर ग्रामीण आक्रोशित हैं. ग्रामसभा अपना अधिकार मांग रही है. अड़की से बीरबांकी का 12-15 किमी का रास्ता चलने लायक नहीं है. कुरूंगा गांव तक तो जाने के लिए उबड़-खाबड़ जैसे-तैसे रास्ते बनाये गये हैं. कोरबा-बड़ानी रोड पर काम चल रहा है, लेकिन कब पूरा होगा, ग्रामीण भी बताने में असमर्थ हैं. कई सड़कों का निर्माण कार्य भी चल रहा है. नयी सड़क बन रही है और टूट भी रही है. इनकी गुणवत्ता देखने वाला कोई नहीं है़
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विकास की सच्चाई
बीरबांकी के सीमाने पर स्कूल के लिए 12 एकड़ 56 डिसमिल जमीन राज्यपाल के नाम दान की गयी है. स्कूल बना, तो कुछ माह में ही उग्रवादियों ने उड़ा दिया. फिलहाल यहां पुलिस का अस्थायी कैंप चल रहा है. स्कूल दोबारा नहीं बना.
इन इलाकों में जमीन लेना अासान नहीं है. खूंटकट्टी व्यवस्था कायम है. आसपास के बच्चे मीलों चल कर स्कूल आते हैं.
अड़की प्रखंड की चुकलू सीमा पर पिछले दो सालों से अस्पताल बन रहा है. काम अब तक पूरा नहीं हुआ है. इलाके में स्वास्थ्य सुविधाओें का बुरा हाल है. लोगों को खूंटी आना पड़ता है.
जागरूक नहीं हैं लोग
इन इलाकों के लोगों को सामाजिक सुरक्षा, पेंशन, कृषि, कल्याण, आपदा विभाग से चलनेवाली दर्जनों योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं है.
वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, पारिवारिक सुरक्षा, नि: सहायों को मिलनेवाली आर्थिक मदद की भी जानकारी ग्रामीणों को नहीं है
प्रखंड के लोग घर-घर पहुंच कर या कैंप लगा कर सूची बनाते हैं. दस्तावेज लेकर कोई प्रखंड नहीं आता
ग्रामीणों के पास आधार कार्ड से लेकर बैंक के खाते तक नहीं होते
फसल बीमा हो या फिर आपदा के लिए मिलनेवाला मुआवजा, प्रखंड के कर्मियों की पहल से ही मिल पाती है
जंगल में गरीबी, बेबसी विकास के नाम पर धोखा