मालिपाड़ा के 74 परिवारों की प्यास बुझा रहा झरने का दूषित पानी
सुजीत कुमार मंडल , लिट्टीपाड़ा: लिट्टीपाड़ा प्रखंड के कुंजबोन पंचायत अंतर्गत मालिपाड़ा गांव में रविवार को आयोजित प्रभात संवाद कार्यक्रम के दौरान ग्रामीणों ने अपनी बुनियादी समस्याओं को बेझिझक रखा. ग्रामीणों ने बताया कि झारखंड राज्य गठन के 24 वर्ष बीत जाने के बावजूद उनका गांव आज भी सड़क, पेयजल और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. कार्यक्रम में ग्रामीणों ने बताया कि प्रधान टोला, मास्टर टोला और बीच टोला मिलाकर कुल 74 परिवारों में लगभग 450 लोग निवास करते हैं. लेकिन आज भी इन लोगों को पीने के लिए शुद्ध जल नहीं मिल पा रहा है. गांव के लोग पहाड़ी झरने के दूषित पानी से अपनी प्यास बुझा रहे हैं. यह झरना एक बरसाती नाले में परिवर्तित हो जाता है, जिससे बरसात के दिनों में उसका पानी अत्यंत गंदा हो जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि इस दूषित जल के सेवन से डायरिया, मलेरिया और ब्रेन मलेरिया जैसी गंभीर बीमारियां आम हो गई हैं. उन्होंने बताया कि केवल मालिपाड़ा ही नहीं, आसपास के आधा दर्जन गांवों के लोग भी इसी एक झरने के पानी पर निर्भर हैं. अब तक ना तो एक भी चापाकल लगाया गया है, और ना ही किसी अन्य जलापूर्ति व्यवस्था की व्यवस्था की गयी है. ग्रामीणों ने कहा कि सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि, मालिपाड़ा गांव तक आज भी पक्की सड़क नहीं पहुंची है. चारों ओर से पहाड़ों से घिरा यह गांव प्रखंड मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गांव से मुख्य सड़क तक लगभग पांच किलोमीटर का फासला तय करने के लिए ग्रामीणों को उबड़-खाबड़ पथरीली पगडंडी का सहारा लेना पड़ता है. दुर्गम रास्तों के कारण बीमार लोगों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता और कई बार गंभीर मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. वहीं, गर्भवती को सड़क के अभाव में घर पर ही प्रसव कराने को मजबूर होना पड़ता है.बारिश में गांव बन जाता है टापू
ग्रामीणों ने बताया कि बरसात में कुंजबोना और छोटा मालिपाड़ा गांव के बीच खेतों में पानी भरने से रास्ता कीचड़मय हो जाता है. इस दौरान मालिपाड़ा गांव बाहरी दुनिया से कट जाता है और एक टापू में तब्दील हो जाता है. ग्रामीणों ने प्रभात संवाद के माध्यम से ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की कि गांव तक अविलंब सड़क का निर्माण कराया जाए और शुद्ध पेयजल की सुविधा मुहैया कराई जाए. ग्रामीणों का कहना है कि केवल पांच किलोमीटर सड़क और पेयजल की व्यवस्था हो जाने से गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल सकती हैं.बोले ग्रामीण
गांव में पीने के पानी की भारी समस्या है. बरसाती नाले में दो झरने हैं, जिनमें एक दिसंबर तक सूख जाता है और दूसरा तीन किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों को मजबूरी में दूषित झरने का पानी पीना पड़ता है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है.भीमा पहड़िया, ग्रामीण
गांव में आजादी के सात दशक बीतने के बावजूद एक भी चापाकल या कुआं नहीं बना है. ग्रामीण आज भी पहाड़ी झरने के दूषित पानी पर निर्भर हैं. प्रशासन की उदासीनता के कारण लोगों को स्वास्थ्य जोखिम उठाते हुए जीवन जीना पड़ रहा है.-चांदू पहड़िया, ग्रामीण
कुंजबोना से मालिपाड़ा तक लगभग पांच किलोमीटर सड़क नहीं है. सड़क के अभाव में गांव मुख्यधारा से कटा हुआ है. गाड़ी नहीं पहुंचने से ग्रामीण सभी सरकारी लाभ से वंचित हैं. लोगों को काफी परेशानी होती है. गांव की समस्याओं को दूर करने के लिए पहल करनी चाहिए.-बंदरा पहड़िया, ग्रामीण
गांव में सड़क नहीं होने से स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं पहुंच पातीं. कोई बीमार पड़ता है तो उसे खटिया पर उठाकर कुंजबोना ले जाना पड़ता है. गांव में कोई स्वास्थ्यकर्मी नहीं आता, जिससे गंभीर स्थिति में भी इलाज मिलना मुश्किल होता है.-रूपा पहड़िया, ग्रामीण
गांव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है, जिससे गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को पोषण का लाभ नहीं मिल पा रहा. सरकारी योजनाओं की जानकारी और लाभ से ग्रामीण अछूते हैं. सुविधाओं की भारी कमी से महिलाओं और बच्चों की स्थिति दयनीय है.-गुहि पहाड़िन, ग्रामीण
गांव में सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. ग्रामीण आज भी झोला छाप डॉक्टरों से इलाज कराते हैं. पांच किलोमीटर तक पथरीले रास्ते पर पैदल चलने को मजबूर हैं. जीवन स्तर बेहद पिछड़ा हुआ है.-गुहि पहाड़िन, ग्रामीण
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