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मसियातू के 46 परिवार बनाते हैं सूप, दउरा और बेना, आज तक नहीं मिली कोई सरकारी मदद, बदहाल हैं मसियातू के ग्रामीण
अमित कुमार राज, कुड़ू : नहाय खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो गया. कुड़ू प्रखंड के सलगी पंचायत के मसियातू गांव के 46 परिवार सालों भर सूप, दउरा, बेना से लेकर छठ व्रत में इस्तेमाल होने वाले बांस के सामान बनाते हैं. इसका इस्तेमाल छठव्रती भी करते है़ं मसियातू के बने समानों की मांग […]
अमित कुमार राज, कुड़ू : नहाय खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो गया. कुड़ू प्रखंड के सलगी पंचायत के मसियातू गांव के 46 परिवार सालों भर सूप, दउरा, बेना से लेकर छठ व्रत में इस्तेमाल होने वाले बांस के सामान बनाते हैं. इसका इस्तेमाल छठव्रती भी करते है़ं मसियातू के बने समानों की मांग उतरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, छतीसगढ़ से लेकर ओड़िशा तक झारखंड के आधे दर्जन जिलों में मसियातू में बने सूप, दउरा तथा बेना की आपूर्ति होती है.
सलगी पंचायत के मसियातू में तुरी समाज के 46 परिवार निवास करते हैं. सभी परिवार छठ महापर्व के मौके पर पूजा में प्रयोग होने वाले सामान बनाते हैं. मसियातू में बने सूप की विशेष मांग है. गांव में वार्ड सदस्य से लेकर बुजुर्ग, महिलाएं, बच्चे सभी सूप, दउरा बनाने में माहिर हैं.
एक माह पहले से काम पर लग जाता है पूरा परिवार
गांव की वार्ड सदस्य रेणु देवी ने बताया कि गांव के सभी 46 परिवार छठ महापर्व के मौके पर सूप, दउरा समेत अन्य सामान बनाते हैं. एक माह पहले सभी समानों का जुगाड़ कर लेते हैं. छठ से एक माह पहले ही गांव का पूरा परिवार काम में लग जाता है. पुरुष जहां बांस का जुगाड़ करते हैं, बच्चे बांस को काटने से लेकर सूप बनाने के लिए बांस को फाड़ते हैं, महिलाएं सूप, दउरा तथा बेना बनातीं हैं. ग्रामीण डहरू तुरी, चुंदेश्वर तुरी, किशुन तुरी, गंगा तुरी, मनोज तुरी, मोहन तुरी, निरूष तुरी, सचित तुरी, झरी तुरी आदि ने बताया कि एक माह पहले बांस खरीद कर लाते हैं.
कुड़ू के साथ-साथ भंडरा, कैरो, सेन्हा, सिसई, गुमला, बेड़ो से बांस लाते हैं. वहीं सालो देवी, एतवारी देवी, शीला, बुधनी देवी, सुशांति देवी, संपति देवी, राजवंती देवी, होलिका देवी, दुर्गी देवी, जतरी देवी समेत अन्य ने बताया कि लातेहार, डालटनगंज, गढ़वा, गुमला, रांची से व्यपारी आते हैं. यहां से एक साथ सूप ले जाते हैं. रविवार को दो व्यापारी मसियातू पहुंचे थे. दोनों ने बताया कि यहां से सूप, दउरा लेकर गढ़वा जाते हैं और वहां से बिहार, उतरप्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश के भोपाल, सतना, मंदसौर, इंदौर तक सूप भेजते हैं. एक सूप बनाने में लागत 60 रुपये से लेकर 70 रुपये तक आती है. जबकि व्यपारी 100 रुपये से लेकर 120 रुपये में एक सूप लेकर जाते हैं.
नहीं मिली कोई सरकारी मदद, बदहाल हैं मसियातू के ग्रामीण . ग्रामीणों ने बताया कि सूप, दउरा समेत अन्य सामान सालो भर बनाते हैं. यह तुरी समाज का पुस्तैनी धंधा है लेकिन आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है. सरकारी सहायता मिलता तो धंधा तेजी के साथ आगे बढ़ता. वर्तमान में कर्ज लेकर एक माह पहले सब कुछ जुगाड़ करते हैं. सामान बेच कर कर्ज वापस करते हैं. मसियातू के ग्रामीणों को आज भी सरकारी सहायता का इंतजार है़
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