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Jamshedpur News : दलमा की पहाड़ियों में हुआ सेंदरा, परंपरा निभाने जुटे हजारों आदिवासी

दलमा बुरू सेंदरा समिति के आह्वान पर सोमवार को आदिवासी समाज ने पारंपरिक 'दिसुआ सेंदरा पर्व' पूरे उल्लास के साथ मनाया. दलमा की तलहटी से लेकर शिखर तक नगाड़ों की थाप और सेंदरा वीरों के 'हल्ला बोल' से पूरा पहाड़ गूंज उठा. उबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते और घने जंगल सेंदरा वीरों के जोश को कम नहीं कर सके.

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घने जंगल में दिनभर चला शिकार, युवाओं की घटती भागीदारी पर जताई चिंता वरीय संवाददाता, जमशेदपुर:

दलमा बुरू सेंदरा समिति के आह्वान पर सोमवार को आदिवासी समाज ने पारंपरिक ””दिसुआ सेंदरा पर्व”” पूरे उल्लास के साथ मनाया. दलमा की तलहटी से लेकर शिखर तक नगाड़ों की थाप और सेंदरा वीरों के ””हल्ला बोल”” से पूरा पहाड़ गूंज उठा. उबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते और घने जंगल सेंदरा वीरों के जोश को कम नहीं कर सके. उनका उत्साह पहाड़ी से लौटने के बाद भी कायम रहा. घंटों जंगल में भटकने के बावजूद उनके चेहरे पर थकावट की कोई शिकन नहीं थी.

फदलोगोड़ा, आसनबनी, जामडीह, पातीपानी, मिर्जाडीह, बोंटा, पोड़ाखूंटा और चिमटी जैसे गांवों से सैकड़ों की संख्या में सेंदरा वीर झुंड बनाकर सुबह तड़के जंगलों में शिकार खेलने गए थे. एक-एक दल में 50 से 100 तक लोग शामिल थे. दोपहर 12 बजे के बाद जंगल से लौटने का सिलसिला शुरू हुआ. शिकारियों ने बताया कि जंगल में एक जंगली भालू और हिरण से आमना-सामना हुआ, लेकिन जंगल की घनी झाड़ियों के कारण उन्हें घेरने में सफलता नहीं मिली. ””हल्ला बोल”” कर उन्हें चारों ओर से घेरने का प्रयास किया गया, लेकिन वे फिर नजर नहीं आए.

युवाओं की भागीदारी घटी, बुजुर्ग रहे आगे

इस बार पर्व में युवाओं की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही. दलमा बुरू दिसुआ सेंदरा समिति के अध्यक्ष फकीर सोरेन ने बताया कि आज के युवा मोबाइल में ज्यादा व्यस्त रहते हैं और पारंपरिक पर्वों में रुचि नहीं ले रहे. उन्होंने कहा कि सेंदरा कोई आसान काम नहीं है. यह पर्व शारीरिक और मानसिक दृढ़ता की मांग करता है. कई किलोमीटर पहाड़ी क्षेत्र में पैदल चलना और भूखा-प्यासा रहना आज की पीढ़ी के लिए कठिन हो गया है. इसी कारण युवाओं की भागीदारी कम होती जा रही है.

सेंदरा वीरों के प्रति जताया आभार, परंपरा पर मंडरा रहा संकट

दलमा बुरू सेंदरा समिति के अध्यक्ष राकेश हेंब्रम दिनभर दूरभाष पर सेंदरा वीरों से संपर्क में बने रहे. उन्होंने बताया कि इस वर्ष भी अनुमानित 3 से 4 हजार लोग दलमा शिकार पर्व में शामिल हुए. हालांकि उन्होंने चिंता जताई कि नई पीढ़ी इस परंपरा के संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं है. उन्होंने कहा कि इस विषय को स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख माझी बाबा और परगना आदि के समक्ष उठाया जाएगा, ताकि समय रहते समाधान निकाला जा सके. अन्यथा आने वाले वर्षों में सेंदरा जैसी परंपराएं विलुप्त होने की कगार पर होंगी.

वन विभाग की सख्ती, हर रास्ते पर रही तैनाती

सेंदरा पर्व को लेकर वन विभाग भी पूरी तरह मुस्तैद रहा. तड़के सुबह से ही सभी पदाधिकारी, रेंजर, वनरक्षी और सहयोगी दल जगह-जगह तैनात रहे. दलमा पहाड़ी के चारों ओर गश्ती वाहनों की आवाजाही दिनभर चलती रही. चेकनाकों पर वाहनों की सघन जांच की गई. पहाड़ी से उतरने वाले सभी रास्तों पर वनकर्मी तैनात थे और हर व्यक्ति से पूछताछ की जा रही थी.

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