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झारखंड से है भगवान बुद्ध का गहरा नाता, अलग-अलग रूपों में होती है पूजा

संजय सागर सत्य अहिंसा करुणा एवं शांति के प्रवर्तक और बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध का झारखंड से विशिष्ट लगाव रहा है. शायद यही कारण है कि बौद्ध काल में झारखंड क्षेत्र में भारी संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी रहे हैं. इसीलिए आज भी गौतम बुद्ध की मूर्तियां एवं उनसे संबंधित अवशेष आज […]

संजय सागर

सत्य अहिंसा करुणा एवं शांति के प्रवर्तक और बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध का झारखंड से विशिष्ट लगाव रहा है. शायद यही कारण है कि बौद्ध काल में झारखंड क्षेत्र में भारी संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी रहे हैं. इसीलिए आज भी गौतम बुद्ध की मूर्तियां एवं उनसे संबंधित अवशेष आज भी झारखंड के कोने-कोने में मौजूद हैं. हजारीबाग जिले के कन्हेरी पहाड़ के आसपास गौतम बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं. इसी जिले के बड़कागांव प्रखंड के पंकरी बरवाडीह तथा आसपास के क्षेत्र में भगवान बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं.

पंकरी बरवाडीह के पूरब दिशा में बौद्ध स्तूप है. इसे अब पांच पंडवा पहाड़ कहा जाता है. यह स्तूप राजगीर के बौद्ध स्तूप से मिलता-जुलता है. राजगीर बौद्ध स्तूप की अपेक्षा यह स्तूप छोटा है. यहां भगवान बुद्ध की सैकड़ों मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं. कई मूर्तियों को एक जगह सजाकर रखा गया है. इतना ही नहीं, बड़कागांव मध्य पंचायत के पंडित मोहल्ला स्थित शिव मंदिर में एक प्रतिमा है, जो भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमा जैसी दिखती है. हालांकि, लोग इसे भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा मानकर पूजा-अर्चना करते हैं.

बड़कागांव प्रखंड मुख्यालय से 3 किमी दूर बड़कागांव-हजारीबाग रोड की पूरब दिशा में बौद्ध स्तूप है. इसे स्थानीय ग्रामीण पांच पंडवा पहाड़ कहते हैं. यहां गौतम बुद्ध की सैकड़ों मूर्तियां हैं. बुद्ध बैठे हुए हैं. इससे प्रतीत होता है कि बड़कागांव क्षेत्र में बौद्ध काल में भगवान बुद्ध के अनुयायीरहे होंगे. यहां बौद्धिस्ट साधना और उपासना करते रहे होंगे. जुलाई, 2003 में बारिश नहीं होने के कारण बरवाडीह के ग्रामीण पांच पंडवा पहाड़पर गौतम बुद्ध की मूर्तियों को पांडवों के मूर्ति समझ कर पूजा-अर्चना कर रहे थे. इस दौरान किसान बारिश होने की कामना कर रहे थे. पत्रकारों को कवरेज के लिए बुलाया गया. पत्रकार ने ग्रामीणों को बताया कि ये पांच पांडवनहीं,बल्कि भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमा है. तब से लोग भगवान बुद्ध की पूजा कर रहे हैं.

इटखोरी में भगवान बुद्ध ने की थी तपस्या

पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध ने देह त्याग किया था. इसी दिन उनका जन्म भी हुआ था. इसी तिथि को उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. देश-दुनिया में उनके 50 करोड़ से ज्यादा अनुयायी हैं, जिनके लिए इस तिथि का विशेष महत्व है. सिद्धार्थ तब बुद्ध नहीं बने थे. पुत्र-पत्‍नी का त्याग कर सत्य की खोज में निकले, तो चतरा के इटखोरी में ऐसा ध्यान लगाया कि वे खो गये. उनकी मौसी गौतमी उन्हें लेने के आयी, लेकिन सिद्धार्थ पर कोई असर नहीं पड़ा. गौतमी के मुख से अनायास ही निकल पड़ा : इत्तखोई. यानी यहीं खो गया. तब से चतरा के इस अंचल का नाम ही इटखोरी पड़ गया. यहां बुद्ध से जुड़े कई अवशेष मिले हैं. कई स्तूप भी हाल के दिनों में मिलेहैं. चार साल पहले पलामू में भी दो स्तूप मिले.

गोड्डा में बिखरीहैं बुद्ध की प्रतिमा

गोड्डा जिले के बेलनीगढ़ में भी बुद्ध से जुड़ी स्मृतियां हैं. वहां के अवशेष इस बात की गवाही देते हैं. गोड्डा के पूरे महगामा प्रखंड में प्रतिमाओं के अवशेष बिखरे पड़े हैं. यहां के लोग बेलनीगढ़ को भिक्षुणीगृह भी कहते हैं.

देवघर में अशोक का स्तूप

देवघर का करौं ग्राम अशोक के काल का माना जाता है. इसे अशोक के पुत्र राजा महेंद्र ने बसाया था. यहां अशोक का स्तूप भी मौजूद है. खुदाई नहीं हुई है, लेकिन बौद्ध अनुयायियों का कहना है कि यहां खुदाई हो, तो कई बौद्धकालीन विहार मिल सकते हैं. इसी तरह, रांची के पास गौतमधारा है. कहीं न कहीं यह स्थल भी उनकी स्मृति से जुड़ा हुआ है. इस ओर अब तक न तो पुरातत्व विभाग ने ध्यान दिया है, न सरकार ने.हां, इटखोरी में सरकार ने प्रयास शुरू कर दिये हैं, जहां काफी अवशेष मिले हैं.

पलामू में मिले दो स्तूप

पलामू में भी भारत सरकार के पुरातत्व विभाग को दो स्तूपमिले.इसके बादकोईकाम नहीं हुआ. जानकार बताते हैं कि इन स्थलों को सजाया-संवारा जाये और बुद्ध सर्किट से जोड़ दिया जाये, तो पर्यटन की संभावनाएं प्रबल हो जायेंगी. राज्य सरकार ने इटखोरी में पहल की है, लेकिन अन्य जगहों को भी इससे जोड़ने की जरूरत है.

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