दुर्जय पासवान, गुमला
महिषासुर से जुड़ी असुर जनजाति की कहानी को बहुत कम ही लोग जानते हैं. आज भी महिषासुर को अपना पूर्वज मानने वाले असुर जनजाति जंगल व पहाड़ों में निवास करते हैं. श्रीदुर्गा पूजा के बाद इस जनजाति के लोग अपनी पुरानी परंपराओं के आधार पर महिषासुर की पूजा करते हैं. श्रीदुर्गा पूजा में जहां हम, मां दुर्गा की पूजा करते हैं. नौ दिनों तक मां की आराधना करते हैं. मां की भक्ति में लीन रहते हैं. ठीक इसके विपरित एक समुदाय आज भी महिषासुर की पूजा करता है.
हम बात कर रहे हैं, असुर जनजाति की. आज भी असुर जनजाति के लोग अपने प्रिय आराध्य देव महिषासुर की पूजा ठीक उसी प्रकार करते हैं. जिस प्रकार हर धर्म व जाति के लोग अपने आराध्य देव की पूजा करते हैं. झारखंड राज्य के गुमला जिला ही नहीं अन्य जिले जहां असुर जनजाति के लोग निवास करते हैं. वे आज भी महिषासुर की पूजा करते हैं.
श्रीदुर्गा पूजा के बाद दीपावली पर्व में महिषासुर की पूजा करने की परंपरा आज भी जीवित है. इस जाति में महिषासुर की मूर्ति बनाने की परंपरा नहीं है. लेकिन जंगलों व पहाड़ों में निवास करने वाले असुर जनजाति के लोग श्रीदुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद महिषासुर की पूजा में जुट जाते हैं. दीपावली पर्व की रात महिषासुर का मिट्टी का छोटा पिंड बनाकर पूजा करते हैं. इस दौरान असुर जनजाति अपने पूर्वजों को भी याद करते हैं.
देर शाम होती है पूजा
असुर जनजाति के लोग बताते हैं. सुबह में मां लक्ष्मी, गणेश की पूजा करते हैं. इसके बाद देर शाम को दीया जलाने के बाद महिषासुर की पूजा की जाती है. दीपावली में गौशाला की पूजा असुर जनजाति के लोग बड़े पैमाने पर करते हैं. जिस कमरे में पशुओं को बांधकर रखा जाता है. उस कमरे की असुर लोग पूजा करते हैं.
वहीं, हर 12 वर्ष में एक बार महिषासुर के सवारी भैंसा (काड़ा) की भी पूजा करने की परंपरा आज भी जीवित है. गुमला जिले के बिशुनपुर, डुमरी, घाघरा, चैनपुर, लातेहार जिला के महुआडाड़ प्रखंड के इलाके में भैंसा की पूजा की जाती है. बिशुनपुर प्रखंड के पहाड़ी क्षेत्र में भव्य रूप से पूजा होती है. इस दौरान मेला भी लगता है.
जनजाति नेता विमलचंद्र असुर ने कहा कि असुर जनजाति मूर्ति पूजक नहीं है. इसलिए महिषासुर की मूर्तियां नहीं बनायी जाती है. पर पूर्वजों के समय से पूजा करने की जो परंपरा चली आ रही है. आज भी वह परंपरा कायम है. पूर्वजों के साथ महिषासुर की भी पूजा की जाती है. बैगा पहान सबसे पहले पूजा करते हैं. उसके बाद घरों में पूजा करने की परंपरा है. असुर जनजाति के लोग पशुओं की भी पूजा करते हैं. दुर्गा पूजा के बाद हमलोग अपनी संस्कृति व धर्म के अनुसार पूजा की तैयारी शुरू करते हैं. जिन गांवों में असुर जनजाति के लोग निवास करते हैं. उन गांवों में उत्साह चरम पर रहती है.