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East Singhbhum News : सुवर्णरेखा की स्थिति ने बजायी खतरे की घंटी, नहीं चेते, तो बूंद-बूंद पानी को तरसेंगे

विश्व जल दिवस पर झारखंड की जीवन रेखा सुवर्णरेखा नदी को बचाने का लें संकल्प, जलवायु परिवर्तन से भू-गर्भ जलस्तर घट रहा, नाले जैसे बह रही नदी

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गालूडीह. झारखंड की जीवनरेखा सुवर्णरेखा नदी मार्च महीने में मंद पड़ गयी है. नदी नाले जैसी बह रही है. यह स्थिति भविष्य में भयावह जल संकट की ओर इशारा कर रही है. दुनिया भर के पर्यावरणविद् पानी की कमी को लेकर चिंतित हैं. जल की मांग और आपूर्ति में असंतुलन से जल संकट बढ़ रहा है. ऐसे में हमें पर्यावरण संरक्षण के साथ सतत विकास के मॉडल अनुसार, पृथ्वी पर मौजूद सभी स्रोत का नीतिपूर्ण तरीके से आवश्यकता के हिसाब से उपयोग करना होगा. हम नहीं चेते, तो भविष्य की पीढ़ियां बूंद-बूंद पानी को तरसेंगी.

जलस्रोत बचाने और संरक्षण का संकल्प लें

हमें जल स्रोत को बचाने और संरक्षित करने का संकल्प लेना होगा. जलवायु परिवर्तन से भू-गर्भ जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है. नदी भी नाले की तरह बहने लगी है. वर्षा जल संचय जरूरी है. दारीसाई क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि जल, जंगल और जमीन ही जीवन के मूल आधार हैं. बढ़ती आबादी, वाहन, कल-कारखाने, कटते जंगल, फैलती आबादी और सिकुड़ती जमीन से पर्यावरण नष्ट हो रहा है. यही कारण है कि अब समय पर कोई मौसम नहीं बदलता है. न समय पर बारिश हो रही, न समय पर गर्मी और सर्दी आ रही. बेमौसम बारिश हो रही. प्राकृतिक आपदाएं बढ़ी हैं.

सोख्ता बनाकर वर्षा का पानी बचायें

वर्षा जल संचय ही भूगर्भ जलस्तर को बचाने का एकमात्र उपाय है. इसे बचाने के लिए कुआं, डोभा, तालाब की संख्या बढ़ानी होगी. घरों की छत के पानी को सोख्ता बनाकर जमीन के अंदर भेजना होगा. टपक सिंचाई पद्धति अपनानी होगी. वर्षा के पानी को बेकार बहने से रोकना होगा. गालूडीह बराज डैम के पास सुवर्णरेखा नदी की स्थिति डराने लगी है. बराज सूखा है. नदी में पत्थर ही पत्थर दिख रहे हैं. ऐसे में विश्व जल दिवस पर संकल्प लें कि नदी को बचाना है.

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक

जल संचय के लिए कई किसान टपक पद्धति से फसलों की सिंचाई करते हैं. इससे किसान कम पानी ज्यादा खेती कर सकते हैं. जल संचय के लिए छत पर टंकी बनाकर बारिश का पानी इकट्ठा करें. घर की नालियों के पानी को गड्ढे में इकट्ठा करें. गटर के नीचे बैरल लगाकर बारिश का पानी इकट्ठा करें. छत से बारिश का पानी नालियों में इकट्ठा करके नीचे की ओर ले जायें. फिर किसी तरह के भंडारण में इकट्ठा करें.

– एन सलाम, सह निदेशक, दारीसाई क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र————————————-वर्षा के पानी को हम रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से बचा सकते हैं. बरसात में डोभा और तालाब के माध्यम से संचय कर सकते हैं. किसान इसका उपयोग भविष्य में रबी में खेती के लिए कर सकते हैं. उस पानी में मछली व बत्तख पालन आदि कर सकते हैं. विभिन्न फसल और सब्जियां उगा सकते हैं. किसान अगर टपक सिंचाई प्रणाली से सब्जियों में सिंचाई करते हैं, तो 30 से 70 प्रतिशत तक पानी बचत कर सकते हैं.

डॉ डालेश्वर रजक, कनीय वैज्ञानिक सह सहायक प्राध्यापक, दारीसाई

—————————————–जल संसाधन सीमित और दुर्लभ है. पानी घट रहा है. भविष्य में पानी की कमी एक बड़ा संकट बन सकता है. हमें वर्षा जल संचय के स्थायी तरीकों को अपनाना चाहिए. वर्षा जल संरक्षण न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, बल्कि शहरी क्षेत्रों के लिए जरूरी है. जल जीवन है. वन दोनों का आपस में संबंध है. जीने के लिए जल जरूरी है.

– डॉ देवाशीष महतो, कृषि वैज्ञानिक, दारीसाई

———————————-वर्षा जल संचयन की प्रक्रिया में छत पर जमा वर्षा के जल को धरातल यानी जमीन पर लाया जाता है. उसे टैंकों, तालाबों, कुओं, बोरवेल, जलाशय आदि में इकट्ठा किया जाता है. वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए रिचार्ज गड्ढों का निर्माण किया जाता है. गड्ढों को कंकर, बजरी, मोटे रेत से भरा जाता है. वे अशुद्धियों के लिए एक फिल्टर की तरह काम करता है.

– डॉ प्रदीप प्रसाद, कृषि वैज्ञानिक, दारीसाई

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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